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Tuesday, June 23, 2020

फ़िल्म समीक्षा : समाज के वर्गीय चरित्र और उनके संघर्ष का रूपक है 'चमन बहार'



- आशुतोष तिवारी

फ़िल्म में एक दृश्य है। स्कूल से घर के रास्ते पर स्कूटी दौड़ रही है। स्कूटी चला रही है रिंकू, सम्पन्न घर की एक लड़की, जो हैप्पी फैमिली का हिस्सा  है, जिनके पास रखने के लिए कुत्ता है, रहने के लिए बड़ी सुंदर इमारत है । एक तरफ स्कूटी पर समृद्धि है,  रफ्तार है, सौंदर्य है । दूसरी तरफ - ठीक उसी के पीछे, साइकिल है। साइकिल जो स्कूटी की तरह खुद से नही चलती, उसे खींचना पड़ता है। साइकिल का पेट्रोल केवल मनुष्य का श्रम है। उस पर सवार है बिल्लू - जो कच्चे मकान में रहता है - जो गुमटी के दम पर जिंदगी गुजारता है, जिसे अंग्रेजी नही आती है, जो बिखरे हुए परिवार का हिस्सा है। उसने जुर्रत की है - स्कूटी को पकड़ लेने की। उस यंत्र को, जिसमे बहुत रफ्तार है, जिसे चलाने के लिए मनुष्य का श्रम नही किसी दूसरे का रक्त  चाहिए । क्या बिल्लू की साइकिल कभी रिंकू की स्कूटी को पकड़ पाएगी?

नही, साइकिल जब बहुत तेज चलती है  चैन उतर जाती है। सड़के रिंकू की स्कूटी के अनुकूल है, बिल्लू की साइकिल बस इतना साथ दे सकती है कि वह स्कूटी की रफ्तार देख सके, देख कर ललचाये और अपने श्रम का तिनका तिनका लगा कर पूरा जीवन बगैर कुछ हासिल स्वाहा कर दे। उसकी स्कूटी को पकड़ लेने की जुर्रत का इनाम थानेदार की मार है क्योंकि सिस्टम रिंकू के पिता को जानता है लेकिन बिल्लू के पिता को नही। आज का सिस्टम,  रिंकू के पिता का फेमिली फ्रेंड है और इसी वजह से हर बिल्लू बेतहाशा मारा जा रहा है।

बिल्लू के हिस्से में क्या है? एक कुंठा , मार , उसके ही खोल के कुछ सिरफिरे लड़के, और स्कूटी को छू सकने का एक अधूरा सपना। बिललुओं की जब गुमटियां गिरती है तो नेताओ को बस इतना फर्क पड़ता है कि कैसे बिल्लू की आपदा को अवसर में बदल दिया जाए। ये भी सच है कि बिल्लू की जमानत भी दुनिया मे रिंकु के पापा ही कराते हैं। क्योंकि बिल्लू को जीवित रखना है, अपने सौंदर्य के बोध के लिए, खेद जताने के लिए, चॉकलेट्स के किये। आखिरी सीन में जो टी शर्ट बिल्लू ने पहन रखी है उस पर चे ग्वेरा का चित्र है। उसका हासिल क्या है?- एक चित्र- रिंकु का बनाया हुआ- गुमटी की आड़ से रिंकू को देखता बिल्लू- ताकि वह इस चित्र के सहारे सब कुछ भूल जाये और गुमटी में बैठ कर किसी रुमानियत में खोया रहे। जहां रिंकु है , स्कूटी है वहां भीड़ है और इससे बिल्लू की गुमटी भी चलेगी । दोनो वर्ग इस तरह एक दूसरे पर निर्भर हैं। बिल्लू भी वहीं रहेगा रिंकु भी। साइकिल कभी स्कूटी को यूं ही नही पकड़ सकती। आखिरी सीन उसका वही कुत्ता अपना है, जिसको डेला मार कर वह पहली दफा रिंकु से साक्षात्कार करता है। अंत मे उसी कुत्ते से नजदीकी उसके अपने वर्गीय सत्य का स्वीकार है।

यह फ़िल्म देखने पर शोहदेपन की हरकत का विजुलाइजेशन लगेगी। जिन्होंने इसे ऐसे देखा है, मेरा उनसे कोई खास आग्रह नही है। मेरी नजर यह फ़िल्म एक रूपक भी है। समाज के वर्गीय चरित्र और उनके संघर्ष का रुपक - जिसके प्रतिनिधि है- स्कूटी पर सवार रिंकु, पीछे साइकिल भगाता बिल्लू।

और अंत मे आप को यह दिखाने के लिए पोस्टर है कि एक साइकिल पर रिंकू- बिल्लू साथ रह सकते है, ताकि आप इसे देखे। जबकि फ़िल्म मे कहीं बिल्लू और रिंकु की स्वाभाविक बातचीत भी नही है। यह स्कूटी के वर्ग के द्वारा आपके साथ की गयी ठगी है।

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