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Saturday, July 18, 2020

Rajasthan crisis: SOG arrests Sanjay Jain, BJP Demands CBI Inquiry Into Phone Tapping Allegations



New Delhi, IndiaSambit Patra, speaking today on the allegations of horse trading made by Congress, asked if the phone conversation thus recorded was done through phone-tapping.

Congress had shared three audio clips as proof of horse-trading of MLAs, implicating a Union Minister Gajendra Singh Shekhawat, as well. Patra asked whether all political groups were being phone-tapped in Rajasthan, and demanded a CBI inquiry into the matter, while rubbishing claims that BJP was in any way involved in the political tussle

Our morality is crystal clear," he said, while demanding to know whether the Standard Procedure of Operations (SoP) regarding phone tapping was followed by Congress. BJP's Laxmikant Bhardwaj has filed a complaint against Congress leaders Mahesh Joshi, Randeep Surjewala, and others, at Ashok Nagar Police Station, over a "manufactured" audio clip and false statements by Congress.

Meanwhile, Special Operations Group (SOG) of state police on Friday arrested Sanjay Jain, whose name surfaced in one of the audio recordings pertaining to the alleged conspiracy to topple the Ashok Gehlot government.

Sanjay Jain has been arrested by the Special Operations Group (SOG) team of Rajasthan Police, under sections 124A and 120B of Indian Penal Code On Friday, two first information reports were registered by the SOG based on the complaint filed by Congress chief whip Mahesh Joshi about audiotapes, which Congress said, had conversations about an alleged conspiracy to topple the Ashok Gehlot-led government.


Gajendra Singh, Bhanwarlal Sharma, and Sanjay Jain were named in the FIR. There were two complaints from Mahesh Joshi (Congress leader), it is with respect to the audio that went viral yesterday. We registered 2 FIRs under section 124A and 120B.


The veracity of clip to be investigated, Ashoke Rathore, ADG SOG
On Friday morning, Congress spokesperson Randeep Singh Surjewala, citing a leaked audio clip, demanded an investigation into the alleged horse-trading and an FIR against Union minister and Jodhpur MP Gajendra Shekhawat for attempts to topple Ashok Gehlot government's in Rajasthan. Based on the transcript of the purported conversations read by Surjewala at a Press Conference in Jaipur, the Congress suspended two party MLAs Bhanwar Lal Sharma and Vishvendra Singh.

Monday, July 13, 2020

सचिन पायलट तो तभी से असंतुष्ट थे, जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनी थी !



- अमिता नीरव
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद से ही सबकी नजरें राजस्थान पर टिकी हुई थी। यूँ तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जिस दिन बनी थी, उसी दिन से उसके कभी भी गिर जाने के कयास लगाए जा रहे थे। राजस्थान में हालाँकि मध्यप्रदेश जैसे हालात नहीं थे, फिर भी बीजेपी ने जिस तरह से सारे एथिक्स को ताक पर रखकर राजनीति में आक्रामकता को मूल्य बना दिया है, उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सारे ही कांग्रेस शासित राज्य बीजेपी के निशाने पर होंगे।


कांग्रेस ने भी इतिहास में राज्य सरकारें गिराई हैं, लेकिन इतनी निर्लज्जता औऱ इतने खुलेआम विधायकों की खऱीद-फरोख्त का साहस नहीं कर पाई है। बीजेपी ने सारी नैतिकता और सारे मूल्यों पर ताक पर रखकर राजनीति की एक नई परिभाषा, मुहावरे, चाल-चलन औऱ चरित्र को घड़ा है। इसी के चलते अब सारे ही कांग्रेस शासित राज्य खतरे में नजर आते हैं। चाहे विधानसभा के नंबर कुछ भी कह रहे हों। 
जब राजस्थान सरकार बनी थी, सचिन तब से ही असंतुष्ट थे। वहाँ मुख्यमंत्री का नाम तय करने में कांग्रेस को पसीना आ गया था। इससे भी यह आशंका बनी ही हुई है कि वहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है। खासतौर पर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के तगड़े झटके के बाद...। बीजेपी के पास सबकुछ है, पैसा है, ताकत, शातिर दिमाग और सबसे ऊपर सत्ता, जिसके दम पर वह पिछले कुछ सालों में घटियापन की सारी हदें पार करती रही है। 
इन कुछ सालों में देश के एलीट, संभ्रांत औऱ ट्रेंड सेटर तबके ने खासा निराश किया है। बात चाहे किसी भी क्षेत्र की हो, राजनीति, फिल्म, साहित्य या फिर कला की कोई भी विधा। यकीन नहीं आता कि समाज में जो लोग प्रभावशाली जगहों पर काबिज है, वे इस कदर स्वार्थी, डरपोक और गैर-जिम्मेदार होंगे। देश में प्रतिरोध करने वालों को लगातार दबाया जा रहा है, इससे वो आम लोग जो सरकार से सहमत नहीं हैं, वे भी अपनी बात कहने का हौसला खोने लगे हैं। 1947 से बाद से इमरजेंसी को छोड़ दिया जाए तो देश में इतने बुरे हालात शायद ही कभी हुए होंगे।

हमें यह मानना ही होगा कि देश नायक विहीन हैं। जिस किसी की तरफ हमने नेतृत्व के लिए देखा, उस-उसने हमें निराश किया है। राजनीतिक विचारधारा सिर्फ अनुयायियों के हिस्से में ही है, जो लोग सक्रिय राजनीति में हैं उनकी नजर अब सिर्फ औऱ सिर्फ सत्ता पर है। इस वक्त में जबकि हम नेता विहीन हैं, हमारी जिम्मेदारी बहुत-बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। कॉलेज में पढ़ा था कि राजनीति सत्ता के लिए संघर्ष है और ‘साम-दाम-दंड-भेद’ या फिर ‘बाय हुक ऑर बाय क्रुक’ जैसे मुहावरे जीवन के हर क्षेत्र की तरह राजनीति में भी कुछ भी करके सत्ता में आने को प्रोत्साहित करते हैं।

तब हमारे लिए क्या बचता है? क्या हम सिर्फ ऐसे वोटर ही बने रहेंगे जिसे सत्ता में बैठे लोग जैसे चाहे, वैसे प्रभावित कर सकते हैं या फिर हम अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करेंगे? मध्यप्रदेश में सरकार बदलने के बाद विधानसभा में उपचुनाव होने हैं, ऐसे में हमें अपनी भूमिका पर फिर से विचार करना चाहिए। हमें हर हाल में सत्ता की चाहत रखने वालों को आईना दिखाना ही होगा। अब राजनीति में नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों की स्थापना के लिए हमें ही आगे आना होगा। वोटर्स को ही यह बताना होगा कि अब अनैतिक तरीके से बनाई गईं सरकारों को हम स्वीकार नहीं करेंगे। यदि सत्ता चाहिए तो अपने चरित्र को बदलना होगा। हमें भी यदि बेहतर समाज चाहिए तो अपना राजनीतिक व्यवहार बदलना होगा।

हर संकट में कुछ बेहतर होने का बीज छुपा होता है, इस दौर में लगातार गिरते राजनीतिक और सामाजिक मूल्यों को बचाने के लिए हमें किसी नायक का इंतजार करने की बजाए, खुद ही अपनी और अपने समाज की जिम्मेदारी लेनी होगी। उन सारे राजनेताओं को नकारिए जो सिर्फ सत्ता की चाह औऱ महत्वाकांक्षा में जनादेश का अपमान कर रहे हैं। यदि सत्ता मूल्यों के साथ खिलवाड़ करती है तो उसे भी सबक सिखाना होगा।

ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहीं नहीं होती जहां राज्य और धर्म में ज़रा भी घालमेल न हो, यह कपोल कल्पना है!



-शादाब सलीम
हमने अपने जीवन में वंदे मातरम नारे पर विवाद देखें है। एक पक्ष कहता था- नारा लगाओ और दूसरा पक्ष कहता था- मैं नहीं लगाता। विभाजन, मस्ज़िद के शहीद हो जाने, बम्बई के दंगे और फिर बम्बई के बम कांड ने इतना धार्मिक वैमनस्य नहीं बोया था, जितना इस नारे की बहस ने बोया है। मूर्खता की इंतहा तो यह थी कि करने वालो ने इस नारे पर भारत की संसद तक में बहस कर डाली। इस बहस को प्रायोजित किसने किया! ऐसे ही मैंने योगा और सूर्य नमस्कार पर उठा पटक देखी है। 

वंदेमातरम नारा भारत के बहुसंख्यक आबादी के धर्म से आया है। उन्होंने भारत के नक्शे पर एक देवी की तस्वीर बनायी उसे माँ कहा क्योंकि बहुसंख्यक आबादी के धर्म में देश माँ है जबकि आयरलैंड के आदमी से आप देश को माँ कहेंगे तो वह इस पर हंसेगा और कहेगा- देश तो देश है देश क्या माँ बहन। 

भारत के मुसलमानों को कार्ल मार्क्स वाली अजीब नास्तिकता वाली धर्मनिरपेक्षता की कल्पना दिखायी गयी है जो बहुत बड़ी बेमानी है। भारत के मुसलमानों ने जिस धर्मनिरपेक्षता की कल्पना की है असल में वह तो सारी धरती पर नहीं मिलेगी। ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहीं नहीं होती जहां राज्य और धर्म में ज़रा भी घालमेल नहीं हो, यह एक कपोल कल्पना है।

किसी भी देश में वहां की बहुसंख्यक आबादी का धर्म रच बस जाता है। आप स्टेट में बहुसंख्यक आबादी के धर्म की सेंध को रोक ही नहीं सकते और रोकना भी बेमानी है। भारत के न्यायालय तक में मंदिर बन गए है। कहीं इधर उधर ही छोटे मोटे पत्थर रखे हुए है। पुलिस थानों के बाहर मंदिर बने हुए है। सरकारी अस्पताल और दफ्तरों में मंदिर है, भले स्टेट ने नहीं बनाए पर प्रायवेट लोगों ने बना लिए।

भारत के अल्पसंख्यक मुसलमान इस खेल को नहीं समझ पाए जो उनके साथ खेला गया। वह मूर्ख बनकर वंदे मातरम नारे तक का विरोध करने लगे और यदि खामोश रहे तो विरोध करने वालो को जूता भी नहीं मारा।इसका प्रमुख कारण भारत के मुस्लिम कपोर कल्पित अजीब धर्मनिरपेक्षता से बाहर नहीं आ पाए।

धर्म सारी दुनिया में जीवन में बहुत अहम भूमिका रखने वाला रहा है। आप खगोल विज्ञान में खोज देखें। जैसे एक गैलेक्सी है जिसका नाम एंड्रोमेडा है। यह एंड्रोमेडा एक रोमन समुदाय के देवता का नाम है। नासा के चंद्रमा पर मनुष्य को भेजने वाले जितने भी मिशन भेजे गए है उन सब का नाम अपोलो है। अपोलो एक ग्रीक देवता है। स्टीफन हॉकिंग भले ईश्वर के अस्तित्व को नकार को गए हो पर खगोल की सारी बुनियाद ग्रीक और क्रिश्चियन धर्म पर रखी हुई है। नेप्च्यून नाम का ग्रह नेप्टोइन देवता के नाम पर है।

एंड्रोमेडा गैलेक्सी को यदि भारत खोजता तो उसका नाम रिद्धि रख देता और ईरान की अंतरिक्ष एजेंसी खोजती तो उसे नूह या जुलकरनैन का नाम देती। भारत यदि चंद्रमा पर ऐसे मिशन भेजता तो उसे शिव या गणेश के नाम देता और अगर तुर्की भेजता तो मुमकिन है मूसा, ईसा और हुसैन नाम देता।

इसमें दिक्कत क्या है? किसी भी देश के रंग ढंग में बहुसंख्यक आबादी का धर्म आ ही जाता है और इसे स्वीकार करना चाहिए। यूनाइटेड स्टेट में क्या क्रिश्चिनिटी का रंग ढंग नहीं है या फिर धर्मनिरपेक्ष तुर्की की स्टेट में इस्लाम नहीं है? या घनघोर उदार और धर्मनिरपेक्षता से भरे देश इंग्लैंड की स्टेट में क्रिश्चिनिटी नज़र नहीं आती?

भारत के मुसलमानों को बहुत अलग ही तरह की अजीब धर्मनिरपेक्षता वाली किताबी थ्योरी पढ़ायी गयी जो उन्हें ढूंढने पर भी सारे विश्व में कहीं नजर नहीं आएगी। उन्होंने बहुसंख्यक आबादी के इवेंट और तरीको में आनंद, उत्साह और उल्लास लेने के बजाए बहुसंख्यक आबादी से बैर पाल लिया। 

असल में धर्मनिरपेक्ष स्टेट वाली कोई भी बहुसंख्यक आबादी अपनी स्टेट को धर्म विशेष के लिए नहीं बनाना चाहती यह भारत में भी नहीं होगा पर बहुसंख्यक आबादी का रंग ज़रूर स्टेट में घुल जाता है। अगर ईरान को धर्मनिरपेक्ष कर दिया जाए तो दोबारा उसकी बहुसंख्यक आबादी कभी धर्म आधारित स्टेट नहीं चाहेगी। अल्पसंख्यक आबादी इसके साथ आनंद से रहने के उपाय ढूंढ लेती है।

Saturday, July 11, 2020

यह मत पूछिए कि अदालत कहां है? यह पूछिए, जिस लोकतंत्र में अदालत होती है, वो लोकतंत्र कहां है?

- कृष्णकांत
जब भी किसी गैर-न्यायिक हत्या पर सवाल उठते हैं तो लोग पूछते हैं कि भारत में न्यायपालिका है ही कहां? एक थे जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर. इंदिरा गांधी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी संसद सदस्यता गवां बैठीं तो उनके कानून मंत्री एचआर गोखले पहुंचे जस्टिस अय्यर के पास. जस्टिस अय्यर उस समय सुप्रीम कोर्ट में थे और गोखले से उनकी दोस्ती थी. गोखले सोच रहे थे कि जस्टिस अय्यर, इंदिरा गांधी को राहत दे देंगे. लेकिन जस्टिस अय्यर ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया और संदेश भिजवाया कि हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें.

सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त छुट्टी चल रही थी. जस्टिस अय्यर अकेले जज थे. उनके सामने मामला पेश हुआ. इंदिरा की पैरवी के लिए नानी पालकीवाला और राज नारायण की तरफ़ से प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण पेश हुए. वकीलों ने बहस के लिए दो घंटे का समय मांगा. दोनों दिग्गज वकीलों ने 10.30 बहस शुरू की और शाम पांच बजे तक बहस चली. जस्टिस अय्यर ने अगले दिन फैसला देने का वक्त मुकर्रर किया. रात में उनका आवास किले में तब्दील हो गया. रात भर फैसला लिखा गया.

अगले दिन इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता चली गई थी. उन्होंने इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता ख़त्म कर दी पर उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने दिया. इस फैसले से इंदिरा गांधी, कांग्रेस और पूरा देश स्तब्ध था. अगले दिन इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया.


ये वही जस्टिस अय्यर हैं जिन्होंने जस्टिस पीएन भगवती के साथ मिलकर जनहित याचिकाओं की शुरुआत की कि पीड़ित व्यक्ति या समाज के लिए अखबार की कतरन, किसी की चिट्ठी पर भी अदालत स्वत:संज्ञान ले सकती है.

एक बार अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा था, ‘जस्टिस अय्यर आज तक सुप्रीम कोर्ट में जितने भी न्यायाधीश हुए, उनमें सबसे महान जज थे.’ इंदिरा गांधी के केस की तरह भारतीय न्यायपालिका की दिलेरी की असंख्य कहानियां हैं. चाहे केंद्र की शक्ति सीमित करने का मामला हो, चाहे न्यायिक सक्रियता का मामला हो, चाहे व्यक्ति के मानव अधिकार बहाल करना हो. सब लिखने की जगह यहां नहीं है.


1951 में ही संविधान संशोधन की वैधता जांचना, गोलकनाथ केस, मिनरवा​ मिल्स मामला, केशवानंद भारती केस, रोमेश थापर केस जैसे तमाम माइलस्टोन हैं, जिनके बारे में जाना जा सकता है. जस्टिस अय्यर के अलावा जस्टिस पीएन भगवती, जस्टिस चंद्रचूड़ और जेएस वर्मा के फैसलों का अध्ययन किया जा सकता है, जिन्होंने न्यायिक सक्रियता को मजबूत किया. निजी अधिकार, समलैंगिकता जैसे मामले हाल के हैं.

भारतीय न्यायपालिका विश्व की कुछ चुनिंदा मजबूत न्यायपालिका में से एक है. जस्टिस लोया जैसे कांड ने इसे बड़ी क्षति पहुंचाई है. आज कोई नेता न्यायपालिका को अपनी जेब में रखना चाहता है, बुरे उदाहरण देकर मॉब लिंचिंग को स्थापित करना चाहता है, तो इसलिए क्योंकि आप उसके हर कृत्य पर ताली बजाते हैं. चार जजों ने आकर कहा था कि सरकार न्यायपालिका पर अनधिकृत दबाव डाल रही है, तब यही जनता उसे वामपंथियों की साजिश बता रही थी. इसके पहले भ्रष्टाचार के आरोप में आकंठ डूबी यूपीए सरकार की दुर्गति अदालत में ही हुई थी.


समस्या ये है कि पूरा देश वॉट्सएप विषविद्यालय में पढ़ाई कर रहा है, जहां सिर्फ बुराइयां बताकर हमसे कहा जाता है कि इस सिस्टम से घृणा करो ताकि इसे खत्म किया जा सके. दुखद ये है कि अपने देश और अपने तंत्र से अनजान आप ऐसा करते भी हैं. आप यह मत पूछिए कि अदालत कहां है? आप यह पूछिए जिस लोकतंत्र में अदालत होती है, वह लोकतंत्र कहां है? 'ठोंक देने' वाला लोकतंत्र दुनिया में कहां मौजूद है?

Wednesday, July 1, 2020

वीर अब्दुल हमीद ने अकेले दम पर पाकिस्तानी सैनिकों को पीठ दिखाने पर मजबूर कर दिया था



- कृष्णा रूमी

पाकिस्तान के पास पैटन टैंक्स थे, जिनका भारत के पास कोई तोड़ नहीं था। भारत के पास शेरमन टैंक्स थे जो पैटन टैंक्स के आगे बेअसर थे और सिटींग डक्स थे। तो अब्दुल हमीद और उसकी खुद को मिलाके 4 ग्रेनेडियर्स की टीम को इन पाकिस्तानी टैंक्स को रोकने का जिम्मा सौंपा गया। 8 सितम्बर 1965 को पाकिस्तान के टैंक्स बेख़ौफ़ हिंदुस्तान में घुसने लग रहे थे, क्यूंकि इंटेलिजेंस यही थी की भारत के पास पाकिस्तानी टैंक्स का कोई इलाज नहीं है। लेकिन अब्दुल हमीद और उनकी ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट के पास जुगाड़ वाला इलाज था। 
उनके पास recoilless rifle यानी RCLR थी, और उस से वो टैंक्स को डिस्ट्रॉय कर सकते थे ! लेकिन इसके लिए बहादुरी की जरूरत थी क्यूंकि आप टैंक के सामने एक्सपोज्ड खड़े हो जबकि टैंक वाला सेफ्टी में है। मगर देश तो देश !  और अब्दुल हमीद जैसों के लिए जिंदगी की क्या ही कीमत है देश के आगे। 

8 सितम्बर को शाम को पाकिस्तान के पहले टैंक्स जब आये तो अब्दुल हमीद ने खुद ओपन गाडी से जाके RCLR से पहला टैंक डिस्ट्रॉय कर दिया। पीछे के दो टैंक वाले टैंक छोड़ के भाग गए ! पाकिस्तानियों ने एक्सपेक्ट ही नहीं किया था की भारत वाले ऐसा जवाब देंगे। 

पाकिस्तान ने अर्टिलरी अटैक के बाद दूसरा टैंक हमला किया और अब्दुल हमीद ने फिर आगे वाला टैंक डिस्ट्रॉय कर दिया। पीछे के टैंक वाले पाकिस्तानी फिर भाग गए ! दिन ख़त्म होने तक हमारी इंजीनियरिंग टीम पहुँच चुकी थी और उसने कई जगह पर माइंस बिछाने का काम कर लिया था ग्रेनेडियर्स ने जहां ट्रेंचेस खोद रखे थे वहाँ। 9 तारीख को सुबह 9 बजे जेट्स से पाकिस्तान ने बटालियन पर हमला किया। किस्मत से कोई नहीं मरा। फिर पाकिस्तान पूरा दिन हमला करता रहा और ग्रेनेडियर्स हमले को रोकते रहे। इसे रोकने में भारत ने पाकिस्तान के 13 undefeatable टैंक defeat कर दिए थे। जिनमे से दो 8 तारीख को और चार 9 तारीख को अकेले अब्दुल हमीद ने ख़त्म किये थे ! इन 13 के अलावा भी पाकिस्तानी कई टैंक्स खाली करके भाग गए थे हमला होने पर, जो भारत ने गिफ्ट के तौर पर रख लिए थे। 

10 तारीख को पाकिस्तान ने फिर टैंक्स से हमला किया और अब्दुल हमीद ने 2 और टैंक्स डिस्ट्रॉय कर दिए। लेकिन फिर पाकिस्तान ने हैवी आर्टिलरी के साथ बढ़ना शुरू कर दिया। 3 और टैंक्स आये हमला करने जिनमे से 1 को फिर अब्दुल हमीद ने डिस्ट्रॉय कर दिया। लेकिन इस समय अब्दुल हमीद की पोजीशन ऐसी बन गयी की वो अपनी ओपन जीप में एक टैंक के बिलकुल सामने आ गए थे। बिलकुल फिल्मी स्टाइल में मेक्सिकन standoff बन गया था, टैंक का मुंह अब्दुल हमीद की ओपन जीप की तरफ, और अब्दुल हमीद की गाडी और RCLR का मुंह पाकिस्तानी टैंक की तरफ। दोनों ने हमला किया और अब्दुल हमीद ने छाती पे वार झेल के ऐसी शहादत दी थी की फिर पाकिस्तानी आगे नहीं बढ़ पाए उस पोजीशन से। ये पाकिस्तान की इस युद्ध में सबसे बड़ी हार थी। 
अब अब्दुल हमीद ने कुल कितने टैंक उड़ाए थे इसपर कोई एकमतता नहीं है, कुछ लोग 6 बताते हैं, कुछ 7, कुछ 10, और कुछ 11, दरअसल ये सब इसलिए है क्यूंकि वहाँ उस समय कम ही लोग मौजूद थे तो जो बयानों के हिसाब से रिकॉर्ड किया वही जगह जगह मौजूद है। लेकिन अगर सभी versions की बताई बातों को जोड़ लें तो कुल 11 टैंक्स के उड़ाए जाने की टेस्टीमोनीज़ है। 

वैसे ये जितनी भी संख्या है वो सब बहुत ज्यादा है क्यूंकि इस तादाद में दुनिया के किसी इन्फेंट्री वाले ने कभी ना पहले टैंक उड़ाए थे ना बाद में उड़ा पाया था। इसलिए अब्दुल हमीद इतिहास में एक विरला ही अचीवमेंट लिए बैठे हैं। अब्दुल हमीद को भारत का सबसे बड़ा वीरता पुरूस्कार मिला, परम वीर चक्र, जो उनकी रेजिमेंट का भी पहला परम वीर चक्र था !

Sunday, June 28, 2020

महात्मा गांधी मानते थे कि इस देश में आप नास्तिक होकर सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ नही लड़ सकते



- आशुतोष तिवारी

गांधी कुशल थे। वह भारत के अंतस से वाक़िफ़ थे। उनका राजनीतिक व्यवहार इस बात की व्याख्या  है। मसलन वह जब राजनीति के मैदान में पूरी तरह दाख़िल हुए, उन्होंने वकालत के कपड़े छोड़ कर धोती -कुर्ता पहन लिया। सिर्फ़ इसी एक फ़ैसले ने उन्हें भारत की उस दौर की बहुतायक और साधारण आबादी के क़रीब पहुँचा दिया।  

उन्होंने बोलेने के लिए अंग्रेज़ी या खड़ी हिंदी की बजाय आम भारतीय की भाषा हिंदुस्तानी अपनाई । बहुत गहरी बातें बहुत मामूली भाषा में कह कर अपनी बात भारत के आख़िरी आदमी तक पहुँचने में कामयाब रहे। उन्हें देशज आकर्षण के तत्वों की बढ़िया समझ थी। वह इस रजनीतिक  समझदारी की वजह से आज़ादी के आंदोलनों में बड़ी भीड़ संगठित करने में सफल रहे। 

बात सिर्फ़ लोगों के  क़रीब पहुँचने की नही है, वह उस दौर के नायक बने।उनके चारों तरफ़ रहस्य, अध्याम और राजनीति का ऐसा आभा चक्र था  जिसने उनके व्यक्तित्व को ले कर भारत के मासूम और कौतूहलिक मानस में एक रहस्यमय संत का बिम्ब तैयार किया। उस दौरान के भारत में बहुत बड़ी आबादी में  ग़ैर राजनीतिक लोग थे, जिनको  गांधी के राजनीतिक -आध्यत्म ने प्रभावित किया। उनके बारे में उस दौर में हज़ारों जादुई कहानियाँ बनी । NCERT में लिखा है  अफ़वाह उड़ी  कि गांधी एक जगह नाराज़गी की वजह से नही गए तो वहाँ ओले बरसे। बातें थी कि उनके हाथो की छुअन से लोगों के गम्भीर रोग सही होने लगे।  उनके सार्वजनिक आध्यात्म ने उनकी छवि एक राजनेता से कहीं ज्यादा बड़ी कर दी।
गांधी समझते थे कि इस देश में आप नास्तिक हो कर सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ नही लड़ सकते। उन्होंने इसका बेजोड़ हथियार निकाला -हिंदू -मुस्लिम एकता की प्रार्थना सभाएँ और रघु पति राघव राजा राम। उनकी इस राजनीति में भारत के दक्षिणपंथ को हैरत में डाल दिया। इसीलिए भारत के दक्षिणपंथ को गांधी की हत्या ज़रूरी जान पड़ी। गांधी जीते जी सांप्रदायिकता के निर्मम स्वरूपों से लड़ने में काफ़ी कामयाब रहे। उन्होंने हिंदू धार्मिक रह कर भी साम्प्रदायिक को नाकों चने चबवा दिए। यही आज के लिए उनकी सबसे बड़ी सीख जान पड़ती है। वह शानदार सख़्सियत थे। उनको हर तरह से पढ़ा जाना चाहिए।