Feature 2

Saturday, June 20, 2020

'अगर आप वर्ग विशेष से नफरत नहीं करते तो भाजपा को पसंद करने की कोई और वजह नहीं'


- अंकित द्विवेदी

अगर आप किसी हिन्दू राष्ट्र के समर्थक नहीं है या आपके दिल में किसी वर्ग विशेष के लोगों के लिए नफरत नहीं है तो फिर ऐसी कोई वजह नहीं है जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी को पसंद किया जाए। बीजेपी ने संसद में 2 सीट से मुख्य विपक्षी दल बनने के लिए बाबरी मस्जिद गिराई।जिसके बाद मुंबई सहित पूरे देश मे दंगे हुए। मुंबई का 1993 का बम ब्लास्ट भी मस्जिद गिराने की वजह से हुआ। इस मस्जिद को गिराने के बाद दुनिया के कई देशों में मंदिर भी गिराए गए। बांग्लादेश और पाकिस्तान में हज़ारों हिंदुओं को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस एक घटना से देश की छवि पूरी दुनिया में ख़राब हुई।

इस पार्टी को दुबारा सत्ता में आने के लिए मुज़फ़्फ़रनगर में नफरत की साजिश रचनी पड़ी। उस पश्चिम यूपी में हिंदू - मुसलमानों को अलग किया गया। जहां हज़ारों साल से हिंदुओं और मुसलमानों के रीति - रिवाज एक जैसे थे। शादियों में एक जैसी रस्में होती थी। यहां तक की जाट और गुज्जर नाम की हिंदू जातियां मुसलमानों में भी थी। जो गर्व से खुद को मुसलमान से पहले जाट या गुज्जर कहते रहे हैं।

अब कुछ लोग ये भी तर्क दे सकते है, “इनका भी तो धर्म परिवर्तन हुआ था। वो भी तो गलत था और बाबरी मस्जिद भी तो मंदिर तोड़कर बनाई गई थी” ये दोनों चीज़े गलत हुईं, लेकिन इनका जब जबरन धर्म परिवर्तन हुआ और जब तथाकथित राम मंदिर गिराया गया। तब ना कानून का शासन था और ना ही हम लोकतांत्रिक गणराज्य थे। इसलिए बीजेपी द्वारा बाबर और औरंगजेब के कुकर्मो का बदला जुम्मन मियां से लेना बिल्कुल गलत है।

आज जो बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता और हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी हैं। उनको भी गुजरात में सत्ता बनाएं रखने के लिए गोधरा कांड रचना पड़ा था। वहां 58 हिंदू मारे गए ( ये भी बाबरी मस्जिद से जुड़ा मामला है क्योंकि ये 58 लोग अयोध्या से कारसेवा करके लौट रहे थे) उन 58 लोगों के शवों को गुजरात की सड़कों पर रखकर प्रदर्शन किया गया। जिसके बाद ही गुजरात का दंगा हुआ। इन 58 लोगों के शवों को क्या बिना तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इजाज़त के बिना गुजरात के कई चौराहों पर रखकर प्रदर्शन किया गया? क्या उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि इससे दंगे भड़क सकते है? क्या तब गुजरात कैडर के किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने सीएम को ये नहीं बताया होगा कि इससे दंगे भड़क सकते है? क्या सीएम ने इतने बड़े निर्णय के लिए अपने प्रशासनिक अधिकारियों से सलाह नहीं लेना चाहिए था? अगर उनकी इज़ाजत के बिना शव चौराहों पर रखकर प्रदर्शन किया गया तो फिर ये मुख्यमंत्री की नाकामी नहीं है? यही वो घटना थी जिसने बीजेपी को अपने स्वर्णिम दौर में पहुंचा दिया।

अब अगर 6 सालों के शासन की बात करे तो मुझे नहीं लगता कि कुछ गिनाने की जरूरत है। नोटबंदी कि नाकामी आपको चारों तरफ दिख ही रही है। सीमा पर जवानों की सुविधाओं में कमी की खबर आपने पढ़ी ही होगी। जवानों की शहादत भी इन 6 सालों से लगातार खबर बनती रही है। अब देश की राजधानी में हिंसा के बाद मौतों का बढ़ता आंकड़ा भी बीजेपी की नाकामी चीख - चीख याद दिला रहा है। ऐसे में कोई वजह नहीं बचती जिसके कारण बीजेपी को पसंद किया जाए। (ये लेखक के निजी विचार हैं, उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित)

No comments:

Post a Comment

Popular

CONTACT US

VOICE OF MEDIA
is a news, views, analysis, opinion, and knowledge venture, launched in 2012. Basically, we are focused on media, but we also cover various issues, like social, political, economic, etc. We welcome articles, open letters, film/TV series/book reviews, and comments/opinions from readers, institutions, organizations, and fellow journalists. Please send your submission to:
edit.vom@gmail.com

TOP NEWS