अहमदाबाद का ऐसा हाल तो पूरे गुजरात में कैसा होगा? पढ़िए एक बड़े संस्थान के पत्रकार की आपबीती
अहमदाबाद. 44 वर्षीय उमेश अहमदाबाद मेट्रो कोर्ट में बतौर वरिष्ठ अधिवक्ता..12 मई को उनका टेस्ट हुआ जिसमें वो कोरोना पॉज़िटिव पाए गए. 11 मई को जब उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ महसूस हुई तो मेरी बहन शेफ़ाली उन्हें पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल ले गई. आनंद सर्जिकल अस्पताल को कुछ दिन पहले ही अहमदाबाद नगर निगम ने कोविड-19 के मरीज़ों के लिए सूचीबद्ध किया था. यह काफ़ी जाना माना अस्पताल है. शेफ़ाली ने मुझे अस्पताल से ही फ़ोन किया और सारी जानकारी दी.
मैंने आनंद सर्जिकल अस्पताल में फोन किया तो पता चला कि भले ही यह अस्पताल कोरोना मरीज़ों के लिए हो लेकिन उनके पास अभी तक कोई आइसोलेशन रूम नहीं है.उनके पास वेंटिलेटर भी नहीं है और डॉक्टर भी नहीं, जो कोरोना मरीज़ों का इलाज कर सकें. मैंने शेफ़ाली से कहा कि वो किसी और अस्पताल में जाने की कोशिश करे. उसने एक के बाद एक कई अस्पतालों से संपर्क किया लेकिन कोई भी अस्पताल उमेश को शुरुआती इलाज देने के लिए भी तैयार नहीं हुआ.
पास में ही एक दूसरा अस्पताल था, जिसने उमेश के सांस ना ले पाने की जांच के लिए सीने का एक्स-रे किया. एक्स-रे रिपोर्ट के मुताबिक उमेश की छाती में कफ़ जमा हो गया था. मेरी बहन शेफ़ाली भारत की एक जानी-मानी आईटी कंपनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है. वो कुबेरनगर के छारानगर में अपने परिवार के साथ रहती है. यह इलाक़ा मुंबई के धारावी का छोटा प्रारूप है.हम छारानगर में एक साथ पले-बढ़े. कुछ वक़्त बाद मैं दूसरे इलाक़े में शिफ़्ट हो गया लेकिन शेफ़ाली ने छारानगर में ही रहने का फ़ैसला किया.
मेरे बहनोई और बहन ने छारानगर के नवकोली इलाक़े में अपना मकान बनाया था. उनकी दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी खुशाली ने कुछ वक़्त पहले ही बारहवीं की परीक्षा दी थी और वो नीट की तैयारी कर रही थी. छोटी बेटी उर्वशी 15 साल की है. उर्वशी ने दसवीं की परीक्षा दी है. एक्स रे की रिपोर्ट मिलने के बाद शेफ़ाली ने मुझे फोन किया और कहा कि रेडियोलॉजिस्ट को आशंका है कि उमेश को कोरोना संक्रमण है.
इससे कुछ दिन पहले, मैंने कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार की समग्र तैयारियों पर रिपोर्ट तैयार की थी और स्वास्थ्य आयुक्त जयप्रकाश शिवहरे और अहमदाबाद सिविल अस्पताल के तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक जीएच राठौड़ का साक्षात्कार भी किया था.उन दोनों का कहना था कि महामारी से निपटने के लिए उनकी ओर से पूरी तैयारी है. उन्होंने ये भी कहा कि उनके पास अच्छी गुणवत्ता के वेंटिलेटर हैं और अहमदाबाद सिविल अस्पताल में उनके पास ट्रेंड स्टाफ़ भी हैं.
शेफ़ाली से बात करते हुए मेरे दिमाग़ में तुरंत ये बात कौंधी. मैंने शेफ़ाली से कहा कि वो उमेश को प्राइमरी इलाज के लिए सिविल अस्पताल लेकर जाए. और मैंने मेडिकल सुप्रीटेंडेंट को फ़ोन कर दिया.साथ ही वहां के डॉक्टरों से भी बात कर ली. उन्होंने कहा कि वे मरीज़ को देख लेंगे और अगर ज़रूरत लगी तो वो उसे भर्ती भी कर लेंगे. छाती का एक्स रे देखने के बाद उमेश को पहले सस्पेक्टेड वॉर्ड में रखा गया और उसके बाद उसे कोरोना वॉर्ड में शिफ़्ट कर दिया गया.
उमेश के और बेहतर इलाज के लिए मैंने उप मुख्यमंत्री नितिनभाई से बात की. वो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं. उन्होंने सारी बात सुनी और असरवा के सिविल अस्पताल के डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे उमेश का ध्यान रखें.लेकिन इतनी सारी कोशिशों के बावजूद डॉक्टरों ने उमेश की हालत बिगड़ने की कोई सूचना नहीं दी और मंगलवार को उसे आईसीयू में शिफ़्ट कर दिया गया. मैं सरकारी अस्पताल की बदइंतजामी को लेकर परेशान था तो मैंने स्टरलिंग अस्पताल में संपर्क किया. ये अस्पताल ख़ासतौर पर कोरोना मरीज़ों के लिए नामित किया गया है. वहां से मुझे जवाब मिला कि यह अस्पताल भरा हुआ है. इसके बाद मैंने एचसीजी अस्पताल को संपर्क किया. वहां से भी यही जवाब मिला कि अस्पताल फ़ुल है. इसके बाद चंदखेड़ा के एसएमएस अस्पताल से जवाब मिला कि वो सिविल अस्पताल से लौटे मरीज़ को अपने यहां भर्ती नहीं करेंगे, ये उनके नियमों के ख़िलाफ़ है.
इसके बाद तपन अस्पताल, सीआईएमएस अस्पताल, नारायणी अस्पताल में तो किसी ने फ़ोन कॉल तक का जवाब नहीं दिया. एक-एक करके मैंने ना जाने कितने प्राइवेट अस्पतालों में फोन किया लेकिन पूरे शहर में एक बेड नहीं मिला. मैंने अपने कुछ पत्रकार दोस्तों को फ़ोन किया. क्राइम रिपोर्टर, हेल्थ रिपोर्टर सभी को. उन्होंने भी मेरे लिए भरपूर कोशिश की लेकिन उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली.
12 मई और 13 मई को हमारी लाख कोशिशों के बावजूद हमें किसी भी अस्पताल में एक बेड नहीं मिला. कहीं कोई कमरा खाली नहीं था. इसके बाद मैंने शहर के मेयर को संपर्क किया.उन्होंने कहा कि किसी प्राइवेट अस्पताल में इस समय बेड मिल पाना बहुत मुश्किल है लेकिन वो सिविल अस्पताल के सुप्रीटेंडेंट से बात करेंगी और उन्हें कहेंगे कि वे उमेश का अच्छी तरह से इलाज करें. हालांकि उस वक़्त भी उमेश की हालत ख़राब थी और वो ऑक्सीजन पर ही थे.इससे पहले कि उमेश को लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम पर शिफ़्ट किया जाता मुझे डॉक्टर कमलेश उपाध्याय की तरफ़ से एक फोन आया. उन्होंने बताया कि उमेश की सांस अभी स्थिर नहीं हो पा रही है इसलिए उसे वेंटिलेटर पर शिफ़्ट कर रहे हैं.
वीडियो कॉल के ज़रिए उन्होंने मुझे उमेश को दिखाया. जो ऑक्सीजन लेने के लिए संघर्ष कर रहा था. वो बोल भी नहीं पा रहा था. अपने पति का यह हाल देख मेरी जीएम बहन शेफाली दिन ब दिन टूटती जा रही थी...वो डरी हुई थी और कमज़ोर हो गई थी. परिवार के कई सदस्य पास में ही रहते हैं लेकिन कोई भी उससे मिलने नहीं जा सकता था. उसे ढांढस ही दे सके. वह अपनी दोनों बेटियों के साथ अकेली थी. दोनों बेटियां लगातार अपने पिता के वापस आने के लिए प्रार्थना कर रही थीं.
शेफ़ाली को लगा कि उसे भी अपना चेकअप करवा लेना चाहिए क्योंकि वो उमेश के सीधे संपर्क में थी. शेफ़ाली को हाई ब्लड प्रेशर है और वो डायबिटिक भी है.उसने हेल्पलाइन 104 पर फ़ोन किया ताकि वो भी अपना टेस्ट करवा सके. मैंने कई अधिकारियों को शेफ़ाली के टेस्ट के लिए फ़ोन किया लेकिन मेरे किसी भी फ़ोन कॉल का कोई नतीजा नहीं निकला. अगले तीन दिन तक भी उसका टेस्ट नहीं हो सका. हम बहुत डरे हुए थे. लेकिन सरकारी अधिकारी जवाब नहीं दे रहे थे तो उसके बाद हमने फ़ैसला किया कि हम कोरोना संक्रमण जांच के लिए नामित प्रयोगशालाओं में से किसी एक में शेफ़ाली का टेस्ट करवा लेते हैं.
निजी अस्पतालों में परीक्षण रोकने के लिए सरकार की ओर से जारी सर्कुलर अभी तक आया नहीं था. लैब वालों ने टेस्ट करने के लिए डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन मांगा. मैंने अपने इलाक़े घाटलोदिया के एक प्राइवेट डॉक्टर से पर्चा बनवा लिया था. इसके बाद लैब टेक्नीशियन ने बताया कि सरकार ने उन्हें अब कोई भी सैंपल स्वीकार नहीं करने का आदेश दिया है.
प्राइवेट लैब जाने से एक दिन पहले ही शेफ़ाली पास के ही अर्बन हेल्थ सेंटर गई थी. वहां जाकर उसे सिर्फ़ लंबी कतार देखने को मिली थी. वहां स्टाफ़ का कोई शख़्स नहीं था जो टेस्ट कर रहा हो. वो वापस लौट आई और उसके बाद उसने प्राइवेट लैब में टेस्ट कराने के बारे में सोचा लेकिन अंत में टेस्ट वहां भी नहीं हो सका.
उसके साथ जो कुछ हो रहा था उसने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री को टैग करते हुए ट्वीट करूं और इन सारे हालातों के बारे में बताऊं. हालांकि मेरा ट्वीट कई बार री-ट्वीट हुआ लेकिन हमें वहां से भी कोई मदद नहीं मिली. कुछ पत्रकार दोस्तों की मदद से 15 मई को शेफ़ाली का टेस्ट हो गया. अगले दिन हमे टेस्ट के रिज़ल्ट भी मिल गए. टेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक़, शेफ़ाली और उसकी छोटी बेटी उर्वशी का सैंपल पॉज़िटिव आया था. हमने तय किया कि हम उसे इलाज के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल भेजेंगे
16 मई की शाम के क़रीब चार बजे शेफ़ाली को साइंस सिटी रोड स्थित सीआईएमएस अस्पताल में भर्ती कर लिया गया. अस्पताल जाने के रास्ते में जब हम सिविल हॉस्पिटल के सामने से गुज़र रहे थे तभी एक रिश्तेदार ने मुझे फ़ोन किया और कहा क्या मैं उमेश की हालत के बारे में एकबार मालूम कर सकता हूं.मैंने उन्हें बताया कि मैं सुबह से डॉक्टरों से संपर्क करके उमेश की हालत जानने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे रहा है. उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें कहीं से सूचना मिली है कि आज सुबह ही उमेश की मौत हो गई.
मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था, मैं सोच तक नहीं पा रहा था, कुछ भी कर तक नहीं पा रहा था. मैं एंबुलेंस के पीछे-पीछे था और मैं अपनी कार को रोक नहीं सकता था. मैंने डॉक्टर कमलेश उपाध्याय को फ़ोन किया. लेकिन उन्होंने कुछ भी बता कर नहीं दिया. इसके बाद मैंने कुछेक और लोगों को भी कॉल किया. मैंने डॉक्टर मैत्रयी गज्जर को फ़ोन किया, उन्होंने पुष्टि की कि उमेश ने शनिवार की सुबह अपनी आख़िरी सांस ली थी.
मेरे लिए सबसे मुश्किल था अपनी बहन को ये बताना कि उसका पति मर चुका है. उसका मृत शरीर घंटों से यूं ही बिना किसी की निगरानी में रखा हुआ है. एंबुलेंस उसे वापस घर नहीं ले जाने वाली थी और कोई भी निजी साधन उपलब्ध नहीं था. ना ही मैं उसे अपनी कार में बैठने दे सकता था. ऐसे में उसका घर जाना एक बड़ी मुश्किल थी. मैंने किसी तरह एक स्कूटर का इंतज़ाम किया और उसे घर लौटने को कहा. मैं उसके पीछे-पीछे था. जब वो घर पहुंची तो उसे उमेश की मौत के बारे में पता चला.
महज़ तीन दिनों में कोरोना वायरस ने उसके पूरे घर को बिखेर दिया था. मैं जो 20 सालों से इस शहर में पत्रकार हूं. राज्य के बड़े नामचीन और प्रभावशाली लोगों तक पहुंच है, अपनी बहन के पति को अहमदाबाद जैसे बड़े और महत्वपूर्ण शहर की बदइंतजामी के चलते नहीं बचा पाया..उमेश की मौत के 20 दिन बाद तक मुझे ये नहीं पता चल सका कि उसे क्या इलाज दिया गया और उसकी मौत कब हुई. डॉक्टरों ने उसे बचाने के लिए आख़िरी प्रयास के तौर पर क्या किया. कौन सा वेंटिलेटर इस्तेमाल किया गया था. सिविल अधिकारी उमेश के खोए हुए मोबाइल, सिम कार्ड और उसकी कलाई घड़ी के सवाल पर भी कोई जवाब नहीं दे सके.
इस घटना के बारे में जब मैंने लोगों को बताया तो लगभग हर किसी ने यही कहा कि सोचो अगर ऐसा तुम्हारे साथ हो रहा है तो उनका क्या जो बेहद सामान्य लोग हैं. उन लोगों के बारे में सोचो जो किसी बड़े ओहदे वाले आदमी को नहीं जानते, उन लोगों के साथ क्या कुछ हो रहा होगा?अहमदाबाद में कई पॉज़िटिव केस हैं. हर रोज़ कोरोना मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है और उसी के साथ बेड की उपलब्धता घट रही है. मौजूदा समय में सिर्फ़ उन लोगों की जांच हो रही है जिनमें लक्षण दिख रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि जिस किसी का भी टेस्ट हो रहा है उसे बेड और डॉक्टर दोनों की ज़रूरत है लेकिन शहर में ना तो अतिरिक्त बेड हैं और ना ही डॉक्टर.
अहमदाबाद में जो हालात अभी हैं वो डराने वाले हैं. मैं ख़ुद कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव को भुगत चुका हूं और अब कोशिश कर रहा हूं कि दूसरों की मदद कर सकूं. उन्हें प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवा सकूं. बहुत से लोग मदद के लिए फ़ोन करते हैं. अहमदाबाद में इस तरह की लाचारी और बेचारगी हर रोज़ देखने को मिल रही है. बहुत से लोग हैं जो घर पर ही मर गए क्योंकि उन्हें बेड नहीं मिले. कोरोना वायरस ने परिवारों को बिखेर दिया है. शेफ़ाली की तरह कइयों के परिवार बिखर गए होंगे. और ऐसा लगता है कि सरकार को समझ ही नहीं आ रहा कि वो इन परिस्थितियों को कैसे संभाले. हम सभी अच्छे इलाज के हक़दार हैं और गरिमापूर्ण मौत के भी.
बहरहाल शेफ़ाली को 18 मई को एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती किया गया. पांच दिन चले इलाज के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया. वहीं शेफ़ाली की 15 वर्षीय बेटी उर्वशी हमारी आंटी के साथ घर पर ही थी. वहीं खुशाली, जिसका टेस्ट नेगेटिव आ गया था, वो इन दिनों घर से दूर अकेली रह रही थी. तीनों 23 मई को मिलीं और तबसे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रही हैं. शेफ़ाली वर्क फ्रॉम होम शुरू करने की कोशिश कर रही है.
मैंने आनंद सर्जिकल अस्पताल में फोन किया तो पता चला कि भले ही यह अस्पताल कोरोना मरीज़ों के लिए हो लेकिन उनके पास अभी तक कोई आइसोलेशन रूम नहीं है.उनके पास वेंटिलेटर भी नहीं है और डॉक्टर भी नहीं, जो कोरोना मरीज़ों का इलाज कर सकें. मैंने शेफ़ाली से कहा कि वो किसी और अस्पताल में जाने की कोशिश करे. उसने एक के बाद एक कई अस्पतालों से संपर्क किया लेकिन कोई भी अस्पताल उमेश को शुरुआती इलाज देने के लिए भी तैयार नहीं हुआ.
पास में ही एक दूसरा अस्पताल था, जिसने उमेश के सांस ना ले पाने की जांच के लिए सीने का एक्स-रे किया. एक्स-रे रिपोर्ट के मुताबिक उमेश की छाती में कफ़ जमा हो गया था. मेरी बहन शेफ़ाली भारत की एक जानी-मानी आईटी कंपनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है. वो कुबेरनगर के छारानगर में अपने परिवार के साथ रहती है. यह इलाक़ा मुंबई के धारावी का छोटा प्रारूप है.हम छारानगर में एक साथ पले-बढ़े. कुछ वक़्त बाद मैं दूसरे इलाक़े में शिफ़्ट हो गया लेकिन शेफ़ाली ने छारानगर में ही रहने का फ़ैसला किया.
मेरे बहनोई और बहन ने छारानगर के नवकोली इलाक़े में अपना मकान बनाया था. उनकी दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी खुशाली ने कुछ वक़्त पहले ही बारहवीं की परीक्षा दी थी और वो नीट की तैयारी कर रही थी. छोटी बेटी उर्वशी 15 साल की है. उर्वशी ने दसवीं की परीक्षा दी है. एक्स रे की रिपोर्ट मिलने के बाद शेफ़ाली ने मुझे फोन किया और कहा कि रेडियोलॉजिस्ट को आशंका है कि उमेश को कोरोना संक्रमण है.
इससे कुछ दिन पहले, मैंने कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार की समग्र तैयारियों पर रिपोर्ट तैयार की थी और स्वास्थ्य आयुक्त जयप्रकाश शिवहरे और अहमदाबाद सिविल अस्पताल के तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक जीएच राठौड़ का साक्षात्कार भी किया था.उन दोनों का कहना था कि महामारी से निपटने के लिए उनकी ओर से पूरी तैयारी है. उन्होंने ये भी कहा कि उनके पास अच्छी गुणवत्ता के वेंटिलेटर हैं और अहमदाबाद सिविल अस्पताल में उनके पास ट्रेंड स्टाफ़ भी हैं.
शेफ़ाली से बात करते हुए मेरे दिमाग़ में तुरंत ये बात कौंधी. मैंने शेफ़ाली से कहा कि वो उमेश को प्राइमरी इलाज के लिए सिविल अस्पताल लेकर जाए. और मैंने मेडिकल सुप्रीटेंडेंट को फ़ोन कर दिया.साथ ही वहां के डॉक्टरों से भी बात कर ली. उन्होंने कहा कि वे मरीज़ को देख लेंगे और अगर ज़रूरत लगी तो वो उसे भर्ती भी कर लेंगे. छाती का एक्स रे देखने के बाद उमेश को पहले सस्पेक्टेड वॉर्ड में रखा गया और उसके बाद उसे कोरोना वॉर्ड में शिफ़्ट कर दिया गया.
उमेश के और बेहतर इलाज के लिए मैंने उप मुख्यमंत्री नितिनभाई से बात की. वो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं. उन्होंने सारी बात सुनी और असरवा के सिविल अस्पताल के डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे उमेश का ध्यान रखें.लेकिन इतनी सारी कोशिशों के बावजूद डॉक्टरों ने उमेश की हालत बिगड़ने की कोई सूचना नहीं दी और मंगलवार को उसे आईसीयू में शिफ़्ट कर दिया गया. मैं सरकारी अस्पताल की बदइंतजामी को लेकर परेशान था तो मैंने स्टरलिंग अस्पताल में संपर्क किया. ये अस्पताल ख़ासतौर पर कोरोना मरीज़ों के लिए नामित किया गया है. वहां से मुझे जवाब मिला कि यह अस्पताल भरा हुआ है. इसके बाद मैंने एचसीजी अस्पताल को संपर्क किया. वहां से भी यही जवाब मिला कि अस्पताल फ़ुल है. इसके बाद चंदखेड़ा के एसएमएस अस्पताल से जवाब मिला कि वो सिविल अस्पताल से लौटे मरीज़ को अपने यहां भर्ती नहीं करेंगे, ये उनके नियमों के ख़िलाफ़ है.
इसके बाद तपन अस्पताल, सीआईएमएस अस्पताल, नारायणी अस्पताल में तो किसी ने फ़ोन कॉल तक का जवाब नहीं दिया. एक-एक करके मैंने ना जाने कितने प्राइवेट अस्पतालों में फोन किया लेकिन पूरे शहर में एक बेड नहीं मिला. मैंने अपने कुछ पत्रकार दोस्तों को फ़ोन किया. क्राइम रिपोर्टर, हेल्थ रिपोर्टर सभी को. उन्होंने भी मेरे लिए भरपूर कोशिश की लेकिन उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली.
12 मई और 13 मई को हमारी लाख कोशिशों के बावजूद हमें किसी भी अस्पताल में एक बेड नहीं मिला. कहीं कोई कमरा खाली नहीं था. इसके बाद मैंने शहर के मेयर को संपर्क किया.उन्होंने कहा कि किसी प्राइवेट अस्पताल में इस समय बेड मिल पाना बहुत मुश्किल है लेकिन वो सिविल अस्पताल के सुप्रीटेंडेंट से बात करेंगी और उन्हें कहेंगे कि वे उमेश का अच्छी तरह से इलाज करें. हालांकि उस वक़्त भी उमेश की हालत ख़राब थी और वो ऑक्सीजन पर ही थे.इससे पहले कि उमेश को लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम पर शिफ़्ट किया जाता मुझे डॉक्टर कमलेश उपाध्याय की तरफ़ से एक फोन आया. उन्होंने बताया कि उमेश की सांस अभी स्थिर नहीं हो पा रही है इसलिए उसे वेंटिलेटर पर शिफ़्ट कर रहे हैं.
वीडियो कॉल के ज़रिए उन्होंने मुझे उमेश को दिखाया. जो ऑक्सीजन लेने के लिए संघर्ष कर रहा था. वो बोल भी नहीं पा रहा था. अपने पति का यह हाल देख मेरी जीएम बहन शेफाली दिन ब दिन टूटती जा रही थी...वो डरी हुई थी और कमज़ोर हो गई थी. परिवार के कई सदस्य पास में ही रहते हैं लेकिन कोई भी उससे मिलने नहीं जा सकता था. उसे ढांढस ही दे सके. वह अपनी दोनों बेटियों के साथ अकेली थी. दोनों बेटियां लगातार अपने पिता के वापस आने के लिए प्रार्थना कर रही थीं.
शेफ़ाली को लगा कि उसे भी अपना चेकअप करवा लेना चाहिए क्योंकि वो उमेश के सीधे संपर्क में थी. शेफ़ाली को हाई ब्लड प्रेशर है और वो डायबिटिक भी है.उसने हेल्पलाइन 104 पर फ़ोन किया ताकि वो भी अपना टेस्ट करवा सके. मैंने कई अधिकारियों को शेफ़ाली के टेस्ट के लिए फ़ोन किया लेकिन मेरे किसी भी फ़ोन कॉल का कोई नतीजा नहीं निकला. अगले तीन दिन तक भी उसका टेस्ट नहीं हो सका. हम बहुत डरे हुए थे. लेकिन सरकारी अधिकारी जवाब नहीं दे रहे थे तो उसके बाद हमने फ़ैसला किया कि हम कोरोना संक्रमण जांच के लिए नामित प्रयोगशालाओं में से किसी एक में शेफ़ाली का टेस्ट करवा लेते हैं.
निजी अस्पतालों में परीक्षण रोकने के लिए सरकार की ओर से जारी सर्कुलर अभी तक आया नहीं था. लैब वालों ने टेस्ट करने के लिए डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन मांगा. मैंने अपने इलाक़े घाटलोदिया के एक प्राइवेट डॉक्टर से पर्चा बनवा लिया था. इसके बाद लैब टेक्नीशियन ने बताया कि सरकार ने उन्हें अब कोई भी सैंपल स्वीकार नहीं करने का आदेश दिया है.
प्राइवेट लैब जाने से एक दिन पहले ही शेफ़ाली पास के ही अर्बन हेल्थ सेंटर गई थी. वहां जाकर उसे सिर्फ़ लंबी कतार देखने को मिली थी. वहां स्टाफ़ का कोई शख़्स नहीं था जो टेस्ट कर रहा हो. वो वापस लौट आई और उसके बाद उसने प्राइवेट लैब में टेस्ट कराने के बारे में सोचा लेकिन अंत में टेस्ट वहां भी नहीं हो सका.
उसके साथ जो कुछ हो रहा था उसने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री को टैग करते हुए ट्वीट करूं और इन सारे हालातों के बारे में बताऊं. हालांकि मेरा ट्वीट कई बार री-ट्वीट हुआ लेकिन हमें वहां से भी कोई मदद नहीं मिली. कुछ पत्रकार दोस्तों की मदद से 15 मई को शेफ़ाली का टेस्ट हो गया. अगले दिन हमे टेस्ट के रिज़ल्ट भी मिल गए. टेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक़, शेफ़ाली और उसकी छोटी बेटी उर्वशी का सैंपल पॉज़िटिव आया था. हमने तय किया कि हम उसे इलाज के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल भेजेंगे
16 मई की शाम के क़रीब चार बजे शेफ़ाली को साइंस सिटी रोड स्थित सीआईएमएस अस्पताल में भर्ती कर लिया गया. अस्पताल जाने के रास्ते में जब हम सिविल हॉस्पिटल के सामने से गुज़र रहे थे तभी एक रिश्तेदार ने मुझे फ़ोन किया और कहा क्या मैं उमेश की हालत के बारे में एकबार मालूम कर सकता हूं.मैंने उन्हें बताया कि मैं सुबह से डॉक्टरों से संपर्क करके उमेश की हालत जानने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे रहा है. उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें कहीं से सूचना मिली है कि आज सुबह ही उमेश की मौत हो गई.
मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था, मैं सोच तक नहीं पा रहा था, कुछ भी कर तक नहीं पा रहा था. मैं एंबुलेंस के पीछे-पीछे था और मैं अपनी कार को रोक नहीं सकता था. मैंने डॉक्टर कमलेश उपाध्याय को फ़ोन किया. लेकिन उन्होंने कुछ भी बता कर नहीं दिया. इसके बाद मैंने कुछेक और लोगों को भी कॉल किया. मैंने डॉक्टर मैत्रयी गज्जर को फ़ोन किया, उन्होंने पुष्टि की कि उमेश ने शनिवार की सुबह अपनी आख़िरी सांस ली थी.
मेरे लिए सबसे मुश्किल था अपनी बहन को ये बताना कि उसका पति मर चुका है. उसका मृत शरीर घंटों से यूं ही बिना किसी की निगरानी में रखा हुआ है. एंबुलेंस उसे वापस घर नहीं ले जाने वाली थी और कोई भी निजी साधन उपलब्ध नहीं था. ना ही मैं उसे अपनी कार में बैठने दे सकता था. ऐसे में उसका घर जाना एक बड़ी मुश्किल थी. मैंने किसी तरह एक स्कूटर का इंतज़ाम किया और उसे घर लौटने को कहा. मैं उसके पीछे-पीछे था. जब वो घर पहुंची तो उसे उमेश की मौत के बारे में पता चला.
महज़ तीन दिनों में कोरोना वायरस ने उसके पूरे घर को बिखेर दिया था. मैं जो 20 सालों से इस शहर में पत्रकार हूं. राज्य के बड़े नामचीन और प्रभावशाली लोगों तक पहुंच है, अपनी बहन के पति को अहमदाबाद जैसे बड़े और महत्वपूर्ण शहर की बदइंतजामी के चलते नहीं बचा पाया..उमेश की मौत के 20 दिन बाद तक मुझे ये नहीं पता चल सका कि उसे क्या इलाज दिया गया और उसकी मौत कब हुई. डॉक्टरों ने उसे बचाने के लिए आख़िरी प्रयास के तौर पर क्या किया. कौन सा वेंटिलेटर इस्तेमाल किया गया था. सिविल अधिकारी उमेश के खोए हुए मोबाइल, सिम कार्ड और उसकी कलाई घड़ी के सवाल पर भी कोई जवाब नहीं दे सके.
इस घटना के बारे में जब मैंने लोगों को बताया तो लगभग हर किसी ने यही कहा कि सोचो अगर ऐसा तुम्हारे साथ हो रहा है तो उनका क्या जो बेहद सामान्य लोग हैं. उन लोगों के बारे में सोचो जो किसी बड़े ओहदे वाले आदमी को नहीं जानते, उन लोगों के साथ क्या कुछ हो रहा होगा?अहमदाबाद में कई पॉज़िटिव केस हैं. हर रोज़ कोरोना मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है और उसी के साथ बेड की उपलब्धता घट रही है. मौजूदा समय में सिर्फ़ उन लोगों की जांच हो रही है जिनमें लक्षण दिख रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि जिस किसी का भी टेस्ट हो रहा है उसे बेड और डॉक्टर दोनों की ज़रूरत है लेकिन शहर में ना तो अतिरिक्त बेड हैं और ना ही डॉक्टर.
अहमदाबाद में जो हालात अभी हैं वो डराने वाले हैं. मैं ख़ुद कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव को भुगत चुका हूं और अब कोशिश कर रहा हूं कि दूसरों की मदद कर सकूं. उन्हें प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवा सकूं. बहुत से लोग मदद के लिए फ़ोन करते हैं. अहमदाबाद में इस तरह की लाचारी और बेचारगी हर रोज़ देखने को मिल रही है. बहुत से लोग हैं जो घर पर ही मर गए क्योंकि उन्हें बेड नहीं मिले. कोरोना वायरस ने परिवारों को बिखेर दिया है. शेफ़ाली की तरह कइयों के परिवार बिखर गए होंगे. और ऐसा लगता है कि सरकार को समझ ही नहीं आ रहा कि वो इन परिस्थितियों को कैसे संभाले. हम सभी अच्छे इलाज के हक़दार हैं और गरिमापूर्ण मौत के भी.
बहरहाल शेफ़ाली को 18 मई को एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती किया गया. पांच दिन चले इलाज के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया. वहीं शेफ़ाली की 15 वर्षीय बेटी उर्वशी हमारी आंटी के साथ घर पर ही थी. वहीं खुशाली, जिसका टेस्ट नेगेटिव आ गया था, वो इन दिनों घर से दूर अकेली रह रही थी. तीनों 23 मई को मिलीं और तबसे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रही हैं. शेफ़ाली वर्क फ्रॉम होम शुरू करने की कोशिश कर रही है.
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