क्या डॉ कफील खान को मुसलमान होने की सज़ा मिल रही है? लगता तो कुछ ऐसा ही है !
- पंकज चतुर्वेदी
मानवाधिकारों को पुलिस के जूतों के तले कुचलने का ज्वलंत मामला है कफील खान की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में गिरफ्तारी . बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त 2017 में ऑक्सिजन की कमी के कारण 60 से अधिक बच्चों की मौत के मामले में जेल भेज दिया गया था।
हालाँकि यह पुष्टि हुयी कि वह तो बच्चों की जान बचने के लिए अपने पैसे से अपने अस्पताल से आक्सीजन सिलेंडर ला कर दिन रात काम कर रहे थे. उस मामले में उन्हें 9 महीने जेल में काटने पड़े बाद में एक विभागीय जांच ने उन्हें चिकित्सा लापरवाही, भ्रष्टाचार के आरोपों और हादसे के दिन अपना कर्तव्य नहीं निभाने के आरोपों से मुक्त कर दिया।
उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक पंजी एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के मुद्दे पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उनके भाषण को लेकर डॉ कफील खान पर मुकदमा दर्ज किया गया था. 29 जनवरी की रात को उप्र की स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा मुम्बई एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर कफील को अलीगढ़ में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था. जहां से पहले अलीगढ़ जिला जेल भेजा गया था तथा एक घण्टे बाद ही मथुरा के जिला कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया था. तब से वह यहीं पर निरुद्ध है।
उल्लेखनीय है कि डॉ. कफील राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत 13 फरवरी से मथुरा जेल में बंद हैं। अभी उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) की अवधि को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया था। खान पर लगे एनएसए की अवधि 12 मई को खत्म हुयी थी लेकिन तीन महीनों की बढ़ोतरी के बाद वह 12 अगस्त तक बाहर नहीं आ सकेंगे।
हाल ही में उनका एक पत्र सार्वजनिक हुआ है जिसमें वे सवाल कर रहे हैं कि “किस बात की सज़ा मिल रही है मुझे?”—डॉक्टर कफ़ील ने पत्र में यह प्रश्न पूछा है। आखिर किस बात के लिए उन्हें अपने घरवालों से दूर कर दिया गया है। क्या सरकार को चलाने वाले लोग कभी यह नहीं सोचते होंगे कि बगैर डॉ. कफ़ील के उनके घर में ईद कैसे गुज़री होगी? आखिर कब तक डॉ. कफ़ील के घरवालों का हर रोज़ मुहर्रम में तब्दील होता रहेगा? ज़रा उनके इन शब्दों का दर्द तो महसूस कीजिए: “कब अपने बच्चे, बीबी, माँ, भाई, बहन, के पास जा पाऊँगा?”
कफील के भाई आदिल अहमद खान ने कहा कि पत्र 15 जून को कफील द्वारा लिखा गया था और 1 जुलाई को उनके पास पहुंच गया था। आदिल ने दावा किया कि पत्र डाक द्वारा भेजा गया था। घर की याद उनको ज़रूर सता रही है, मगर एक डॉक्टर के नाते वे खुद को जनता की सेवा न कर पाने की वजह से भी दुखी हैं। भारत में वैसे भी डॉक्टर और मरीज़ का अनुपात कम है। उस में भी एक बेहतरीन डॉक्टर को जेल में क़ैद कर सरकार कौन सा जनकल्याण कर रही है?
अपने पत्र के आखिरी जुमले में डॉ. कफ़ील कहते है कि “कब कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे पाउँगा?” डॉ. खान अपने ख़त में लिखते हैं कि मैं “मगरिब (की नमाज़) पढ़ने के बाद ‘नावेल’ (उपन्यास) ले कर बैठ जाता हूँ। मगर वहां का माहौल ऐसा दम घुटने वाला होता है जिसे बयान नहीं किया जा सकता है। अगर बिजली चली गयी तो हम पढ़ नहीं सकते। फिर हम पसीने से सराबोर हो जाते हैं। रात भर कीड़े, मच्छर हमला करते हैं। पूरा बैरक मछली बाज़ार की तरह लगता है। कोई खास रहा है, कोई छींक रहा है, कोई पेशाब कर रहा है, कोई ‘स्मोकिंग’ कर रहा है…पूरी रात बैठ कर गुजारनी पड़ती है”।इसमें ये भी बताया गया है कि एक ही रूम कई कई लोग रहते हैं और बिजली के कटौती के कारण गर्मी इतनी तेज होती है जिसके कारण पसीने और मूत्र के गंध जीवन को नरक बना देता है। एक जीवित नरक वास्तव में ऐसा ही होता है।
डॉ. कफील का दावा है कि जेल में लगभग 150 से अधिक कैदी एक ही शौचालय साझा कर रहे हैं। वहीं उन्होंने जेल के खाने आदि की व्यवस्थाओं पर भी सवाल खड़े किए हैं। पत्र में कफील खान ने जेल में बिजली कटौती और खान-पान पर सवाल किए हैं। उन्होंने यहां सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं होना भी बताया है। कफील खान ने अपनी दिनचर्या को भी पत्र में लिखा है।
हाल के एक वीडियों में डॉ कफील खान कह रहे है कि ‘मेरे परिवार को डर है कि पुलिस मुझे एनकाउंटर में या यह बताकर ना मार दे कि मैं भाग रहा था। या ऐसा दिखाया जाएगा कि मैंने आत्महत्या कर ली।’ वीडियो में डॉक्टर कफील आगे कहते हैं, ‘अपनी आखिरी वीडियो में एक बात जरूर करना चाहूंगा कि मैं इतना बुजदिल नहीं हूं कि सुसाइड कर लूंगा। मैं कभी आत्महत्या नहीं करूंगा। मैं यहां से भागने वाला भी नहीं हूं जो ये (पुलिस) मुझे मार दें।’
पूर्वांचल का सारा इलाका जानता है कि डॉ कफील खान बच्चों का बेहतरीन डोक्टर है, सन २०१८ में जमानत पर बाहर आने के बाद डॉ कफील ने बिहार से ले कर केरल तक निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाए -- उनका दोष बस यह है कि वे सरकार के लोगों को विभाजित करने वाले नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक पंजी एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के मुद्दे पर सरकार से सहमत नहीं और उन्होंने उसके खिलाफ आवाज़ उठायी -- उन पर भड़काऊ भाषण का आरोप है , जो अदालत में एक मिनिट नहीं ठहर सकता सो उन पर एन एस ए लगाया गया-- इससे ज्यादा जहरीले भाषण तो कपिल मिश्र , परवेश वर्मा, रागिनी तिवारी के सोशल मिडिया पर वायरल हैं .
उत्तर प्रदेश की अमरोहा से लोकसभा सांसद कुंवर दानिश अली ने ट्वीट कर मथुरा जेल में बंद डॉ. खान को रिहा करने की मांग की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विकास दुबे जैसे खूंखार अपराधियों पर नरमी दिखा रही है, जबकि बच्चों की जान बचाने वाले डॉक्टर को जेल में बंद कर रखा है।
मुझे लगता है कि यदि आप एक सभी समाज का हिस्सा हैं तो खुल कर डॉ कफील को जेल में रखनी का प्रतिरोध करें-- चाहे सोशल मिडिया पर, चाहे उत्तर प्रदेश सरकार के सोशल प्लेटफोर्म पर या केक्ल अपने मन में या जाहिरा -- जान लें यदि आज चुप हो तो अन्याय का अगला कदम आपके कपाल पर ही पडेगा।
मानवाधिकारों को पुलिस के जूतों के तले कुचलने का ज्वलंत मामला है कफील खान की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में गिरफ्तारी . बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त 2017 में ऑक्सिजन की कमी के कारण 60 से अधिक बच्चों की मौत के मामले में जेल भेज दिया गया था।
हालाँकि यह पुष्टि हुयी कि वह तो बच्चों की जान बचने के लिए अपने पैसे से अपने अस्पताल से आक्सीजन सिलेंडर ला कर दिन रात काम कर रहे थे. उस मामले में उन्हें 9 महीने जेल में काटने पड़े बाद में एक विभागीय जांच ने उन्हें चिकित्सा लापरवाही, भ्रष्टाचार के आरोपों और हादसे के दिन अपना कर्तव्य नहीं निभाने के आरोपों से मुक्त कर दिया।
उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक पंजी एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के मुद्दे पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उनके भाषण को लेकर डॉ कफील खान पर मुकदमा दर्ज किया गया था. 29 जनवरी की रात को उप्र की स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा मुम्बई एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर कफील को अलीगढ़ में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था. जहां से पहले अलीगढ़ जिला जेल भेजा गया था तथा एक घण्टे बाद ही मथुरा के जिला कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया था. तब से वह यहीं पर निरुद्ध है।
उल्लेखनीय है कि डॉ. कफील राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत 13 फरवरी से मथुरा जेल में बंद हैं। अभी उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) की अवधि को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया था। खान पर लगे एनएसए की अवधि 12 मई को खत्म हुयी थी लेकिन तीन महीनों की बढ़ोतरी के बाद वह 12 अगस्त तक बाहर नहीं आ सकेंगे।
हाल ही में उनका एक पत्र सार्वजनिक हुआ है जिसमें वे सवाल कर रहे हैं कि “किस बात की सज़ा मिल रही है मुझे?”—डॉक्टर कफ़ील ने पत्र में यह प्रश्न पूछा है। आखिर किस बात के लिए उन्हें अपने घरवालों से दूर कर दिया गया है। क्या सरकार को चलाने वाले लोग कभी यह नहीं सोचते होंगे कि बगैर डॉ. कफ़ील के उनके घर में ईद कैसे गुज़री होगी? आखिर कब तक डॉ. कफ़ील के घरवालों का हर रोज़ मुहर्रम में तब्दील होता रहेगा? ज़रा उनके इन शब्दों का दर्द तो महसूस कीजिए: “कब अपने बच्चे, बीबी, माँ, भाई, बहन, के पास जा पाऊँगा?”
कफील के भाई आदिल अहमद खान ने कहा कि पत्र 15 जून को कफील द्वारा लिखा गया था और 1 जुलाई को उनके पास पहुंच गया था। आदिल ने दावा किया कि पत्र डाक द्वारा भेजा गया था। घर की याद उनको ज़रूर सता रही है, मगर एक डॉक्टर के नाते वे खुद को जनता की सेवा न कर पाने की वजह से भी दुखी हैं। भारत में वैसे भी डॉक्टर और मरीज़ का अनुपात कम है। उस में भी एक बेहतरीन डॉक्टर को जेल में क़ैद कर सरकार कौन सा जनकल्याण कर रही है?
अपने पत्र के आखिरी जुमले में डॉ. कफ़ील कहते है कि “कब कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे पाउँगा?” डॉ. खान अपने ख़त में लिखते हैं कि मैं “मगरिब (की नमाज़) पढ़ने के बाद ‘नावेल’ (उपन्यास) ले कर बैठ जाता हूँ। मगर वहां का माहौल ऐसा दम घुटने वाला होता है जिसे बयान नहीं किया जा सकता है। अगर बिजली चली गयी तो हम पढ़ नहीं सकते। फिर हम पसीने से सराबोर हो जाते हैं। रात भर कीड़े, मच्छर हमला करते हैं। पूरा बैरक मछली बाज़ार की तरह लगता है। कोई खास रहा है, कोई छींक रहा है, कोई पेशाब कर रहा है, कोई ‘स्मोकिंग’ कर रहा है…पूरी रात बैठ कर गुजारनी पड़ती है”।इसमें ये भी बताया गया है कि एक ही रूम कई कई लोग रहते हैं और बिजली के कटौती के कारण गर्मी इतनी तेज होती है जिसके कारण पसीने और मूत्र के गंध जीवन को नरक बना देता है। एक जीवित नरक वास्तव में ऐसा ही होता है।
डॉ. कफील का दावा है कि जेल में लगभग 150 से अधिक कैदी एक ही शौचालय साझा कर रहे हैं। वहीं उन्होंने जेल के खाने आदि की व्यवस्थाओं पर भी सवाल खड़े किए हैं। पत्र में कफील खान ने जेल में बिजली कटौती और खान-पान पर सवाल किए हैं। उन्होंने यहां सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं होना भी बताया है। कफील खान ने अपनी दिनचर्या को भी पत्र में लिखा है।
हाल के एक वीडियों में डॉ कफील खान कह रहे है कि ‘मेरे परिवार को डर है कि पुलिस मुझे एनकाउंटर में या यह बताकर ना मार दे कि मैं भाग रहा था। या ऐसा दिखाया जाएगा कि मैंने आत्महत्या कर ली।’ वीडियो में डॉक्टर कफील आगे कहते हैं, ‘अपनी आखिरी वीडियो में एक बात जरूर करना चाहूंगा कि मैं इतना बुजदिल नहीं हूं कि सुसाइड कर लूंगा। मैं कभी आत्महत्या नहीं करूंगा। मैं यहां से भागने वाला भी नहीं हूं जो ये (पुलिस) मुझे मार दें।’
पूर्वांचल का सारा इलाका जानता है कि डॉ कफील खान बच्चों का बेहतरीन डोक्टर है, सन २०१८ में जमानत पर बाहर आने के बाद डॉ कफील ने बिहार से ले कर केरल तक निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाए -- उनका दोष बस यह है कि वे सरकार के लोगों को विभाजित करने वाले नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक पंजी एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के मुद्दे पर सरकार से सहमत नहीं और उन्होंने उसके खिलाफ आवाज़ उठायी -- उन पर भड़काऊ भाषण का आरोप है , जो अदालत में एक मिनिट नहीं ठहर सकता सो उन पर एन एस ए लगाया गया-- इससे ज्यादा जहरीले भाषण तो कपिल मिश्र , परवेश वर्मा, रागिनी तिवारी के सोशल मिडिया पर वायरल हैं .
उत्तर प्रदेश की अमरोहा से लोकसभा सांसद कुंवर दानिश अली ने ट्वीट कर मथुरा जेल में बंद डॉ. खान को रिहा करने की मांग की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विकास दुबे जैसे खूंखार अपराधियों पर नरमी दिखा रही है, जबकि बच्चों की जान बचाने वाले डॉक्टर को जेल में बंद कर रखा है।
मुझे लगता है कि यदि आप एक सभी समाज का हिस्सा हैं तो खुल कर डॉ कफील को जेल में रखनी का प्रतिरोध करें-- चाहे सोशल मिडिया पर, चाहे उत्तर प्रदेश सरकार के सोशल प्लेटफोर्म पर या केक्ल अपने मन में या जाहिरा -- जान लें यदि आज चुप हो तो अन्याय का अगला कदम आपके कपाल पर ही पडेगा।
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