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Saturday, July 11, 2020

देवदासी प्रथा: धर्म के नाम पर आंध्र प्रदेश में करीब 30 हजार देवदासियां शोषण का शिकार होती हैं

- निरवाना रॉय
अभी कुछ दिन से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लगातार शेयर की जा रही है निरवाना को.. जिसमें एक ग्यारह साल की बच्ची का देवदासी प्रथा के अनुसार एक मठ के महंत द्वारा शोषण किया गया। उस पोस्ट में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बताया गया है कि कैसे महंत ने उस बच्ची का शोषण किया। ईश्वर से मिलन करवाने के नाम पर एक बच्ची जिसका न तो शारीरिक  विकास हुआ है न मानसिक उसके माता-पिता द्वारा मठ में समर्पित कर दी जाती है, और महंत जो 120 किलो का है उस मासूम बच्ची पर चढ़कर उसका बलात्कार ईश्वर से मिलन के नाम पर करता है. कितना शर्मनाक है ! पोस्ट ये बताती है कि बच्ची के जननांगो से खून तक निकलने लगता है और इस भयावह स्थिति में वह बेहोश तक हो जाती है, पर वह जानवर उसका लगातार शोषण करता रहता है।

देवदासी प्रथा कहते ही आपके मन में आती है वो महिलाएं जो धर्म के नाम पर दान कर दी जाती है और फिर उनका जीवन धर्म और शारीरिक शोषण के बीच जूझता रहता है। आंध्र प्रदेश कि लक्षम्ममा मानती है उनका भी शारीरिक शोषण हुआ लेकिन वो अपना दर्द किसी के साथ बांटना नहीं चाहती। आंध्र प्रदेश में लगभग 30,000  देवदासी हैं जो धर्म के नाम पर शारीरिक शोषण का शिकार होती हैं। लक्षमा को मौका मिला तो न केवल वो उस व्यवस्था से निकल गई बल्कि उसके खिलाफ संघर्ष में उठ खड़ी हुई। लक्षमा "पोरोटा" संघम की अध्यक्ष हैं जो देवदासी प्रथा के खिलाफ सामाजिक जागरूकता लाने के लिए काम कर रही है

लक्षमा और 500 देवदासिया हाल ही में हैदराबाद में हुई एक सुनवाई में एकत्रित हुईं, जनसुनवाई में देवदासी महिलाओं की समस्याओं पर भी चर्चा हुई जिसमें उन बच्चों का भी जिक्र हुआ जो नाज़ायज रिश्तों की पैदाइश हैं। लक्षमा ने मांग उठाई ऐसे सारे बच्चों का D.N.A टैस्ट करवाया जाए ताकि उनके पिता का पता लगाया जा सके और उन बच्चों को सम्पत्ति में हिस्सा मिल सके ऐसा करने से किसी पुरुष की देवदासी के नाम पर इन महिलाओं का शोषण करने की हिम्मत नहीं होगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर विमला थोराट कहती हैं कि "देवदासी महिलाओं को इस बात का भी अधिकार नहीं रह जाता कि किसी की हवस का शिकार होने से इंकार कर सके" आप जरा सोचिए जब समाज में कोई लड़की माडर्न होती है या स्वयं यह पेशा अपनाती है तो उस पर असंख्य सवाल उठते हैं कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुशी से ये काम करती है।

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