व्यंग्य: एक बार की बात है, जब मोदी जी गांव का दौरा करने पहुंचे और सामने आ गई बड़ी मजबूरी !
- अशफाक अहमद
एक बार की बात है, एक सुदूर गांव के पंचायत चुनाव में प्रचार के लिये जाना हुआ। गांव ऐसी जगह था कि न वहां अभी तक देश भर में हवाई अड्डों का जाल बिछाने वाली सरकार कोई हवाई अड्डा ही बना पाई थी और न निजीकरण के बाद दिन दूनी रात चौगुनी करने वाला रेलवे कोई स्टेशन ही खोल पाया था तो साहब बहादुर का काफिला गाड़ियों पर सवार अमेरिका से बढ़िया डामर युक्त सड़कों पर धूल उड़ाते गांव पहुंचा और नौकरियां जाने के बाद घर वापसी की हुई भारी भीड़ देख मोदी जी ने सालों पहले जा चुकी कांग्रेसी सरकार के धुर्रे उड़ा दिये।
एक बार की बात है, एक सुदूर गांव के पंचायत चुनाव में प्रचार के लिये जाना हुआ। गांव ऐसी जगह था कि न वहां अभी तक देश भर में हवाई अड्डों का जाल बिछाने वाली सरकार कोई हवाई अड्डा ही बना पाई थी और न निजीकरण के बाद दिन दूनी रात चौगुनी करने वाला रेलवे कोई स्टेशन ही खोल पाया था तो साहब बहादुर का काफिला गाड़ियों पर सवार अमेरिका से बढ़िया डामर युक्त सड़कों पर धूल उड़ाते गांव पहुंचा और नौकरियां जाने के बाद घर वापसी की हुई भारी भीड़ देख मोदी जी ने सालों पहले जा चुकी कांग्रेसी सरकार के धुर्रे उड़ा दिये।
जनता ने भी जम के तालियां पीटीं, आखिर सभा के बाद सरपंच की तरफ से सबको खाने का आश्वासन भी उन्हें ऊर्जा से भर रहा था। सबने खाया पिया.. मोदी जी भी दिल्ली से साथ लाये काजू के आटे वाली रोटी और ताईवानी मशरूम की सब्जी खाये। वह कहीं भी जाये, न अपनी गरीबी भूलते हैं न गरीबी का भोजन.. महान नेताओं में ऐसे ही गुण होते हैं।
बहरहाल, अब माहौल का असर था कि डामरयुक्त सड़कों के रेशमी धक्के कि पेट ने भी सातों सुरों में रियाज करने की ठान ली और लगा सहगल के अंदाज में सुर खींचने.. उसके ऊपर गुड़गुड़ की करतल ध्वनि करते काजू और मशरूम के मिक्सचर ने भी बराबर की तान दी। मोदी जी परेशान कि अगर जल्द ही इन्हें आजादी की राह न दिखाई तो आज पजामी में ही लड्डन खां का पीला रायता अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करायेगा।
बहरहाल, अब माहौल का असर था कि डामरयुक्त सड़कों के रेशमी धक्के कि पेट ने भी सातों सुरों में रियाज करने की ठान ली और लगा सहगल के अंदाज में सुर खींचने.. उसके ऊपर गुड़गुड़ की करतल ध्वनि करते काजू और मशरूम के मिक्सचर ने भी बराबर की तान दी। मोदी जी परेशान कि अगर जल्द ही इन्हें आजादी की राह न दिखाई तो आज पजामी में ही लड्डन खां का पीला रायता अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करायेगा।
गाड़ी रुकी तो काफिला भी थम गया। भले सरकार ने हर ग्रामीण को दो-दो शौचालय दिये हों लेकिन यहाँ तो एक भी न था। अब मजबूरी थी, एक झाड़ के पीछे बआवाजे बुलंद रियाज करते मिक्सचर को बाहर का रास्ता दिखाये, बिसलेरी से पोंछा मारा और चल दिये। बात छोटी सी थी और वहीं खत्म हो जाती.. अगर वहीं थोड़ी दूर मौजूद दो लड़के यह सब देख न लेते, और अपने मोबाइल से चुपके से वीडियो न बना लेते और फेसबुक पर अपलोड न कर देते।
अब आगे जो हुआ वह काजू और मशरूम के मिक्सचर के रियाज से भी जबर था। लड़कों ने तो बस तफरीहन वीडियो डाली कि मोदी जी भी आम इंसानों की तरह हल्के होते हैं। नहीं मतलब.. लोग सोचते हैं कि वे तो दिव्य पुरुष हैं, जैसे दूध भरी भैंसों को मिल्किंग मशीन से दुहा जाता है, कुछ उसी तरह का सक्शन पाईप इस्तेमाल होता होगा, लेकिन ऐसा नहीं था।
पर सोशल मीडिया ही क्या जहाँ बवाल न मचे। वीडियो हाथों हाथ लिया गया। मोदी विरोधी तबका दांद काटने लगा तत्काल कि भक्तों.. कहाँ गये वह तुम्हारे घर-घर शौचालय.. देख लो कैसे प्रधान जी खुद खुले में हग रहे हैं। कांग्रेस ने अगले ही दिन प्रेस कांफ्रेंस की और सुरजेवाला ने अपना सूरज यह कहते हुए प्रज्वलित किया कि यह मोदी सरकार की असफलता की स्पष्ट निशानी है कि गांवों में लाखों शौचालय बनवाने का दावा करने वाले खुद खुले में हग रहे हैं। खुले में शौच पर बाकायदा सरकार ने जुर्माना लगाया था और मास्टरों की ड्यूटी लगाई थी कि उनकी फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर डाली जाये और उन्हें शर्मिंदा किया जाये। तस्वीर/वीडियो डाला जा चुका है.. ठीक है कि मोदी सरकार में लोग शर्मिंदा नहीं होते लेकिन क्या मोदी जी जुर्माना भी भरेंगे?
भाजपाइयों ने पलटवार किया कि नेचर काॅल है, इसपे किसी को क्या कंट्रोल। आदमी दो पैरों पर कूदता फांदता कहीं भी जा सकता है, शौचालय थोड़े हर जगह चला जायेगा। अब लग गयी तो लग गयी। क्या सत्तर साल पहले सब खुले में नहीं हग रहे थे जो आज सबके पेट में दर्द हो गयी। हगना आदमी का संवैधानिक अधिकार है, हर भारतीय कहीं भी हग सकता है.. रैली के मंच पर, ट्विटर/फेसबुक/व्हाट्सएप पर, टीवी पर, अर्थव्यवस्था पर, न्यायपालिका पर, कार्यपालिका पर, लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर भी.. लेकिन फिलहाल वहां हम मूत कर काम चला रहे हैं।
वामपंथी बड़े सयाने.. लग गये खेत के मालिक का पता निकालने। पता चला खेत तो एक मुल्ले गयासुद्दीन का था.. उन्होंने तत्काल डिक्लेयर कर दिया कि यह मोदी जी के मन में दबी नफरत है मुस्लिमों के प्रति कि उन्होंने जानबूझकर एक मुसलमान के खेत में हगा। वे जताना चाहते हैं कि मुसलमानों तुम इसी लायक हो कि तुम्हारे खेत में हगा जाये। यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और आर्टिकल इतने बटे उतने का स्पष्ट उल्लंघन है। मोदी जी को इसके लिये मुसलमानों से माफी मांगनी चाहिये। कन्हैया के आजादी सांग में एक लाईन और बढ़ गयी.. हमें चाहिये.. शौच से आजादी।
अब भाजपा के आईटी सेल ने मुद्दा लपक लिया। वे लगे प्रचार करने कि हर राष्ट्रवादी का नैतिक कर्तव्य है कि वह न सिर्फ मुल्लों के खेत में हगे, उनके घरों में हगे, बल्कि पाये तो उन पर ही हग दे। उन्होंने प्रोफेसर ओक का लिखा कोई गुप्त दस्तावेज भी ढूंढ निकाला है कि यह ऐतिहासिक फैक्ट है कि औरंगजेब सिर्फ रात को हगता था और इसके लिये किसी हिंदू भाई का खेत ही तलाशता था, चाहे इसके लिये उसे चेतक के कनवर्टेड प्रपौत्र मौलाना पेचक पर बैठ कर सौ किलोमीटर दूर क्यों न जाना पड़े।
मुसलमान बिलख पड़े कि देश के प्रधान का उनके साथ यह कैसा सौतेला व्यवहार है, क्या वे इस देश के नागरिक नहीं हैं? उन्होंने राहत साहब से शेर भी मोडिफाई करवाया है.. सभी की पोट्टी शामिल है यहाँ की मिट्टी में.. किसी के बाप का खेत थोड़े है। सेकुलर गैंग कंधे से कंधा मिला कर उनके साथ खड़ी हो गयी कि वे अपने मुसलमान भाइयों को अकेला नहीं फील होने देंगे और सब मिल कर उनके खेतों की रक्षा करेंगे। इस एकता को देख यूपी वाले महंत ने फरमान जारी कर दिया कि जो भी मुसलमान किसी राष्ट्रवादी को हगने के लिये अपना खेत नहीं देगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी और उसकी संपत्ति कुर्क कर ली जायेगी।
उधर ट्विटर पर भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने एक वीडियो अपलोड करके बताया कि उस खेत में जो झाड़ थे, वे पांच-पांच सौ रुपये दे कर खड़े किये थे ताकि मोदी जी उन्हें निर्जीव झाड़ समझें और वे गवाह बन सकें। इस पर एक झाड़ ने रीट्वीट करते हुए बताया कि वायरल वीडियो में दिख रहा झाड़ वो ही है और यह पैसे उन्हें खुद प्रधानमंत्री के काफिले वालों ने दिये थे ताकि वे आड़ उपलब्ध करा सकें और यहाँ भी उनके साथ चीटिंग हुई है, क्योंकि पांच सौ का वादा कर के पांच रुपये ही दिये।
राष्ट्रवादी चैनलों पर चीखती हेडलाइन्स चलने लगीं.. मोदी के खिलाफ साजिश.. कौन है मोदी जी की तशरीफ देखने का लालची.. गयासुद्दीन और आईएसआई का कनेक्शन.. मोदी जी को बदनाम करने की पाकिस्तान की साजिश.. गयासुद्दीन के पाकिस्तान कनेक्शन पर घंटों डिबेट हुई, एंकर्स ने गयासुद्दीन के नजदीकियों के बयान भी दिखाये कि कैसे गयासुद्दीन ने पिछले तीन सालों में पूरे पांच बार पाकिस्तान का नाम लिया है। नाम ले कर आगे कहा क्या.. इसका पता अभी नहीं चल पाया है।
प्राइम टाइम पर रवीश कुमार ने भी प्रोग्राम किया और देश को बताया कि यह ठीक है कि प्रेशर किसी को भी और कहीं भी बन सकता है, इस पर प्रधानमंत्री पर सवाल उठाना गलत है लेकिन क्या एसपीजी को यह नहीं पता था कि खेत एक गरीब मुस्लिम का था और प्रतीकात्मक रूप से देश भर में एक मैसेज जायेगा देश भर में कि मुसलमानों को ले कर प्रधानमंत्री का नजरिया क्या है.. तो उन्हें थोड़ी एहतियात करना चाहिये था। आखिर आसपास हिंदुओं के भी खेत मौजूद थे।
यह बात जब गांव कस्बे में रहने वाले, आम सरकार विरोधी तक पहुंची तो उसने मुंह चलाते हुए पान की पीक उगली और आस्तीन चढ़ाते हुए बोला कि यह मोदी देश का भाईचारा खा के ही रहेगा। हमको मिल के इसका विरोध करना पड़ेगा। किसी ने पूछा कि किया क्या अब मोदी ने तो जवाब दिया कि वह तो हमको पता नहीं पर मोदी ने किया है तो कुछ गलत ही किया होगा.. और आम मोदी समर्थक तक पहुंची तो उसने मुंह में भरा गुटखा 'पिच' करके थूका और हाथ खड़े करते हुए नारा लगाया, भारत माता की जय.. मोदी जी तुम इनके लकड़ी करो, हम तुम्हारे साथ हैं। किसी ने पूछा कि आखिर किया क्या है तो भक्त ने गर्व से छाती फुलाते हुए कहा, वो तो पता नहीं पर मोदी जी ने किया है तो कुछ अच्छा ही किया होगा।
इन सब बातों से बेखबर मोदी जी ने ड्राइवर को अपनी विपदा सुनाई कि भई पृथ्वी पर जो था वह सब देख लिये.. कोई नया देश नहीं पैदा हुआ क्या। ड्राइवर ने कैलासा के अवतरण की शुभ सूचना दी तो मोदी जी ने स्टीयरिंग उधर ही घुमा लेने को कहा।
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