कपड़ों से पहचानने वालों ने इस बार फेसबुक डीपी से पहचाना और प्रोफेसर 'ख़ान' पाकिस्तानी हो गए
-आशीष दीक्षित
विश्वविद्यालय है रुहेलखण्ड। शहर है उत्तर प्रदेश का बरेली। इसी विश्वविद्यालय में बरसों से फिजिक्स के एक प्रोफेसर हैं सलीम खान। अभी तक प्रोफेसर साहब को कम ही लोग जानते थे। आज सब जान गए। हंगामा यूं बरपा कि देखते ही देखते आई प्राउड टू बी एन इंडियन कहने वाले प्रोफेसर साहब हिंदुस्तानी से पाकिस्तानी हो गए।
विश्वविद्यालय है रुहेलखण्ड। शहर है उत्तर प्रदेश का बरेली। इसी विश्वविद्यालय में बरसों से फिजिक्स के एक प्रोफेसर हैं सलीम खान। अभी तक प्रोफेसर साहब को कम ही लोग जानते थे। आज सब जान गए। हंगामा यूं बरपा कि देखते ही देखते आई प्राउड टू बी एन इंडियन कहने वाले प्रोफेसर साहब हिंदुस्तानी से पाकिस्तानी हो गए।
खता कुछ यूं हुई कि प्रोफेसर साहब ने कोरोना अवेयरनेस को अपनी डीपी बदली। फेसबुक डीपी बदलते समय एक फ्रेम सेलेक्ट किया। उस फ्रेम में पाकिस्तान का लोगो था। छोटे से लोगो पर नजर पड़ी नहीं। फ्रेम सेट हो गया। एक युवा देशभक्त की नजर पड़ी। प्रोफेसर का नाम सलीम खान है। फ्रेम में पाकिस्तान का लोगो है। देशद्रोही की पहचान को और क्या चाहिए। इस दौर में तो वैसे भी कपड़ों से ही दंगाइयों और देशद्रोहियों की पहचान हो जाती है।युवा देशभक्त ने अपना कर्तव्य निभाया। पुलिस में शिकायत की। मामले ने तूल पकड़ा। प्रोफेसर ने माफी मांग ली। मगर लोग इतने से संतुष्ट होने वाले कहां हैं।
अब सोशल मीडिया ट्रायल शुरू हो चुका है। उन्हें किसी ने स्वदेश के युवाओं को देशद्रोह के मार्ग पर ले जाने वाला व्यक्ति बताया तो किसी ने कहा कि यह लोग जितना पढ़ेंगे उतना ही बम बनाएंगे। अनपढ़ रहेंगे तो पत्थर मारेंगे। एक जनाब बोले कि इस पर जाकिर नाइक का असर लगता है। प्रोफेसर साहब सदमे में हैं। पुलिस अपने स्तर से जांच कर रही है। विश्वविद्यालय प्रशासन भी अपराध माफ करने के मूड में तो नजर नहीं आता है।
लगे हाथ हमने भी उनकी फेसबुक वाल देख डाली। 1905 दोस्त हैं। तमाम पत्रकार भी। लगभग साल भर की वाल खंगालने के बाद एहसास होता है कि प्रोफेसर साहब फेसबुक पर बस इसलिए है कि दुनिया यह ना कहें कि वह फेसबुक पर नहीं हैं। तमाम लोगों ने उन्हें टैग कर रखा है। नहीं तो उन्होंने खुद ज्यादा पोस्ट नहीं की हैं। जो पोस्ट हैं उनमें पांच-छह बार उन्होंने अपना डीपी जरूर बदला है, जिनमें वह भारतीय तिरंगे के साथ नजर आ रहे हैं।
लगे हाथ हमने भी उनकी फेसबुक वाल देख डाली। 1905 दोस्त हैं। तमाम पत्रकार भी। लगभग साल भर की वाल खंगालने के बाद एहसास होता है कि प्रोफेसर साहब फेसबुक पर बस इसलिए है कि दुनिया यह ना कहें कि वह फेसबुक पर नहीं हैं। तमाम लोगों ने उन्हें टैग कर रखा है। नहीं तो उन्होंने खुद ज्यादा पोस्ट नहीं की हैं। जो पोस्ट हैं उनमें पांच-छह बार उन्होंने अपना डीपी जरूर बदला है, जिनमें वह भारतीय तिरंगे के साथ नजर आ रहे हैं।
फ्रेम वाली डीपी उन्हें पसंद हैं। अक्सर वो इनका इस्तेमाल करते हैं। कभी भारतीय टीम का समर्थन बढ़ाते हुए तो कभी आई प्राउड टू बी एन इंडियन या आई स्टैंड फॉर पुलवामा मार्टियर्स कहते हुए।विश्वविद्यालय में लगे तिरंगे की तस्वीर भी उनकी फेसबुक वॉल पर नजर आती है। बीच-बीच में कुछ धार्मिक पोस्ट भी हैं। साथ में 11 अप्रैल को एक नामी समाचार पत्र में छपे उनके विचार की कटिंग भी जिसमें वो कहते हैं कि मौलाना हो या नेता सब ने मिलकर मुसलमानों को बेवकूफ बनाया है। जो लोग मुसलमानों को डरा हुआ बताते हैं, वह बिल्कुल गलत है। मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान से अच्छा कोई देश नहीं हो सकता।
तो जनाब, आपने भले ही कहा हो कि मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान से अच्छा कोई देश नहीं हो सकता। भले ही आप ने तमाम बार तिरंगा लगाकर अपने देशभक्त होने का परिचय दिया हो। भले ही आपने पुलवामा में शहीद जवानों के लिए श्रद्धांजलि दी हो। मगर अब आप एक छोटी सी गलती कर संदेह के दायरे में खड़े हैं। आप यह कैसे भूल गए कि योर नेम इज खान एंड यू आर मोस्ट सस्पेक्टड पर्सन ऑफ इंडिया।
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