यह मत पूछिए कि अदालत कहां है? यह पूछिए, जिस लोकतंत्र में अदालत होती है, वो लोकतंत्र कहां है?
- कृष्णकांत
जब भी किसी गैर-न्यायिक हत्या पर सवाल उठते हैं तो लोग पूछते हैं कि भारत में न्यायपालिका है ही कहां? एक थे जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर. इंदिरा गांधी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी संसद सदस्यता गवां बैठीं तो उनके कानून मंत्री एचआर गोखले पहुंचे जस्टिस अय्यर के पास. जस्टिस अय्यर उस समय सुप्रीम कोर्ट में थे और गोखले से उनकी दोस्ती थी. गोखले सोच रहे थे कि जस्टिस अय्यर, इंदिरा गांधी को राहत दे देंगे. लेकिन जस्टिस अय्यर ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया और संदेश भिजवाया कि हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें.
सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त छुट्टी चल रही थी. जस्टिस अय्यर अकेले जज थे. उनके सामने मामला पेश हुआ. इंदिरा की पैरवी के लिए नानी पालकीवाला और राज नारायण की तरफ़ से प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण पेश हुए. वकीलों ने बहस के लिए दो घंटे का समय मांगा. दोनों दिग्गज वकीलों ने 10.30 बहस शुरू की और शाम पांच बजे तक बहस चली. जस्टिस अय्यर ने अगले दिन फैसला देने का वक्त मुकर्रर किया. रात में उनका आवास किले में तब्दील हो गया. रात भर फैसला लिखा गया.
अगले दिन इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता चली गई थी. उन्होंने इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता ख़त्म कर दी पर उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने दिया. इस फैसले से इंदिरा गांधी, कांग्रेस और पूरा देश स्तब्ध था. अगले दिन इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया.
ये वही जस्टिस अय्यर हैं जिन्होंने जस्टिस पीएन भगवती के साथ मिलकर जनहित याचिकाओं की शुरुआत की कि पीड़ित व्यक्ति या समाज के लिए अखबार की कतरन, किसी की चिट्ठी पर भी अदालत स्वत:संज्ञान ले सकती है.
एक बार अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा था, ‘जस्टिस अय्यर आज तक सुप्रीम कोर्ट में जितने भी न्यायाधीश हुए, उनमें सबसे महान जज थे.’ इंदिरा गांधी के केस की तरह भारतीय न्यायपालिका की दिलेरी की असंख्य कहानियां हैं. चाहे केंद्र की शक्ति सीमित करने का मामला हो, चाहे न्यायिक सक्रियता का मामला हो, चाहे व्यक्ति के मानव अधिकार बहाल करना हो. सब लिखने की जगह यहां नहीं है.
1951 में ही संविधान संशोधन की वैधता जांचना, गोलकनाथ केस, मिनरवा मिल्स मामला, केशवानंद भारती केस, रोमेश थापर केस जैसे तमाम माइलस्टोन हैं, जिनके बारे में जाना जा सकता है. जस्टिस अय्यर के अलावा जस्टिस पीएन भगवती, जस्टिस चंद्रचूड़ और जेएस वर्मा के फैसलों का अध्ययन किया जा सकता है, जिन्होंने न्यायिक सक्रियता को मजबूत किया. निजी अधिकार, समलैंगिकता जैसे मामले हाल के हैं.
भारतीय न्यायपालिका विश्व की कुछ चुनिंदा मजबूत न्यायपालिका में से एक है. जस्टिस लोया जैसे कांड ने इसे बड़ी क्षति पहुंचाई है. आज कोई नेता न्यायपालिका को अपनी जेब में रखना चाहता है, बुरे उदाहरण देकर मॉब लिंचिंग को स्थापित करना चाहता है, तो इसलिए क्योंकि आप उसके हर कृत्य पर ताली बजाते हैं. चार जजों ने आकर कहा था कि सरकार न्यायपालिका पर अनधिकृत दबाव डाल रही है, तब यही जनता उसे वामपंथियों की साजिश बता रही थी. इसके पहले भ्रष्टाचार के आरोप में आकंठ डूबी यूपीए सरकार की दुर्गति अदालत में ही हुई थी.
समस्या ये है कि पूरा देश वॉट्सएप विषविद्यालय में पढ़ाई कर रहा है, जहां सिर्फ बुराइयां बताकर हमसे कहा जाता है कि इस सिस्टम से घृणा करो ताकि इसे खत्म किया जा सके. दुखद ये है कि अपने देश और अपने तंत्र से अनजान आप ऐसा करते भी हैं. आप यह मत पूछिए कि अदालत कहां है? आप यह पूछिए जिस लोकतंत्र में अदालत होती है, वह लोकतंत्र कहां है? 'ठोंक देने' वाला लोकतंत्र दुनिया में कहां मौजूद है?
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