पूर्व कोरोना पॉजिटिव की डायरी: हर मरीज को अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं
- रवींद्र रंजन
कई दोस्तों ने कोरोना पॉजिटिव होने के बाद के अपने अनुभव लिखने को कहा है, लिहाजा मैं एक सीरीज की शक्ल में लिख रहा हूं। उम्मीद करता हूं इससे अन्य लोग भी लाभान्वित होंगे। सबसे पहली बात, परिवार का कोई सदस्य, पड़ोसी, दोस्त या जान-पहचान वाला कोरोना पॉजिटिव हो जाए तो घबराने की बजाए हिम्मत और समझदारी से काम लें। एक बात जान लें कि वायरस संक्रमित होने, या उसकी आशंका होने पर अस्पताल में भर्ती हो जाना समाधान नहीं है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस संबंध में कुछ बदलाव किये हैं, जिसके तहत संक्रमित हुए सामान्य मरीजों (जिनमें कोई गंभीर लक्षण नहीं हैं) को उनके घर में ही (आइसोलेट) रखा जा रहा है। लेकिन बहुत से लोगों को यह अनुचित लग रहा है। वो सोचते हैं कि सरकार मरीजों को अस्पताल में भर्ती क्यों नहीं कर रही है। यकीन मानिए घर में रहकर भी आप उसी तरह इस बीमारी से लड़ सकते है, जैसे अस्पताल में लड़ेंगे।
दोस्तों अस्पताल के बेड पर पहला हक़ गंभीर लक्षण वाले मरीज का है, अगर हर मरीज को अस्पताल में भर्ती कर लिया जाएगा, तो जरा सोचिए महामारी का वक्त है, सभी अस्पताल रातोंरात फुल हो जाएंगे। ऐसे में जिसे वाकई अस्पताल में रहकर इलाज की जरूरत है, हो सकता है उसे वह न मिल पाए। इसलिए संक्रमण की आशंका होते ही घबराकर अस्पतालों के चक्कर लगाना छोड़ दें, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ गाइडलाइंस दी हैं, उनका पालन करें और धैर्य बनाए रखें। जहां तक हो सके निजी अस्पतालों से दूर रहें। अगर उनके जाल में फंस गए तो उस बीमारी के लिए लाखों गंवा देगे, जो मामूली खर्च से दूर हो सकती है। इस बीमारी से खतरा उन्हें हैं जिनको पहले से ही कई बीमारियां हैं या फिर उनकी उम्र ज्यादा है।
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