अगर भूतों की दुनिया है तो हम सबको क्यों नहीं दिखती?
-डॉ अबरार मुल्तानी
मैं तनाव प्रबंधन पर लेक्चर दे रहा था एक श्रोता समूह को। उसमें एक जगह मैंने बताया कि आपको नकारात्मकता (जैसे टीवी प्रोग्राम, बेवज़ह को खबरें और सोशल मीडिया से) से दूर रहना चाहिए। क्योंकि हमारा मस्तिष्क जो चीज बार-बार देखता और सुनता है उसे सच मानने लगता है, जैसे कि 'भूत' को। हममें से किसी ने भी भूत को नहीं देखा है लेकिन हम उनके अस्तित्व को सत्य मानते हैं।
अंधेरे में या बियाबान जंगलों में जाने से हमें भूतों का डर रोकता है, जबकि हमने उन्हें कभी नहीं देखा। बस उनके बारे में सुना है, कहानियों में, किस्सों में लेकिन हमारे मस्तिष्क ने उन्हें सत्य मान लिया। क्यों? क्योंकि, हमने उनके बारे में बार-बार सुना है इसलिए। मेरी यह बात खत्म होने से पहले ही उनमें से एक व्यक्ति ने अपना हाथ उठाया और कहा कि, "सर मैंने भूत को देखा है, इसलिए आप ऐसा नहीं कह सकते कि भूत नहीं होते हैं।"
मैंने उनसे पूछा कि आपने कब देखा भूत? उसने कहा कि जब मैं छोटा था लगभग 14 साल का। उस वक्त हमारे पड़ोसी की मृत्यु हुई जो कि मेरे पिता के मित्र थे। उनकी मृत्यु के 3 या 4 दिन बाद एक रात मैं मूत्र त्याग करने के लिए घर से बाहर निकला, मूत्र करने के बाद मैं पलटा तो क्या देखता हूं कि पास वाले चबूतरे पर वह व्यक्ति जिनकी मृत्यु हो गई थी वहां बीड़ी पी रहे थे और जोर जोर से हँस रहे थे।
अंधेरे में या बियाबान जंगलों में जाने से हमें भूतों का डर रोकता है, जबकि हमने उन्हें कभी नहीं देखा। बस उनके बारे में सुना है, कहानियों में, किस्सों में लेकिन हमारे मस्तिष्क ने उन्हें सत्य मान लिया। क्यों? क्योंकि, हमने उनके बारे में बार-बार सुना है इसलिए। मेरी यह बात खत्म होने से पहले ही उनमें से एक व्यक्ति ने अपना हाथ उठाया और कहा कि, "सर मैंने भूत को देखा है, इसलिए आप ऐसा नहीं कह सकते कि भूत नहीं होते हैं।"
मैंने उनसे पूछा कि आपने कब देखा भूत? उसने कहा कि जब मैं छोटा था लगभग 14 साल का। उस वक्त हमारे पड़ोसी की मृत्यु हुई जो कि मेरे पिता के मित्र थे। उनकी मृत्यु के 3 या 4 दिन बाद एक रात मैं मूत्र त्याग करने के लिए घर से बाहर निकला, मूत्र करने के बाद मैं पलटा तो क्या देखता हूं कि पास वाले चबूतरे पर वह व्यक्ति जिनकी मृत्यु हो गई थी वहां बीड़ी पी रहे थे और जोर जोर से हँस रहे थे।
मैंने उन्हें बैठने के लिए कहा और फिर पूरे समूह से मुखातिब होते हुए बोला कि, "आज हमें दो बातें भूतों के बारे में नई पता चली हैं- एक तो यह कि वे बीड़ी पीते हैं और दूसरा यह की उनकी दुनिया में भी पान-बीड़ी की दुकान होती है, जहां से वे बीड़ी खरीदते हैं।" मेरे इतना कहते ही सब हंसने लगे और उनके मन से भूत का डर जो थोड़ी देर पहले थोड़ा बहुत पैदा हुआ था (उस व्यक्ति की आपबीती सुनकर) वह चला गया।
एक महिला मेरे पास बड़े हुए बीपी की समस्या लेकर आई जो उसे कुछ दिन पहले ही शुरू हुआ था, लगभग 3 या 4 दिन पहले से। मैंने उनसे पूछा कि,"क्या आपको कोई चिंता, तनाव या डर है? तो उन्होंने कहा कि मुझे एक रात को भूत दिखा था डॉक्टर। मैंने पूछा कि, "आपने क्या देखा वह मुझे बताइए।" उसने बताया कि, "मैं रात में घर की छत पर खड़ी थी और हमारे घर से कुछ दूरी पर रेलवे ट्रैक है, जहां पर अक्सर लोग हादसे के शिकार होकर मरते हैं। मैंने देखा कि वहां पर एक बड़ासा आदमी सफेद रंग के लिबास में चला जा रहा है और कुछ देर बाद वह मेरी आंखों से ओझल हो गया। मैं डर गई, भाग कर नीचे आई और पसीने पसीने हो गई। जब दूसरे लोगों ने वहां जाकर देखा तो उन्हें वहां कुछ नहीं मिला।"
मैंने उनकी बात सुनकर उनसे पूछा कि उस भूत या भूतनी ने क्या वाकई सफेद रंग के कपड़े पहन रखे थे? उसने कहा, "हां, मैंने उससे फिर पूछा, "क्या कपड़े सिले हुए थे? उसने कहा कि, "हां, शायद कुर्ता पजामा होगा या कुछ और।" मैंने उससे कहा कि आपकी बातों से मुझे एक बात आज नई पता चली कि भूतों के कपड़े की मिल भी होते हैं जहां पर उनके कपड़े बनते हैं, मैन्युफैक्चर होते हैं और उनका दर्जी भी होता है जो उनके लिए कुर्ते-पजामे या पेंट-शर्ट या सलवार-कुर्ते सी कर देता है। मेरे इतने कहने पर वह हंसने लगी और उसके साथ आए उसके अटेंडेंट भी। उसका डर जा चुका था। एक सवाल पूछते ही कई सारे जवाब मिल जाते हैं। हम सवाल नहीं पूछते तो जवाब कैसे मिलेगा। मेरा सवाल उसका उपचार था। भूतों के संबंध में हम यही करते हैं, सिर्फ डर जाते हैं और पुरानी भूतिया कहानियों में अपनी भी एक कहानी को जोड़ लेते हैं।
हमारे सामने किसी मुर्दे के अंतिम संस्कार में उपयोग की गई विधियों और वस्तुओं के अनुसार ही हमें भूत का कॉस्ट्यूम दिखता है। जैसे हिन्दू और मुस्लिम लोग भूत को सफेद रंग के कपड़ों में इमेजिन करते हैं जबकि वहीं विदेशी इन्हें अधिकांशतः काले लिबास में। भूतों की छवियाँ हमारे अवचेतन में बसे डरों के अनुसार ही उभरती हैं। भूतों के अस्तित्व को अधिकांशतः आस्तिक लोग ही स्वीकार करते हैं जबकि उनकी आस्था उन्हें बताती है कि ईश्वर ही सर्व शक्तिमान है तो फिर उसके होते उन्हें कौन नुकसान पहुंचा सकता है! आस्तिकों अपने ईश्वर पर विश्वास कीजिए उसके चाहे बगैर आपको कुछ नहीं हो सकता और ना कोई आपको कोई नुकसान पहुंचा सकता है।
पुनःश्च- भूतों की दुनिया अगर है तो हम सबको क्यों नहीं दिखती? अगर वह भी हमारी तरह एक सामाजिक प्राणी हैं, उनकी दुकाने हैं, उनकी मील-फैक्टरी हैं, उनके स्कूल, उनके गुरु, उनके शिष्य, उनके खानसामा जो उनके लिए खाना बनाते हैं भी होंगे। यह सब हमें क्यों नहीं दिखते? सिर्फ कुछ डरपोक और कुछ डराने वालों को ही क्यों दिखते हैं ये भूत प्रेत? सवाल कीजिए और जवाब ढूंढिये। आप जवाब जानकर हँसने लगेगें और आपका डर भाग जाएगा।
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