सात आसमान कहां हैं, उनका क्या मतलब है? सोच कर देखिए इस यूनिवर्स में हमारी क्या हैसियत है?
-अशफाक अहमद
धार्मिक
नजरिये से आपने अक्सर जिक्र सुना होगा.. सात आसमानों का। अब यह हैं या नहीं, इस पर शायद ही चर्चा
होती हो लेकिन सहज स्वाभाविक रूप से हम 'मान' जरूर लेते हैं सात
आसमान जैसे कांसेप्ट को। क्या वाकई आसमान जैसी कोई चीज है.. तब तक है जब तक हम
किसी पिंड के सर्फेस पर हैं लेकिन जैसे ही सर्फेस छोड़ कर ऊपर जाते हैं तो हमें
वायुमंडल की अलग-अलग परतों का सामना करता पड़ता है, और साधारण भाषा में यही
आस्मान समझा जाता है। यह वायुमण्डलीय लेयर्स अलग-अलग पिंडों पर अलग-अलग संख्या में
हो सकती हैं।
लेकिन
सवाल सात आसमान का है.. यह सात आसमान क्या बला हैं? अगर इसे इन्हीं
वायुमंडलीय लेयर्स के रूप में समझें तो यह सात नहीं पांच हैं.. 8-14
किलोमीटर
तक ट्र्पाॅस्फियर है, यह
सबसे डेंस है और इसी लेयर में मौसम बनते हैं और जहाज वगैरह उड़ते हैं। 50 किलोमीटर ऊपर तक
स्ट्रेटोस्फियर है और इसी लेयर में ओजोन की परत है, इससे 85 किलोमीटर ऊपर तक
मेसाॅस्फियर है और यह वह लेयर है जिसमें बाहर से आने वाले उल्कापिंड वगैरह जल जाते
हैं, फिर
इससे लगभग 600 किलोमीटर तक थर्मोस्फियर है, इसी लेयर में सेटेलाइट
स्थापित की जाती हैं और इसके ऊपर सबसे बाहरी और अंतिम परत एग्जाॅस्फियर जो दस हजार
किलोमीटर तक फैली होती है।
हालांकि
मुख्य लेयर इतनी ही हैं लेकिन आयोनाॅस्फियर नाम की इलेक्ट्रान्स, आयोनाइज्ड एटम्स और
माॅलीक्यूल्स वाली एक मिक्स लेयर भी एग्जिस्ट करती है जो सर्फेस से 48 किमी से ले कर 935
किमी
तक मौजूद है और कई लेयर्स को ओवरलैप करती है, यह सन-अर्थ इंटरेक्शन
के लिहाज से एक क्रिटिकल लिंक है, इसी लेयर से रेडियो
कम्यूनिकेशन संभव हो पाता है।
अब
सवाल यह है कि सात आसमान का मतलब यही लेयर्स हैं या सब मिला कर एक आसमान है और
बाकी छः हमें एग्जाॅस्फियर के पार जा कर स्पेस में ढूँढने पड़ेंगे.. तो फिर चलिये, आज की जानकारी के हिसाब
से हम इस बड़ी सी पृथ्वी से बाहर निकल कर थोड़ी जांच पड़ताल तो कर ही सकते हैं। सबसे
पहले हम पृथ्वी से बाहर निकल दूरी के हिसाब से नजदीकी पिंडों को समझते हैं और फिर
इसके अंतिम छोर तक चलते हैं।
पृथ्वी
के हिसाब से सबसे नजदीकी पिंड चंद्रमा है, लेकिन इसके बीच भी इतनी
दूरी है कि तीस पृथ्वी आ जायेंगी और अगर हम सौ किलोमीटर की गति से चंद्रमा की तरफ
चलें तो भी एक सौ साठ दिन लग जायेंगे।
इसके
बाद हमारा एक नजदीकी ग्रह मंगल है जो 225 से 400
मिलियन
किमी की दूरी (परिक्रमण की भिन्न स्थितियों में) पर है, जहां रोशनी को भी
पंहुचने में बीस मिनट लग जाते हैं, स्पेस में रोशनी से तेज
और कोई चीज नहीं चल सकती और रोशनी की गति तीन लाख किमी प्रति सेकेंड होती है।
स्पेस में अब तक सबसे दूर उड़ने वाला वोयेजर प्रोब, जो 17 किमी प्रति सेकेंड की
गति से चल रहा है, हमारे
अपने सौर मंडल से ही बाहर निकलने में इसे सैकड़ों साल लग जायेंगे।
अब
अगर हम इस सौरमंडल से बाहर निकलें तो पंहुचेंगे इंटरस्टेलर नेबरहुड में जहां दूसरे
सौरमंडल हैं। अपने सोलर सिस्टम में आप दूरी को एस्ट्रोनाॅमिकल यूनिट (पृथ्वी से
सूर्य की दूरी) में माप सकते हैं लेकिन बाहर निकलने पर दूरी मापने के लिये
प्रकाशवर्ष (9.461 ट्रिलियन किलोमीटर) का प्रयोग करना पड़ता है, यानि उतनी दूरी जितना
सफर सूर्य की रोशनी एक साल में करती है।
सूरज
के बाद हमारा सबसे नजदीकी तारा प्राॅक्सिमा सेंटौरी है जो हमसे 4.24
प्रकाशवर्ष
दूर है... अगर वोयेजर की गति (17KM/प्रति सेकेंड) से ही उस
तक पंहुचने की कोशिश की जाये तो शायद हजारों साल लग जायेंगे। अब यह सोलर मंडल जिस
गैलेक्सी का हिस्सा है, खुद
उस गैलेक्सी का फैलाव एक लाख प्रकाशवर्ष का है, जिसमें बीस हजार करोड़
तारे और ग्रह हैं और मजे की बात यह है हम रात में उनका सिर्फ एक प्रतिशत देख पाते
हैं।
अब
इससे भी हम थोड़ा और दूर जायें तो हमें मिलेगा लोकल ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज, जिसमें 54 गैलेक्सीज हैं और इसका
फैलाव (एक सिरे से दूसरे सिरे तक) एक करोड़ प्रकाशवर्ष है। यह हिस्सा ही अपने आप
में इतना बड़ा है कि हम शायद बहुत उन्नत हो कर स्पेस ट्रैवल करना शुरू कर दें तो
भी किसी तरह इस हिस्से से पार नहीं निकल पायेंगे.. लेकिन यूनिवर्स के स्केल पर यह
तो बहुत छोटा है।
खैर..
जब इस सर्कल को जूमआउट करेंगे तो मिलेगा वर्गो सुपर क्लस्टर, यानि वह हिस्सा जिसमें
अपने ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज की तरह और भी ग्रुप्स हैं और इस हिस्से का फैलाव ग्यारह
करोड़ प्रकाशवर्ष है, तो
सोचिये कि यह सर्कल कितना बड़ा होगा, लेकिन अब यह बड़ा सा
सर्कल भी दरअसल कुछ नहीं है, बल्कि यह उस लैनीकिया
सुपर क्लस्टर में मात्र एक राई के दाने बराबर है, जिसमें एक लाख तो
गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव 52 करोड़ प्रकाशवर्ष का है।
अब
यह भी सबकुछ नहीं है, बल्कि
यह टाईटैनिक लैनीकिया सुपर क्लस्टर का एक छोटा सा हिस्सा भर है, और लैनीकिया सुपर
क्लस्टर एक छोटा सा हिस्सा भर है उस ऑबजर्वेबल यूनिवर्स का, जिसे हम आज तक देख पाये
हैं। जिसमें कुल दो लाख करोड़ गैलेक्सीज हैं, हमारी पृथ्वी से इसके
एक सिरे की दूरी 4,650 करोड़ प्रकाशवर्ष है, यानि कुल फैलाव 9,300
करोड़
प्रकाशवर्ष का है। यह एकदम परफेक्ट आंकड़ा नहीं है क्योंकि लगातार एक्सपैंड होते
ऑब्जेक्ट का एक टाईम में एग्जेक्ट डायमीटर तो नापा नहीं जा सकता, हकीकत यह है कि पूरा
यूनिवर्स रोशनी से तेज गति से फैल रहा है।
बहरहाल, हमारे यूनिवर्स की उम्र
13.7 अरब वर्ष की मानी जाती है, क्योंकि उससे पहले की
रोशनी अब तक डिटेक्ट नहीं की जा सकी... काॅस्मिक इन्फ्लेशन थ्योरी के अनुसार इसके
पार भी मल्टीवर्स हो सकता है, जिसके एग्जेक्ट फैलाव
का कोई सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता और संभव है कि पूरा ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स ही
पृथ्वी पर फुटबाल जैसी (पूरे सुपर यूनिवर्स में तुलनात्मक रूप से) हैसियत रखता हो।
और
54 गैलेक्सीज वाला इतना बड़ा लोकल ग्रुप, अपने ऑब्जर्वेबल
यूनिवर्स का मात्र 0.00000000001 प्रतिशत है, और इसमें इतने
तारे/ग्रह/उपग्रह हैं जितने पूरी पृथ्वी पर रेत के जर्रे भी नहीं हैं। सोचिये हम
यूनिवर्स में कहां एग्जिस्ट करते हैं और हमारी हैसियत क्या है।
किसी
एक रेगिस्तान के सामने खड़े हो कर सोचिये कि किसी एक जर्रे पर चिपके माइक्रो
बैक्टीरिया जैसी औकात है इस यूनिवर्स में हमारी। बहरहाल, अब पूरे परिदृश्य को
सामने रखिये और इत्मीनान से सोचिये कि सात आसमान कहाँ हैं, क्या मतलब है उनका और
वाकई में हमारी हैसियत क्या है हमारी.. इस विशाल विकराल यूनिवर्स में हमारी।
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