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Monday, June 29, 2020

TikTok, Helo, UC Browser, WeChat among 59 Chinese Apps banned in India



New Delhi (VOM News) : Citing privacy concerns, the government on Monday decided to ban at least 59 Chinese mobile apps. The list includes popular social media applications like TikTok. The government has called for banning of SHAREit, US Browser, Helo, Mi COmmunity, Baidu map, Club Factory, WeChat, UC News, Weibo, and others. The Centre has decided to disallow the usage of these apps both in mobile and non-mobile internet-enabled devices.


"The Ministry of Information Technology, invoking it’s power under section 69A of the Information Technology Act read with the relevant provisions of the Information Technology (Procedure and Safeguards for Blocking of Access of Information by Public) Rules 2009 and in view of the emergent nature of threats has decided to block 59 apps since in view of information available they are engaged in activities which is prejudicial to sovereignty and integrity of India, defence of India, security of state and public order," the press release said.

Over the last few years, India has emerged as a leading innvator when it comes to technological advancements and a primary market in the digital space. At the same time, there have been concerns relating to data security and safe-guarding the privacy of 130 crore Indians, the Union ministry of electronics & IT said in a press release today.


The ministry of information and technology has received "many representations raising concerns from citizens regarding security of data and risk to privacy relating to operation of certain apps," according to the press release. "The Computer Emergency Response Team has also received many representations from citizens regarding security of data and breach of privacy impacting upon public order issues," the press release read.

This decision came amid the India-China clash at the borders. Tensions on the Indo-China border have spiked after 20 troops, including an Indian commanding officer, were killed in the face-off in Galwan valley.

Wednesday, June 10, 2020

यादों के झरोखे से: कितना बदल गया है मेरा स्कूल, नहीं बदली तो सिर्फ वो पानी की टंकी

- धीरेंद्र जयहिंद


स्कूल की पानी की टंकी । पुराने उपन्यासों में मिलने वाले बूढे बरगद के पेड़ की तरह न जाने कितने किस्सों की गवाह । 1994 में स्कूल शुरू करने से लेकर 2007 में खत्म करने तक एक यही चीज थी जो बिल्कुल नही बदली थी। आज 13 साल हो गए स्कूल देखे । फिर भी यकीं है कि जैसा छोड़े थे , वैसी ही अब भी होगी ।

थी तो पानी की टंकी, लेकिन पानी पीता न था कोई । एक बार अफवाह भी उड़ा दी गयी थी कि टंकी में कौवा मरा था, आज तक न निकला। और बच्चों के लिए अफवाह से बड़ा सच भला क्या होगा । सो कई साल तो हम लोग बस हाथ मुँह ही धोया करते थे इस पानी से । मार पीट के लिए सबसे चर्चित जगह स्कूल में यही थी । जिसको भी लड़ना-झगड़ना, पीटना-पिटना, धमकाना/गरियाना हो, जगह तय थी । यहाँ आइए, खुल कर लड़िए । उस लड़ाई का क्या फायदा जिसे किसी ने देखा ही नही । या यूं कहें , जिसे उस लड़की ने देखा नहीं । अधिकतर लड़ाइयाँ तो बस इश्कबाजी में होती थीं । अब जिसके लिए मार खा रहे हो या मार रहे हो, उसे पता तो चले । 

हम तो कितने उस दौर के आशिकों को जानते हैं जो भूखे-प्यासे पूरे लंच में छिपकर इंतजार किया करते थे कि उनकी एकतरफा मोहब्बत खाना खा के आए और नल से हाथ धोकर ज्यों ही आगे बढ़े , वो पीछे से आकर उसी नल से पानी गटक प्रेम की परम अनुभूति प्राप्त कर सकें । वहाँ मौजूद अधिकतर लड़की किसी न किसी की भाभी बनी घूमा करती थी , बस बेचारी को कभी पता न चलता था । जो थोड़ी बहुत प्रेम कहानियां दो-तरफा थीं , उनके लिए तो ये टंकी क्या ही किसी ताज महल से कम रही होंगी उस दौर में । दुनिया से दूर , पढाई लिखाई के मोह-माया से निकलकर टंकी के पीछे बस 4 बात आँखों मे आँखें डाल एक दूसरे का हाथ पकड़  कर लेने का जो सुख हुआ करता होगा , वो आज के फड़फड़ाते आशिक क्या समझ पाएंगे । 

हमारा स्कूल ऊंचाई पे था । नीचे की ओर convent स्कूल । तो जब टंकी के पास से कोई गुजरता , सम्मानपूर्वक रस्म निभाता हुआ एक ढेला उठाता और कान्वेंट की बिल्डिंग पर फेंकता जाता । कभी कभार शीशा फूट जाता , एक दो बार बच्चों के सिर भी फूटे थे । लेकिन ये तो हमारे लिए गर्व की बात थी । जब तक पकड़े न जाओ , कैसा डर भाई । ये काम निरन्तर चलता रहा । अब का नही पता । लेकिन प्रिंसीपल इससे बहुत परेशान रहते । हमें फर्क न पड़ता।

शिकवे-गीले भी यहीं मिटा करते थे अक्सर । समझौतों का अड्डा । स्कूल में 4-5 भौकाली लड़के बस इसी उद्देश्य से स्कूल ही आया करते थे कि कितना भी serious matter होगा , वो गाँव के अघोषित मुखिया की तरह पंच परमेश्वर बन सब सुलझा देंगे । और सही में वो ऐसा कर भी लेते थे । गजब की management क्षमता थी । न जाने कितने मनमुटाव यूँ ही हाथ मिला , गले लगवा निपटा दिया करते थे वो सब । मनमुटाव दो के बीच रहता , पर टंकी घेरे रहता पूरा कुनबा । और कुछ तो सुलह से यूँ उदास हो जाते जैसे किसी का खून देखकर ही उनकी आत्मा को शांति मिलनी थी । 

मेरा अपना एक खास लगाव था । जब सब मैदान में खेला करते थे , तो मैं चुपचाप टंकी के पास पहुँच जाया करता था । पेड़ के नीचे बैठ कर गिलहरियों को देखता रहता था । देर तक । गिलहरियां मुझे पसंद थी । तितलियों से भी ज्यादा । मुझे याद है एक बार मैं अपने एक दोस्त से बस इसलिए महीने भर नाराज रहा था क्योंकि उसने मुझे खेलने ले जाने के लिए गिलहरी को पत्थर फेंक मारा था । 

अभी जब ये सब लिख रहा हूँ तो बहुत से चेहरे ज़हन में आ रहे हैं । कुछ दुनिया मे नहीं रहे अब । कुछ से मिले जमाने हो गए । कुछ के बारे में तो अब कुछ पता ही नही । कुछ ही बचे है , जो अब भी उतने ही अजीज हैं । सब तब कितने करीब थे । कितने खुश थे । साथ निभाने के , जिंदगी बिताने के , एक दूसरे के सुख दुख में खड़े रहने के कितने वादे आज वक्त की भेंट चढ़ गए । जिन दोस्तों के लिए परिवार से लड़ जाया करते थे , एक दिन मिले बिना रह न पाया करते थे , आज उनकी कमी भी महसूस न होती । कितना कुछ बदल गया है । हाँ , नही बदली होगी तो बस ये पानी की टंकी । आज भी कितनी यारी-दोस्ती , इश्क-मोहब्बत , लड़ाई-सुलह , सुख-दुःख इसी स्थिर भाव से देखती रहती होगी । कभी कभी मन करता है कुछ पल जाकर फिर यहीं बैठकर गिलहरियों को देखता रहूँ । फिर सोचता हूँ , अब क्या पता बोर हो जाऊं । तब की गिलहरी अब की गिलहरी नही बन सकती । बड़ा हो गया हूँ ।  यादें ही ठीक हैं ।