कोरोना से लड़ाई की पब्लिसिटी और सिस्टम की जमीनी हकीकत में फर्क जानना है तो इसे पढ़िए
- मृत्युंजय शर्मा
सबसे पहले मैं ये कहना चाहता हूं कि ये कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं है, आप मेरे ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर देख सकते हैं कि मैं मोदी सरकार का समर्थक रहा हूं. लेकिन अब मुझे लगता है कि मोदी सरकार केवल मेकओवर कर रही है और केवल मीडिया हाउस को खरीद कर, टीवी और सोशल मीडिया पर अपना ब्रांड बना कर कैंपेन कर लोगों को मिसलीड कर रही है.
इसकी कहानी शुरू होती है, पिछले सोमवार से. पिछले सोमवार से पहले मेरी वाइफ को पिछले एक हफ्ते से फीवर आ रहा था. शायद किसी दवाई की एलर्जी हो गई थी, मेरे घर के पास के ही अस्पताल में ही उसका ट्रीटमेंट चल रहा था. अचानक से उसे कफ की प्रोबलम भी होने लगी. फिजीशियन ने सलाह की कि आप सेफ साइड के लिए कोरोना का टेस्ट करा लो. टीवी पर देख कर हमें लगता था कि कोरोना का टेस्ट बहुत आसान है और अमेरिका और इटली जैसे देशों से हमारे देश की हालत बहुत अच्छी है. सरकार ने सब व्यवस्था कर रखी है. इसी इंप्रेशन में हमने कोरोना का टेस्ट कराने की बात मान ली.
मुझे पता था कि सरकारी अस्पताल में इतनी अच्छी फेसिलिटी मिलती नहीं है, हमने कोशिश की कि कहीं प्राइवेट में हमारा टेस्ट हो जाए. हालांकि सभी न्यूज़ चैनल यह दिखा रहे थे कि सरकारी अस्पताल में बहुत अच्छी सुविधाएं हैं, लेकिन फिर भी मैंने सोचा कि प्राइवेट लैब में अटेंम्ट करता हूं. कोरोना के टेस्ट के लिए जितने भी प्राइवेट लैब की लिस्ट थी, मैंने वहां कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की लेकिन वहां कांटेक्ट नहीं हो पाया. जहां कॉन्टेक्ट हो पाया, उन्होंने मना कर दिया कि वो कोरोना का टेस्ट नहीं कर रहे हैं. अब मेरे पास आखिरी ऑप्शन बचा था कि गवर्नमेंट की हैल्पलाइन से मदद लेते हैं. मैंने वहां कॉल किया. गवर्नमेंट का सेंट्रल हैल्पलाइन, स्टेट हैल्पलाइन और टोल फ्री नम्बर तीनों पर हमारी फैमली के तीनों व्यस्क लोग, मैं, मेरा भाई और मेरी वाइफ, हम तीनों इन हैल्पलाइन पर फोन लगातार मिलाते रहे.
तकरीबन एक घंटे बाद मेरे भाई के फोन से स्टेट हैल्पलाइन का नंबर मिला. उस हैल्पलाइन से किसी सामान्य कॉल सेंटर की तरह रटा रटाया जवाब देकर कि आपको कल शाम तक आपको फोन आ जाएगा, वगैहरा कह कर फोन डिस्कनेक्ट करने की कोशिश की, लेकिन मैंने बोला कि सिचुएशन क्रिटिकल है, अगर किसी पेशेंट को कोरोना है तो उसे जल्द से जल्द ट्रीटमेंट देना चाहिए, ऐसी सिचुएशन में हम आपकी कॉल का कब तक कॉल करेंगे. हमने उनसे पूछा कि टेस्ट का क्या प्रोसीजर होता है, कॉल के बाद क्या होता है, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था. मैं निराश हो चुका था.
मेरे पास डीएम गौतमबुद्ध नगर का फोन था. सुहास साहब, उनकी भी बहुत अच्छी ब्रांड है. उनको कॉल किया तो उनके पीए से बात हुई. मैंने उनको बताया कि मेरे घर में एक कोरोना सस्पेक्ट है और कोई भी नम्बर नहीं मिल रहा है, ये क्या सिस्टम बना रखा है, तो उनका कहना था कि इसमें हम क्या करें, ये तो हैल्थ डिपार्टमेंट का काम है तो आप सीएमओ से बात कर लो. मैंने उनसे कहा कि आप मुझे सीएओ का नम्बर दे दो. उन्होंने कहा, मेरे पास सीएमओ का नंबर नहीं है. यह अपने आप में बड़ा ही फ्रस्टेटिंग था कि डीएम के ऑफिस के पास सीएमओ का नम्बर नहीं है, या डीएम के पीए को इस तरह से ट्रेन किया गया है कि कोई फोन करे तो उसे सीएमओ से बात करने को कहा जाए.
बहुत आर्ग्युमेंट करने के बाद उन्होंने मुझे डीएम के कंट्रोल रूम का नंबर दे दिया कि आप वहां से ले लो. फिर मैं इतना परेशान हो चुका था कि डीएम के कंट्रोल रूम को फोन करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर मैंने खुद ही इंटरनेट पर नंबर ढूंढ कर निकाला. इसके बाद मैंने सीएमओ को कॉल किया. सीएमो को कॉल करने के बाद वहां से भी कोई सही जवाब नहीं मिला, उन्होंने कहा, इसमें हम क्या कर सकते हैं आप 108 पर एंबुलेंस को कॉल कर लो. और एंबुलेंस को ये बोलना कि हमें कासना ले चलो. वहीं हमने कोरोनावायरस का आइसोलेशन वार्ड बनाया हुआ है. जबकि मीडिया में दिन रात यह देखने को मिलता है कि नोएडा में कोरोना के इतने बड़े-बड़े अस्पताल हैं, फाइव स्टार आइसोलेशन वार्ड हैं वगैहरा लेकिन फिर भी उन्होंने हमें ग्रेटर नोएडा में कासना जाने को कहा.
फिर बहुत मुश्किल से 108 पर कॉल मिला और फिर घंटे भर की जद्दोजहद के पास 108 के कॉलसेंटर पर बैठे व्यक्ति ने एक एंबुलेंस फाइनल करवाया. जब मेरे पास एंबुलेंस आई उस समय रात के 10 बज चुके थे. मैं शाम के सात बजे से इस पूरी प्रक्रिया में लगा था. यूपी का लॉ एंड ऑर्डर देखते हुए रात के दस बजे मैं अपनी वाइफ को अकेले नहीं जाने दे सकता था. मेरे घर में 15 महीने की एक छोटी बेटी भी है और घर में केवल एक मेरा एक भाई ही था जिसे बच्चों की केयर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, फिर भी मैं अपनी बच्ची को उसके पास छोड़कर वाइफ के साथ एंबुलेंस में बैठ गया और वहां से आगे निकले.
आगे बढ़ने के बाद ड्राइवर ने बोला कि हम ग्रेटर नोएडा नहीं जा सकते, मुझे खाना भी है, मैंने चार दिन से खाना नहीं खाया और वो बहुत अजीब व्यहवार करने लगा. फिर वो हमें किसी गांव में ले गया, वहां से उसने अपना खाना और कपड़ा लिया और फिर वहां से दूसरा रूट लेते हुए हमें वो ग्रेटर नोएडा लेकर गया. हमें गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में हमें ले जाया गया. वहां एक कम डॉक्टर मिलीं जो ट्रेनी ही लग रहीं थीं, उन्होंने दूर से ही वाइफ से पूछा कि आपको क्या सिमटम हैं, वाइफ ने अपने सिमटम बताए, तो उन्होंने कहा कि आप दोनों को कोरोना का टेस्ट करना पड़ेगा. रिपोर्ट 48 घंटे में आ जाएगी. और अगर आप कोरोना का टेस्ट करवाते हैं तो आपको आईसोलेट होना पड़ेगा.
मैंने कहा कि मेरे लिए यह संभव नहीं है, मेरी 15 महीने की बच्ची है, मुझे वापस जाना पड़ेगा, आप बस मुझे वापस भिजवा दो. उन्होंने कहा कि हम वापस नहीं भिजवा सकते हैं. और अगर आप आइसोलेट नहीं होना चाहते हैं तो आप यहीं कहीं बाहर रात गुजार लो सुबह देख लेना आप कैसे वापस जाओगे. यह लॉकडाउन की सिचुएशन की बात है जिसमें कोई भी आने जाने का साधन सड़क पर नहीं मिलता है.
अचानक से उन्होंने किसी को कॉल किया और उधर से किसी मैडम से उनकी बात हुई और उन्होंने फोन पर कहा कि नहीं हम हस्बैंड को नहीं जाने दे सकते क्योंकि वो भी एंबुलेंस में साथ में आए हैं. मैंने उनसे कहा कि 48 घंटे तो मेरा भाई मैनेज कर लेगा लेकिन आप पक्का बताइए कि 48 घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी? इस पर उन्होंने कहा कि हां 48 घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी आप अपना सैंपल दे दो. रात को ही हमारी सैंपलिंग हो गई और फिर से हमें एंबुलेंस में बिठाला गया.
एंबुलेंस में हमें तीन और सस्पेक्ट्स के साथ बिठाला गया और इसके पूरे चांस थे कि अगर मुझे कोरोना नहीं भी होता और उन तीनों में से किसी को होता, तो मुझे और मेरी बीवी को भी कोरोना हो जाता. एक एबुंलेंस में पांच लोगों को पास-पास बिठाया गया. उनकी सैंपलिंग भी हमारे आस-पास ही हुई थी. इसके बाद हमें वहां से दो तीन किलोमीटर दूर एससीएसटी हॉस्टल मे आइसोलेशन में ले जाया गया.
मेरी सैंपलिंग होने के बाद भी ना मुझे कोई ट्रैकिंग नंबर दिया गया, ना मेरा कोई रिकॉर्ड मुझे दिया गया कि मैं कहां हूं मेरे पास कोई जानकारी नहीं थी. इसके पास मेरी वाइफ को लेडीज वार्ड भेज दिया गया और मुझे जेंट्स वार्ड. जेंट्स और लेडीज़ दोनों का वॉशरूम कॉमन था. जब मुझे मेरा रूम दिया गया तो वहां चारपाई पर बेडशीट के नाम पर एक पतला सा कपड़ा पड़ा हुआ था और दूसरा कपड़ा मुझे दिया गया और बोला गया कि आप पुराना बेडशीट हटा कर ये बिछा लेना.
रात के एक बज रहे थे, जो खाना मुझे दिया गया वो खराब हो चुका था, लेकिन मैंने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया मैं बिना खाए वैसे ही सो गया. उसके बाद मैं सुबह उठा मुझे फ्रेश होना था, मैं नीचे गया और हाथ धोने के लिए साबुन मांगा. मुझे जवाब मिला कि पानी से ही हाथ धो लेना. सैनिटाइजेशन के नाम पर जीरो था वो आइसोलेशन सेंटर. चारों तरफ कूड़ा फैला पड़ा था.
मुझे एक -दो घंटे कह कर पूरे दिन साबुन का इंतजार करवाया गया लेकिन मुझे साबुन नहीं मिला. इस चक्कर में ना मैंने खाना खाया औ ना मैं फ्रेश हो पाया. मैंने सोचा कि केवल 48 घंटे की बात है, काट लेंगे. अगले दिन जब मैं फिर गया साबुन मांगने तो फिर मुझे आधे घंटे में साबुन आ रहा है कह कर टाल दिया गया. करीब 12 बजे मेरी उनसे बहस हो गई तो उन्होंने अपने लिक्विड सोप में से थोड़ा सा मुझे एक कप में दिया तब जाकर मैं फ्रेश हो पाया और मैंने खाना खाया.
वहां बिना कपड़ों और सफाई के हालत खराब हो रही थी, 48 घंटे के बाद मैं पूछने गया तो मुझे बताया कि इतनी जल्दी नहीं आती है रिपोर्ट 3-4 दिन इंतजार करना होगा. वहां उन्होंने बाउंसर टाइप कुछ लोग भी बिठा रखे हैं ताकि कोई ज्यादा सवाल जवाब ना करे. वहां मैंने देखा कि वहां चाहें आप नेगेटिव हो या पॉजिटिव हो किसी की भी 7-8 दिन से पहले रिपोर्ट नहीं आती है.
हर हाल में मरना है, सरकार आपके लिए वहां कुछ नहीं कर रही है. केवल आपको आइसोलेशन वार्ड में डाल दिया जाता है कि केवल सरकार की नाकामी छिप जाए. देट्स इट. वहां पर 80% लोग जमात और मरकज वाले और उनके संपर्क वाले लोग थे. उनका भी यही हाल था. उनकी भी रिपोर्ट नहीं बताई जा रही थी. करीब 72 घंटे बाद जब मैंने दोबार पूछा कि मेरी रिपोर्ट नहीं आ रही है तो वहां पर मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि हमें नहीं पता होता है कि आपकी रिपोर्ट कब आएगी. हमें केवल इतना पता है कि आपको यहां से जाने नहीं देना है जब तक आपकी रिपोर्ट नहीं आ जाती है. मुझे लग रहा था कि उनके पास कोई इंफॉर्मेशन नहीं थी, कोई ट्रैकिंग की व्यवस्था नहीं थी. जो पहले आ रहा था वो बाद में जा रहा था, जो बाद आ रहा था वो पहले जा रहा था.
मैंने दोबारा डीएम के नंबर पर कॉल करना शुरू किया, फिर वो स्विच ऑफ हो गया और फिर वो आज तक वो नंबर बंद है, शायद नंबर बदल लिया है. फिर मैंने नोएडा के सीएमओ को कॉल करना शुरू किया, उन्होंने कॉल नहीं उठाया. मैंने मैसेज किया कि मेरी 15 महीने की बेटी है जो मदर फीड पर है और फिलहाल मेरे भाई के साथ अकेली है, मुझे आपसे मदद चाहिए. लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया. मुझे समझ नहीं आताा कि कोरोनावायरस के इतने क्रूशियल समय में आप कैसे 5-6 दिन में रिपोर्ट दे सकते हैं!
सीएमओ ने मेरा मैसेज पढ़ा और फिर मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया. फिर मैंने डिप्टी सीएमओ को भी कॉल किया लेकिन फोन नहीं उठा. मैंने काफी हाथ-पैर मारे, मेरा फ्रस्ट्रेशन बहुत बढ गया था. एक डॉक्टर आते हैं वहां नाइट ड्यूटी पर, उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई इंफॉर्मेशन नहीं हैं यहां पर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, आप मुझसे कल सुबह बात करना. मेरे साथ ही एक और लड़का आइसोलेट हुआ था, गंदगी और गर्मी के कारण वो कल मेरे सामने बेहोश हो गया. कोई उसे उठाने, उसे छूने के लिए, उसके पास जाने को राजी नहीं था. वहां किसी भी पेशेंट की तबियत खराब हो रही थी तो कोई उसके पास नहीं जा रहा था. अगर किसी को फीवर है तो पैरासिटामोट देकर वार्ड के अंदर चुपचाप सोने को कहा जा रहा था. सीढियों के पास इतना कूड़ा इकठ्ठा हो रहा था कि बदबू के मारे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. सब केवल अपनी औपचारिकता कर रहे थे वहां. बड़े अधिकारी जो वहां विजिट कर रहे थे वो बाहर से ही बाहर निकल जा रहे थे, अंदर आकर हालात जानने की कोशिश किसी ने नहीं की.
आखिरकार कल शाम तक जब मेरी रिपोर्ट नहीं आई और मेरे साथ वालों की आ गई तो मैंने उनसे फिर पूछा कि मेरी रिपोर्ट क्यों नहीं आई अभी तक. क्यों कोई ट्रेकिंग सिस्टम नहीं है, क्यों किसी को कुछ पता नहीं है. तो उनका वही रटा रटाया जवाब मिला कि हम केवल आइसोलेट करके रखते हैं, हमें इसके अलावा और कोई जानकारी नहीं है. जब रिपोर्ट आएगी आप तभी यहां से जाओगे.
इसके बाद मेरी वाइफ का फोन आया कि उन्होंने सुना है कि लेडीज को कहीं और शिफ्ट कर रहे हैं, किसी और जगह ले जाएंगे. मैं अपनी वाइफ के साथ नीचे गया और पता चला कि लेडीज को गलगोटिया यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी वाइफ को अकेले नहीं जाने दूंगा. वरना अगर इन्हें कुछ भी होता है तो आप रेस्पोंसिबल होगे. फिर उन्होंने मेरी बात मानी और कहा कि आपको भी इनके साथ भेज देंगे और फिर उन्होंने मुझे बाहर बुला लिया. बाहर बुलाने के बाद में उन्होंने मेरे हाथ में पर्ची पकड़ाई कि ये इस वार्ड से उस वार्ड में आपका ट्रांसफर स्लिप है.
मैंने पर्ची को देखा तो उसमें पहली लाइन में मुझे लिखा दिखा कि "मृत्युंजय कोविड -19 नेगेटिव". इस पर मैंने उनसे कहा कि अरे जब मेरी रिपोर्ट आई हुई है तो आप मुझे दूसरे वॉर्ड में क्यों भेज रहे हो. इस पर उन्होंने मेरे हाथ से पर्ची ले ली और कहा कि शायद कोई गलती हो गई है. इतने गैरजिम्मेदार लोग हैं वहां पर. फिर उन्होंने क्रॉसवेरिफाई किया और बाहर आकर कहा कि हां आपकी रिपोर्ट आ गई है. आपकी रिपोर्ट नेगेटिव है. आपकी वाइफ की रिपोर्ट नहीं आई है. इन्हें जाना पड़ेगा. आप इस एंबुलेंस में बैठो, आपकी वाइफ दूसरी एंबुलेंस में बैठेंगी.
मैंने उनसे सवाल किया कि मेरी वाइफ की सैंपलिंग मेरे से पहले हुई थी तो ऐसा कैसे पॉसिबल है कि मेरी रिपोर्ट आ गई लेकिन मेरी वाइफ की नहीं आई? मैंने सोचा ज़रूर कुछ गलती है. मैंने एंबुलेंस रुकवा दी कि मैं बिना जानकारी के नहीं जाने दूंगा. फिर वो दो स्टाफ के साथ अंदर गए और फिर कुछ देर बाद बाहर आकर बताया कि हां आपकी वाइफ का भी नेगेटिव आया है. वहां कोई प्रोसेस, कोई सिस्टम नहीं है, जिसके जो मन आ रहा है वो किए जा रहा है. किसी को नहीं पता कि चल क्या रहा है. फिर उन्होंने कहा कि आप दोनों अब घर जा सकते हो. वापस आते हुए भी एंबुलेंस में पांच और लोग साथ में थे.
वहां हाइजीन की खराब स्थिति के कारण पूरे चांस हैं कि अगर आपको कोरोना नहीं भी है आइसोलेशन वार्ड या एंबुलेंस में आपको कोरोना हो जाए. अगर आपको कोरोना नहीं भी है तो आप वहां से नहीं बच सकते हो. पहले एंबुलेंस ड्राइवर ने हमें कहा कि वो नोएडा सेक्टर 122 हमें छोड़ देगा. लेकिन हमें निठारी छोड़ दिया गया. हमसे कहा गया कि आप यहां पर वेट करो , मैं दूसरी सवारी को छोड़ने जा रहा हूं. 102 नंबर की गाड़ी आएगी वो आपको लेकर जाएगी.
वहां आधा घंटा इंतजार करने के बाद जब मैंने वापस कॉल की और पूछा कि कब आएगी गाड़ी किया तो उन्होंने कहा कि हमारी जिम्मेदारी यहीं तक की थी. आगे आप देखो. फिर हम वहां और खड़े रहे. लगभग आधा घंटा और बीता और बीता और जो एंबुलेंस का ड्राइवर हमें छोड़ कर गया था वो वापस लौटा. हमें वहीं खड़ा देख कर रुक गया. कहने लगा कि अरे बाबूजी मैं क्या करुं मैं तो खुद परेशान हूं चार दिन से खाना नहीं खाया है, हालत खराब है. मेरे सामने ही उसने वीड मारी और कहने लगा कि 12 से ऊपर हो रहे हैं आप काफी परेशान हो, मैं आपको छोड़ देता हूं.
एंबुलेंस ड्राइवर अपने दो-तीन साथियों के साथ एंबुलेंस में बैठा और फिर वो रात के 1 बजे मेरी सोसाएटी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर ही वो मुझे छोड़ कर चला गया. यह कहानी बहुत कम करके मैंने बताई है कि क्या सिस्टम जमीन पर है और क्या मीडिया में दिखता है. जब आप ग्राउंड लेवल पर आते हो तो कोई रेस्पोंसिबल नहीं है आपकी हैल्थ के लिए, आपकी सिक्योरिटी के लिए, आपके कंसर्न के लिए और आपकी जान के लिए.
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