वॉलीवुड में नेपोटिज्म की बहस: कामयाबी मिलने के बाद कंगना ने जो किया वह क्या है?
- उमाशंकर सिंह
बहुत सारे लोग सुशांत की मौत के पीछे बॉलीवुड के किसी गैंग द्वारा उसे कॉर्नर किया जाना बता रहे हैं। बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बहस भी खड़ी हो गई है। हर चीज के पीछे किसी षडयंत्र की तलाश में रहने वाले हमारे मन को इस सबसे सुकून भी खूब मिलता हे। कुछ कयासबाजों ने तो सुशांत के आर्थिंक तंगी में होने की बात इतने दावे से कर दी जैसे वे सुशांत के सीए हों। सबको वजह जाननी है और एक ही दिन में जाननी चाहिए। इससे पहले कि कल किसी दूसरे मसले पर वे पिल पड़ें वे इस प्रकरण के सारे सवालों के जवाब चाहते हें। वे मामले का पूरा पटाक्षेप चाहते हैं। पर्दा गिर गया और नाटक खत्म हो गया जैसी संतुष्टि चाहते हैं। वे सारे लोग नहीं जानते हैं कि सुशांत आज जिस पोजीशन में थे उन्हें किसी प्रोड्यूसर या गॉड फादर की दरकार रह नहीं गई थी। ऐसे भी उसके बिना ही उसने सब कुछ हासिल किया था।
सुशांत आज इस पोजीशन में थे कि अपनी फिल्म खुद प्रोड्यूस कर सकते हैं। और अगर इतने सारे प्रोड्यूसरों ने सुशांत को अगर बैन ही कर दिया था तो बाकी प्रोड्यूसरों की तो चांदी हो जानी चाहिए थी वे तो लपक ही लेते सुशांत को। पर ऐसा नहीं था। सुशांत बहुत चूजी थे। चुनने से ज्यादा फिल्में ठुकराते थे। फिल्म भले ही राइटर का विजन और डायरेक्टर का मीडियम हो पर ये स्टार ड्रिवेन इंडस्ट्री है। कई अच्छी स्क्रिप्टें होती हैं विद इन द इंडस्ट्री खूब वाहवाही मिल चुकी होती है। बड़े प्रॉड्यूसर भी मिल चुके होते हैं डायरेक्टर असाइन हो चुके होते हैं पर सिर्फ इसलिए नहीं बन रही होती है क्योंकि किसी एक सेलेबेल स्टार ने अपनी डेट नहीं दी होती है। उसका डेट मिलते ही फिल्म का प्रेप शुरू हो जाता है और फिल्में फ्लोर पर चली जाती हैं।
जिन प्रॉडयूसरों के गैंग की बात की जा रही है। वे सब व्यापारी हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सुशांत कमा के दे रहा है या वरूण या टाइगर। जो स्टार चल रहा है वे उसका हजार नखरा उठाने को तैयार रहते हैं और नहीं चलने पर तो तो यशराज ने उदय चोपड़ा की भी फिल्में बनानी बंद कर दी। अगर आप स्टार हैं अगर आप राइटर और डायरेक्टर हैं और कमा के दे रहे हैं तो गण्पति को भी लोग दस दिन के बाद विसर्जित कर देते हैं पर आपको नहीं करेंगे। कंगना पूरी इंडस्ट्री को गरिया कर धड़ल्ले से सर्वाइव कर रही है क्योंकि उसकी फिल्में कमा रही है। लेकिन सलमान या करन जैाहर की पार्टी में हर पार्टी में मिलने वाले एक्टरों का कैरियर भी आपको पता ही है। बंबई में रहना फिल्मों में रहना नहीं होता।
नेपोटिज्म के खिलाफ लड़ाई की सेनापति कंगना ने क्या किया? जब तक स्ट्रग्लर थी, जब तक उसके लिए काम ढूंढना पड़ता या लाना पड़ता था, तब तक बकायदा उसके पास मार्केट का मैनेजर था जो उसके काम के लिए फील्डिंग करता था पचास जगह फोन करता था। मगर जैसे ही कंगना ने खुद ये फेज पार किया अपने स्ट्रगल के दिनों के मैनेजर को सैक कर के अपनी बहन को अपना मैनेजर बना लिया। क्या ये नेपोटिज्म नहीं है?
आप कोई भी हों। बांद्रा में पैदा हुए हों या शिकारपुर में। जब तक आप कमा के देंगे आप यहां सर्वाइव करेंगे। लोग आपका लेट आना सहन करेंगे। आपके एरोगेंस को बर्दाश्त करेंगे। लेकिन जिस दिन आप कमाई का सौदा नहीं रहे, उस दिन वे आपको पहचानेंगे नहीं। ये बॉलीवुड की थोड़ी ज्यादा हो सकती है पर इस दुनिया की ही सचाई है। बाकी सुशांत की आत्महत्या हमारे समय और समाज की वो त्रासदी है जो हर कुछ दिन में हमारे समाज में घटित होनी ही है। उसके कारण कहीं गहरे हैं और कई सारें हैं! अब ये हम पे है कि हम कितने सुशांतों को बचा पाते हैं! (लेखक बॉलीवुड से जुड़े हैं)
बहुत सारे लोग सुशांत की मौत के पीछे बॉलीवुड के किसी गैंग द्वारा उसे कॉर्नर किया जाना बता रहे हैं। बॉलीवुड में नेपोटिज्म की बहस भी खड़ी हो गई है। हर चीज के पीछे किसी षडयंत्र की तलाश में रहने वाले हमारे मन को इस सबसे सुकून भी खूब मिलता हे। कुछ कयासबाजों ने तो सुशांत के आर्थिंक तंगी में होने की बात इतने दावे से कर दी जैसे वे सुशांत के सीए हों। सबको वजह जाननी है और एक ही दिन में जाननी चाहिए। इससे पहले कि कल किसी दूसरे मसले पर वे पिल पड़ें वे इस प्रकरण के सारे सवालों के जवाब चाहते हें। वे मामले का पूरा पटाक्षेप चाहते हैं। पर्दा गिर गया और नाटक खत्म हो गया जैसी संतुष्टि चाहते हैं। वे सारे लोग नहीं जानते हैं कि सुशांत आज जिस पोजीशन में थे उन्हें किसी प्रोड्यूसर या गॉड फादर की दरकार रह नहीं गई थी। ऐसे भी उसके बिना ही उसने सब कुछ हासिल किया था।
सुशांत आज इस पोजीशन में थे कि अपनी फिल्म खुद प्रोड्यूस कर सकते हैं। और अगर इतने सारे प्रोड्यूसरों ने सुशांत को अगर बैन ही कर दिया था तो बाकी प्रोड्यूसरों की तो चांदी हो जानी चाहिए थी वे तो लपक ही लेते सुशांत को। पर ऐसा नहीं था। सुशांत बहुत चूजी थे। चुनने से ज्यादा फिल्में ठुकराते थे। फिल्म भले ही राइटर का विजन और डायरेक्टर का मीडियम हो पर ये स्टार ड्रिवेन इंडस्ट्री है। कई अच्छी स्क्रिप्टें होती हैं विद इन द इंडस्ट्री खूब वाहवाही मिल चुकी होती है। बड़े प्रॉड्यूसर भी मिल चुके होते हैं डायरेक्टर असाइन हो चुके होते हैं पर सिर्फ इसलिए नहीं बन रही होती है क्योंकि किसी एक सेलेबेल स्टार ने अपनी डेट नहीं दी होती है। उसका डेट मिलते ही फिल्म का प्रेप शुरू हो जाता है और फिल्में फ्लोर पर चली जाती हैं।
जिन प्रॉडयूसरों के गैंग की बात की जा रही है। वे सब व्यापारी हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सुशांत कमा के दे रहा है या वरूण या टाइगर। जो स्टार चल रहा है वे उसका हजार नखरा उठाने को तैयार रहते हैं और नहीं चलने पर तो तो यशराज ने उदय चोपड़ा की भी फिल्में बनानी बंद कर दी। अगर आप स्टार हैं अगर आप राइटर और डायरेक्टर हैं और कमा के दे रहे हैं तो गण्पति को भी लोग दस दिन के बाद विसर्जित कर देते हैं पर आपको नहीं करेंगे। कंगना पूरी इंडस्ट्री को गरिया कर धड़ल्ले से सर्वाइव कर रही है क्योंकि उसकी फिल्में कमा रही है। लेकिन सलमान या करन जैाहर की पार्टी में हर पार्टी में मिलने वाले एक्टरों का कैरियर भी आपको पता ही है। बंबई में रहना फिल्मों में रहना नहीं होता।
नेपोटिज्म के खिलाफ लड़ाई की सेनापति कंगना ने क्या किया? जब तक स्ट्रग्लर थी, जब तक उसके लिए काम ढूंढना पड़ता या लाना पड़ता था, तब तक बकायदा उसके पास मार्केट का मैनेजर था जो उसके काम के लिए फील्डिंग करता था पचास जगह फोन करता था। मगर जैसे ही कंगना ने खुद ये फेज पार किया अपने स्ट्रगल के दिनों के मैनेजर को सैक कर के अपनी बहन को अपना मैनेजर बना लिया। क्या ये नेपोटिज्म नहीं है?
आप कोई भी हों। बांद्रा में पैदा हुए हों या शिकारपुर में। जब तक आप कमा के देंगे आप यहां सर्वाइव करेंगे। लोग आपका लेट आना सहन करेंगे। आपके एरोगेंस को बर्दाश्त करेंगे। लेकिन जिस दिन आप कमाई का सौदा नहीं रहे, उस दिन वे आपको पहचानेंगे नहीं। ये बॉलीवुड की थोड़ी ज्यादा हो सकती है पर इस दुनिया की ही सचाई है। बाकी सुशांत की आत्महत्या हमारे समय और समाज की वो त्रासदी है जो हर कुछ दिन में हमारे समाज में घटित होनी ही है। उसके कारण कहीं गहरे हैं और कई सारें हैं! अब ये हम पे है कि हम कितने सुशांतों को बचा पाते हैं! (लेखक बॉलीवुड से जुड़े हैं)
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