उन्नाव: यूपी पुलिस ने पत्रकार शुभम की गुहार नहीं सुनी, अगले दिन उसे गोली मार दी गई
उन्नाव के रहने वाले पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी Unfortunately अब दुनिया में नहीं रहे. शुभम जब बाइक से अपने घर के लिए लौट रहे थे तब उन्नाव में ही गंगाघाट नाम की एक जगह पर इनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्या क्यों की गई इसके पीछे एक पूरी कहानी हैं. "कम्पू मेल" नाम से कानपुर में एक अखबार निकलता है. शुभम उसी में काम करते थे. बीते दिनों शुभम ने उत्तरप्रदेश के एक भू माफिया पर स्टोरी की. जिसने ग्राम समाज जमीन पर कब्जा किया हुआ था. लोकल अखबारों में लोकल खबरें ही छपती हैं. इनका असर भी गम्भीर स्तर पर पड़ता है. शुभम इस स्टोरी से पहले भी ग्राम समाज जमीन के बारे में सोशल मीडिया पर लिखते थे. जिस पर स्टोरी की थी उसका नाम दिव्या अवस्थी है.
स्थानीय खबरों के अनुसार दिव्या अवस्थी को "लेडी डॉन" भी कहा जाता है. स्टोरी लिखे जाने के बाद से ही शुभम को लेडी डॉन की तरफ से धमकी आने लगी थीं. 14 जून को शुभम ने अपनी फेसबुक पर लिखा कि भूमाफिया ने किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसपर एक फर्जी FIR करा दी गई है. इसके दो दिन बाद यानी 16 जून को शुभम ने इस बाबत फेसबुक पर लिखा कि उसकी जान के लिए सुपारी दी जा रही हैं. हालांकि ये हास्य तरीके से लिखी एक पोस्ट थी, जिसमें सुपारी की बात को गम्भीरता से नहीं कहा गया था. लेकिन शुभम को इस बात का भान तो पहले ही हो गया था कि उसकी जान को खतरा है. जिस दिन पत्रकार शुभम की हत्या की गई है, उसके ठीक एक दिन पहले ही शुभम ने उत्तरप्रदेश के अधिकारियों को मेल करके सूचित किया था कि अमुक भूमाफिया द्वारा उसे जान से मारे जाने की धमकी दी जा रही हैं। लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई भी मदद शुभम को नहीं मिली. अगले दिन पत्रकार शुभम की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
सम्भव है इस खबर में कुछ और बही एंगल निकलें, लेकिन सरेआम एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर देना बता रहा है कि उत्तरप्रदेश में पुलिस व्यवस्था की क्या हालत है, जहां अन्य देशों की पुलिस का काम पत्रकारों को सुरक्षा मुहैया कराने का होता है, वहीं उत्तरप्रदेश पुलिस और प्रशासन का पूरा जोर पत्रकारों को दबाने पर होता है. आपको मालूम नहीं कि कब पुलिस आपकी एक फेसबुक पोस्ट की वजह से आपको घर से उठा ले जाए. आपको मालूम नहीं है कि कब आपकी एक फेसबुक पोस्ट की वजह से, आपकी एक स्टोरी की वजह से, गोली मार दी जाए.
एक हफ्ते पहले ही स्क्रॉल नामक एक संस्थान की एक पत्रकार ने नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए हुए एक गांव की भुखमरी पर स्टोरी की गई. उत्तरप्रदेश प्रशासन ने उस खबर पर संज्ञान लेने के बजाय उल्टा पत्रकार पर ही FIR दर्ज कर ली. कोविड-19 के दौर में ही 50 से अधिक पत्रकारों को या तो गिरफ्तार कर लिया गया है या उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई हैं. पत्रकारों के लिए ये समय सच में बेहद संवेदनशील है.
वैसे तो किसको नहीं पता है कि ये उत्तरप्रदेश है, 3,4 महीने जेल में रहने के बाद, लाख-दो लाख रुपए में ही अपराधियों को छोड़ दिया जाता है. फिर भी उत्तरप्रदेश सरकार से अपील है, जिसकी कि बहुत कम उम्मीद है, जल्दी से जल्दी शुभम के हत्यारों को जेल में पहुंचाए.
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