चीनी सामान का बॉयकाट करिये, लेकिन यह भी तो देख लीजिए कि आप कितने पानी में हैं !
- शंभूनाथ शुक्ल
चलिए, चीनी माल का बॉयकाट करिए, मैं भी आपके साथ हूँ। उनके टीवी, मोबाइल, इलेक्ट्रानिक सामान, खिलौने और उनके द्वारा बनाए गए सारे सामान फेंक दीजिए। उनको आग लगा दीजिए। लेकिन एक बात बताएँ, कि आख़िर चीनी माल हमारे देश में इतने लोकप्रिय क्यों और कैसे हो गए? हम भी ये सब सामान बनाते हैं। किंतु क़ीमत अधिक क्यों होती है? क्या कारण है, कि चाइनीज़ माल में वैराइटी भी है और क़ीमत भी बहुत कम। अब कुछ लोग कहेंगे, कि टिकाऊ नहीं होते। हो सकता है, मगर मेरे घर पर एक Hair का विंडो एसी है, जो मैंने 2006 में ख़रीदा था, आज तक वैसा ही चल रहा है। जबकि इस बीच ख़रीदे गए एलजी और हिटैची के एसी धोखा दे गए। ठीक है, मैं मोबाइल, लैपटॉप या टीवी चाइनीज़ नहीं रखे हूँ। लेकिन यह एक संयोग है अथवा अच्छा और महँगा तथा क्लास का माल ख़रीदने की चाहत।
आप लोग बताएँ, कि गणेश, लक्ष्मी आदि सभी देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ चीन में बनती हैं। और वे अपनी कल्पना से ऐसा मिलान कर देते हैं, कि ये प्रतिमाएँ ठेठ हिंदुस्तानी लगती हैं। उन्हें कैसे पता चल जाता है, कि अब आपकी दीवाली आने वाली है, अब दशहरा आएगा, अब नवदुर्गा और होली। यही नहीं वे गणेश पूजा के समय गणेश की प्रतिमाएँ बना देते हैं। होली के वक्त पिचकारी और दीवाली में इलेक्ट्रानिक दिये। वे हमारी संस्कृति और समाज से मिल कर एकरूप हो गए हैं। वे हमें सस्ता सामान देते हैं और हम ख़रीदते हैं। वे ठगाई नहीं करते।
आप लोग बताएँ, कि गणेश, लक्ष्मी आदि सभी देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ चीन में बनती हैं। और वे अपनी कल्पना से ऐसा मिलान कर देते हैं, कि ये प्रतिमाएँ ठेठ हिंदुस्तानी लगती हैं। उन्हें कैसे पता चल जाता है, कि अब आपकी दीवाली आने वाली है, अब दशहरा आएगा, अब नवदुर्गा और होली। यही नहीं वे गणेश पूजा के समय गणेश की प्रतिमाएँ बना देते हैं। होली के वक्त पिचकारी और दीवाली में इलेक्ट्रानिक दिये। वे हमारी संस्कृति और समाज से मिल कर एकरूप हो गए हैं। वे हमें सस्ता सामान देते हैं और हम ख़रीदते हैं। वे ठगाई नहीं करते।
अब अपने मुल्क में देखिए, लॉक बंदी के दौरान जिस हिंदू लाला के यहाँ से मैं आटा, दाल, चावल लाता था, वहाँ ये सारे सामान चार से दस रुपए प्रति किलो महँगे मिले। सरसों का तेल डेढ़ सौ रुपए लीटर (943 ग्राम) मिला और उस पर भी उसमें सफ़ेद जैसी कोई चीज तैरती मिली। जबकि उसने अपना उत्पाद होने का वायदा किया था। मुझे संदेह है, कि इसमें चर्बी मिली है। सबसे सस्ती चर्बी सुअर की होती है। पाँच किलो तेल फेंक दिया और ग्रोफ़र से मंगाया। चने के आटे में किरकिराहट थी। वह भी फेंकना पड़ा।
भारत में तमाम लोगों की नौकरियाँ गईं, वेतन में भारी कटौती हुई और बहुत से लोग भूख से बेहाल रहे, मज़दूरों का पलायन हुआ। किंतु यहाँ सरकार ने क्या किया? कितने गरीब और निम्न मध्य वित्त वाले परिवारों को कूपन बाँटे गए? या कितने लोगों के बैंक एकाउंट में पैसे आए? मुझे अब यह मत बताने लगिएगा, कि बीपीएल वालों के खाते में 500 या 1000 रुपए डाले गए? इस बीपीएल का घोटाला किसी की समझ में नहीं आएगा। जिस देश में अनामिका शुक्ला की डिग्रियों के बूते अनगिनत अनामिका शुक्ला नौकरी कर रही हों, जहां हर चीज़ में घपला हो, जहां नौकरशाही भ्रष्ट हो और व्यापारी वर्ग सिर्फ़ अपने मुनाफ़े की सोचे। जहां उद्योगपति अपने कर्मचारियों को न्यूनतम पगार दें, जहां स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर माफियागिरी चल रही हो, जहाँ आपको डरा कर हेल्थ बीमा की दूकानदारी हो, जहां राजनीतिक दलों के नेता भाई-भतीजावाद और भयानक रिश्वतखोरी व कमीशनखोरी फैला रहे हों, जहां धर्म, मज़हब और जाति के नाम पर खून-खराबा होता हो, वहाँ सस्ते और टिकाऊ माल की उम्मीद आप कैसे करेंगे? आपने कभी सोचा, कि चीन मुस्लिम या किसी अल्पसंख्यक पहचान को मान्यता नहीं देता। वहाँ से मुसलमान भगाए भी जाते हैं फिर भी मुस्लिम देश पाकिस्तान उसकी गोद में बैठा है और हिंदू बहुल देश नेपाल भी। इस पर विचार करिए।
हाँ, यह मत सोचने लगिएगा कि मैं कोई मोदी विरोधी हूँ। या मैं कोई कम्युनिस्ट, लोहियावादी अथवा कांग्रेसी हूँ। मैं मोदी जी का समर्थक हूँ। मुझे आज भी उनसे उम्मीद है। लेकिन मेरे “लेकिन” का जवाब भी दीजिएगा।
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