चीन भारत के लिए पड़ोसी तो रहा, दोस्त कभी नहीं, आत्ममुग्ध मोदी सरकार ये नहीं समझ सकी !
- धनंजय कुमार
चीन धोखेबाज़ और साम्राज्यवादी देश है. ये बार बार साबित हुआ है. भारत को ये अनुभव 1962 में खूब अच्छे से हो गया था, इसीलिये बाद की भारतीय सरकारों ने चीन से दोस्ती करने के बजाय सतर्क रहने की नीति अपनाई, और जब ज़रुरत पड़ी मुंहतोड़ जवाब भी दिया. 62 के पांच साल बाद ही 67 में सिक्किम सीमा पर चीन के साथ भारत की झड़प हुई, जो युद्ध से कम नहीं था और भारत ने माकूल जवाब दिया और चीन के तमाम कपट के बावजूद सिक्किम भारत का हिस्सा बना और अरुणाचल प्रदेश में भारत और मज़बूत हुआ. तबसे चीन भारत के लिए पड़ोसी तो रहा, लेकिन कभी दोस्त नहीं रहा.
चीन धोखेबाज़ और साम्राज्यवादी देश है. ये बार बार साबित हुआ है. भारत को ये अनुभव 1962 में खूब अच्छे से हो गया था, इसीलिये बाद की भारतीय सरकारों ने चीन से दोस्ती करने के बजाय सतर्क रहने की नीति अपनाई, और जब ज़रुरत पड़ी मुंहतोड़ जवाब भी दिया. 62 के पांच साल बाद ही 67 में सिक्किम सीमा पर चीन के साथ भारत की झड़प हुई, जो युद्ध से कम नहीं था और भारत ने माकूल जवाब दिया और चीन के तमाम कपट के बावजूद सिक्किम भारत का हिस्सा बना और अरुणाचल प्रदेश में भारत और मज़बूत हुआ. तबसे चीन भारत के लिए पड़ोसी तो रहा, लेकिन कभी दोस्त नहीं रहा.
चीन हमारा दोस्त हो भी नहीं सकता. क्योंकि भारतीय दुनिया में मानवीय रिश्ते निभाने के लिए जाने जाते हैं और चीनी वर्चस्ववादी नीतियों के लिए. चीन का भाग्य निर्माता माओत्से तुंग कैसा निर्मम और सनकी इंसान था, यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है. चीन आज भी उसी की नीति पर चल रहा है. भारत की समस्या यह है कि भारत शुरू से एक नहीं रहा. जब 62 का भारत चीन युद्ध चल रहा था, तब यहाँ के कम्युनिस्ट माओ की तरफदारी कर रहे थे और दक्षिण पंथी नेहरू के पिटने की कामना कर रहे थे. विडम्बना है आज भी भारत उसी नियति का शिकार है. देश के राजनीतिक विचारधारों में एका नहीं हैं. सत्ता में बैठा आदमी नेहरू को हर तरीके से ध्वस्त करने पर तुला है और नेहरू के उत्तराधिकारी कमजोर हैं. वह खुद को डिफेंड नहीं कर पा रहे, नेहरू को क्या डिफेंड करेंगे?
मोदी जबसे सत्ता में आये हैं चीन के साथ दोस्ती करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहे. उसके पीछे देश की चिंता कम नेहरू पर हावी होने की मंशा ज्यादा है. ये दुनिया को बताना चाह रहे हैं नेहरू ही गड़बड़ थे कि चीन के साथ रिश्ते इस स्तर पर बुरे हो गए. यानी नेहरू की रणनीति गलत थी और वह प्रधानमंत्री के तौर पर असफल व्यक्ति थे. संघ के पास कोई कद्दावर नेता था नहीं, (वो तो आज भी नही है) इसलिए नेहरू की जगह पटेल को प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खड़ा करते हैं-कि पटेल अगर प्रधानमंत्री होते तो न कश्मीर पर विवाद होता और न ही चीन से भारत पराजित होता.
खैर वो इतिहास की बातें हैं. इतिहास वापस अपने तरीके से लिखा जा सकता है, परिस्थितियों और परिणाम को बदला नहीं जा सकता. पिछले छह साल से भारत की सत्ता मोदी के हाथ में है. परिस्थिति कहाँ बदली है और परिणाम क्या आये हैं, हमारे सामने है. आर्टिकल 370 और 35A को भारतीय संसद में ख़त्म करना, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू होने से अधिक कुछ नहीं है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर आज भी भारत की पकड़ से दूर है- उसमें इंच भर फर्क नहीं आया है. हाँ भारत की किरकिरी पूरी दुनिया में ज़रूर हुई है और कश्मीर के अवाम का विश्वास ज़ख़्मी हुआ है.
अब चीन को लें तो मोदी जी ने चीन के साथ पींगे बढाने में कोई कसर नहीं छोड़ा, ऐसी सदाशयता का प्रदर्शन दिया है मानो भारत और चीन जुडवां भाई हैं. पटेल की मूर्ति बनवाने से लेकर कई व्यापारिक प्रोजेक्ट भारत में शुरू करने के अवसर दिए. लेकिन इससे चीन के सामने भारत की कमियाँ ही उजागर हुई. दुनिया में भले भाड़े के लोग मोदी मोदी का उद्घोष करते रहे, लेकिन दुनिया के तमाम सामरिक देशों के सामने भारत की स्थिति अमेरिका के पिछलग्गू की ही साबित हुई और साबित हुआ कि भारत का मौजूदा प्रधानमंत्री आत्ममुग्ध व्यक्ति है. हाथ मिला लो तारीफ़ के दो बोल बोल दो, द्वारपाल बन जाएगा.
चीन ने इसी का फ़ायदा उठाया, पहले भारत के पड़ोसी देशों को उकसाया और अब खुद चढ़ बैठा है. सोचिये नेपाल भी हमारे सीमाई क्षेत्रों पर दावा कर रहा है. लेकिन मोदी और उनके चारण अब भी गाल बजाने से बाज़ नहीं आ रहे- 62 का भारत नहीं है ये मोदी का भारत है. दिवालियापन देखिये रजत शर्मा जैसा पत्रकार ये कह रहा है. लेकिन दिलचस्प ये है कि 62 के भारत को बदलने में मोदी का क्या योगदान है, इस पर बात कीजिये तो भक्त गीत गाने लगते हैं. मोदी ने पिछले 6 सालों में भारत को सामरिक क्षेत्र में किस तरह से मज़बूत किया- कोई उदाहरण है? भारत ने 67 में ही बता दिया था ये 62 का भारत नहीं है. भारत ने सिक्किम और गोवा को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाकर साबित कर दिया था कि ये 62 का भारत नहीं है. भारत ने पाकिस्तान के दो फाड़ कर बांग्लादेश नाम का नया देश बनाकर प्रमाणित कर दिया था कि ये 62 का भारत नहीं है. लेकिन ये चारण और आत्ममुग्ध अपना गाल बजा रहे हैं. भाई ये भी बताते चलो तुमने भारत को बदलने के लिए क्या किया? क्या भारत को परमाणु शक्ति तुमने बनाया? क्या भारत को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर तुमने बनाया? क्या भारत को दुनिया के आर्थिक पटल पर तुमने खड़ा किया? सिर्फ चारण गीत सुनकर अपढ़ और भक्त इतराएंगे दुनिया मान नहीं देगी. अब चीन जब सीने पर चढ़ बैठने की तैयारी में है, दिखाओ अपना सामरिक बल और बताओ दुनिया को चीन से कमजोर नहीं है भारत-और चीन को माकूल जवाब देने की पूरी क्षमता रखता है भारत. है सीने में इतना बल? है तो दिखलाओ. मौक़ा आ गया है. पूरा देश तुम्हारे साथ है. मारो चीन को.
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