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Saturday, July 11, 2020

यह मत पूछिए कि अदालत कहां है? यह पूछिए, जिस लोकतंत्र में अदालत होती है, वो लोकतंत्र कहां है?

- कृष्णकांत
जब भी किसी गैर-न्यायिक हत्या पर सवाल उठते हैं तो लोग पूछते हैं कि भारत में न्यायपालिका है ही कहां? एक थे जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर. इंदिरा गांधी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी संसद सदस्यता गवां बैठीं तो उनके कानून मंत्री एचआर गोखले पहुंचे जस्टिस अय्यर के पास. जस्टिस अय्यर उस समय सुप्रीम कोर्ट में थे और गोखले से उनकी दोस्ती थी. गोखले सोच रहे थे कि जस्टिस अय्यर, इंदिरा गांधी को राहत दे देंगे. लेकिन जस्टिस अय्यर ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया और संदेश भिजवाया कि हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें.

सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त छुट्टी चल रही थी. जस्टिस अय्यर अकेले जज थे. उनके सामने मामला पेश हुआ. इंदिरा की पैरवी के लिए नानी पालकीवाला और राज नारायण की तरफ़ से प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण पेश हुए. वकीलों ने बहस के लिए दो घंटे का समय मांगा. दोनों दिग्गज वकीलों ने 10.30 बहस शुरू की और शाम पांच बजे तक बहस चली. जस्टिस अय्यर ने अगले दिन फैसला देने का वक्त मुकर्रर किया. रात में उनका आवास किले में तब्दील हो गया. रात भर फैसला लिखा गया.

अगले दिन इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता चली गई थी. उन्होंने इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता ख़त्म कर दी पर उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने दिया. इस फैसले से इंदिरा गांधी, कांग्रेस और पूरा देश स्तब्ध था. अगले दिन इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया.


ये वही जस्टिस अय्यर हैं जिन्होंने जस्टिस पीएन भगवती के साथ मिलकर जनहित याचिकाओं की शुरुआत की कि पीड़ित व्यक्ति या समाज के लिए अखबार की कतरन, किसी की चिट्ठी पर भी अदालत स्वत:संज्ञान ले सकती है.

एक बार अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा था, ‘जस्टिस अय्यर आज तक सुप्रीम कोर्ट में जितने भी न्यायाधीश हुए, उनमें सबसे महान जज थे.’ इंदिरा गांधी के केस की तरह भारतीय न्यायपालिका की दिलेरी की असंख्य कहानियां हैं. चाहे केंद्र की शक्ति सीमित करने का मामला हो, चाहे न्यायिक सक्रियता का मामला हो, चाहे व्यक्ति के मानव अधिकार बहाल करना हो. सब लिखने की जगह यहां नहीं है.


1951 में ही संविधान संशोधन की वैधता जांचना, गोलकनाथ केस, मिनरवा​ मिल्स मामला, केशवानंद भारती केस, रोमेश थापर केस जैसे तमाम माइलस्टोन हैं, जिनके बारे में जाना जा सकता है. जस्टिस अय्यर के अलावा जस्टिस पीएन भगवती, जस्टिस चंद्रचूड़ और जेएस वर्मा के फैसलों का अध्ययन किया जा सकता है, जिन्होंने न्यायिक सक्रियता को मजबूत किया. निजी अधिकार, समलैंगिकता जैसे मामले हाल के हैं.

भारतीय न्यायपालिका विश्व की कुछ चुनिंदा मजबूत न्यायपालिका में से एक है. जस्टिस लोया जैसे कांड ने इसे बड़ी क्षति पहुंचाई है. आज कोई नेता न्यायपालिका को अपनी जेब में रखना चाहता है, बुरे उदाहरण देकर मॉब लिंचिंग को स्थापित करना चाहता है, तो इसलिए क्योंकि आप उसके हर कृत्य पर ताली बजाते हैं. चार जजों ने आकर कहा था कि सरकार न्यायपालिका पर अनधिकृत दबाव डाल रही है, तब यही जनता उसे वामपंथियों की साजिश बता रही थी. इसके पहले भ्रष्टाचार के आरोप में आकंठ डूबी यूपीए सरकार की दुर्गति अदालत में ही हुई थी.


समस्या ये है कि पूरा देश वॉट्सएप विषविद्यालय में पढ़ाई कर रहा है, जहां सिर्फ बुराइयां बताकर हमसे कहा जाता है कि इस सिस्टम से घृणा करो ताकि इसे खत्म किया जा सके. दुखद ये है कि अपने देश और अपने तंत्र से अनजान आप ऐसा करते भी हैं. आप यह मत पूछिए कि अदालत कहां है? आप यह पूछिए जिस लोकतंत्र में अदालत होती है, वह लोकतंत्र कहां है? 'ठोंक देने' वाला लोकतंत्र दुनिया में कहां मौजूद है?

Wednesday, July 8, 2020

Inspiring story of a village girl: Your right action can change many perceptions



In a village there was a family and they had only female child, many suggests them to try for another male child because female child were regarded as burden and male child as blessings of God and males are supporter of old parents. its believed that parents can't achieve moksha (liberation ) after death unless death ceremonies is not done by male child.

They ignore every advises or social evils and never think for male child . Parents never went to school but they knew important of education and decided to educate their daughter .

When she was growing up, many people sent them marriage proposals but they refused it. After passing middle school many said that its enough for female and education is not for women's .

People's asked to her parents what she'll do being educated, after all she will be house wife and have to manage kitchen and kids . Many suggests to her parents "arrange her marriage and be free from your responsibility" .

Her dad, replied to society " as of now my responsibility is to educate and support her ". I'll be free from my responsibilities by arranging her marriage but what about her life ? So, "I can't put her into trouble" .

After passing High School, parents decided to send her to city for better education, here also many demoralised and criticized and warned that " your daughter is going to out of home and she'll cut your nose (infamous you) by misusing your money and her freedom .

Parents believed in their daughter just the way their daughter is well manner and cultured. Her parents worked hard and save money. She went to city for heigher education and to fulfill dreams of her parents.

After some years she came back to home with MBBS degree and proved everyone wrong and her papa was right. Once who used to criticise them now they're role model and inspiration for them and now villagers are ready to educate and send their daughter to city.

Moral : It always seems impossible until it's done and girls child aren't burden, they're the blessings of nature. If parents were demoralised or accepted the advice of Villagers then they would be never inspiration and role model for villagers and their daughter would be never educated .

Moral : never give up and focus on your goals . It may take time but one day it'll bring a good result and If she were misused her parents Money and her freedom then she would never be success and no parents would be ready to educate their daughters . Your right action can change many perceptions , be the parents or daughter like them , its real women empowerment and feminism.

Friday, July 3, 2020

अमेरिका में पत्रकारों को बेरोजगारी भत्ता, भारत में बस WhatsApp में वीडियो चाहिए, TV पर गुलामी



- रवीश कुमार 

अमरीका में 36,000 पत्रकारों की नौकरी चली गई है या बिना सैलरी के छुट्टी पर भेज दिए गए हैं या सैलरी कम हो गई है. कोविड-19 के कारण. इसके जवाब में प्रेस फ्रीडम डिफेंस फंड बनाया जा रहा है ताकि ऐसे पत्रकारों की मदद की जा सके. यह फंड मीडिया वेबसाइट दि इंटरसेप्ट चलाने वाली कंपनी ने ही बनाया है. इस फंड के सहारे पत्रकारों को 1500 डॉलर की सहायता दी जाएगी. एक या दो बार. इस फंड के पास अभी तक 1000 आवेदन आ गए हैं.


वैसे अमरीका ने जून के महीने में 100 अरब डॉलर का बेरोज़गारी भत्ता दिया है. अमरीका में यह सवाल उठ रहे हैं कि सरकार को बेरोज़गारों की संख्या को देखते हुए 142 अरब डॉलर खर्च करना चाहिए था. भारत का मिडिल क्लास अच्छा है. उसे किसी तरह का भत्ता नहीं चाहिए. बस व्हाट्स एप में मीम और वीडियो चाहिए. टीवी पर गुलामी. 

भारत में एडिटर्स गिल्ड, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को कम से कम सर्वे तो करना ही चाहिए कि कितने फ्री-लांस, पूर्णकालिक, रिटेनर, स्ट्रिंगर, अंशकालिक पत्रकारों की नौकरी गई है. सैलरी कटी है. उनकी क्या स्थिति है. इसमें टेक्निकल स्टाफ को भी शामिल किया जाना चाहिए. पत्रकारों के परिवार भी फीस और किराया नहीं दे पा रहे हैं. 

ख़ैर ये मुसीबत अन्य की भी है. प्राइवेट नौकरी करने वाले सभी इसका सामना कर रहे हैं. एक प्राइवेट शिक्षक ने लिखा है कि सरकार उनकी सुध नहीं ले रही. जैसे सरकार सबकी सुध ले रही है. उन्हीं की क्यों, नए और युवा वकीलों की भी कमाई बंद हो गई है. उनकी भी हालत बुरी है. कई छोटे-छोटे रोज़गार करने वालों की कमाई बंद हो गई है. छात्र कहते हैं कि किराया नहीं दे पा रहे हैं. 

इसका मतलब यह नहीं कि 80 करोड़ लोगों को अनाज देने की योजना का मज़ाक उड़ाए. मिडिल क्लास यही करता रहा. इन्हीं सब चीज़ों से उसके भीतर की संवेदनशीलता समाप्त कर दी गई है. जो बेहद ग़रीब हैं उन्हें अनाज ही तो मिल रहा है. जो सड़ जाता है. बल्कि और अधिक अनाज मिलना चाहिए. सिर्फ 5 किलो चावल और एक किलो चना से क्या होगा.

यह बात गलत है कि मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिल रहा है. व्हाट्स ऐप मीम और गोदी मीडिया के डिबेट से उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है. उसके बच्चों की शिक्षा और नौकरियों पर बात बंद हो चुकी है. ताकि वे मीम का मीमपान कर सकें. उसके भीतर जितनी तरह की धार्मिक और ग़ैर धार्मिक कुंठाएं हैं, संकीर्णताएं हैं उन सबको खुराक दिया गया है.  जिससे वह राजनीतिक तरीके से मानसिक सुख प्राप्त करता रहा है. 


ख़ुद यह क्लास मीडिया और अन्य संस्थाओं के खत्म करने वाली भीड़ का साथ देता रहा, अब मीडिया खोज रहा है. उसे पता है कि मीडिया को खत्म किए जाने के वक्त यही ताली बजा रहा था.मिडिल क्लास में ज़रा भी खुद्दारी बची है तो उसे बिल्कुल मीडिया से अपनी व्यथा नहीं कहनी चाहिए. उसे सिर्फ मीम की मांग करनी चाहिए. कुछ नहीं तो नेहरू को मुसलमान बताने वाला मीम ही दिन बार तीन बार मिले तो इसे चैन आ जाए. 

खुद्दार मिडिल क्लास को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने उसका आभार व्यक्त किया है. ईमानदार आयकर दाताओं का अभिनंदन किया है. ऐसा नहीं है कि आप नोटिस में नहीं हैं

Wednesday, July 1, 2020

वीर अब्दुल हमीद ने अकेले दम पर पाकिस्तानी सैनिकों को पीठ दिखाने पर मजबूर कर दिया था



- कृष्णा रूमी

पाकिस्तान के पास पैटन टैंक्स थे, जिनका भारत के पास कोई तोड़ नहीं था। भारत के पास शेरमन टैंक्स थे जो पैटन टैंक्स के आगे बेअसर थे और सिटींग डक्स थे। तो अब्दुल हमीद और उसकी खुद को मिलाके 4 ग्रेनेडियर्स की टीम को इन पाकिस्तानी टैंक्स को रोकने का जिम्मा सौंपा गया। 8 सितम्बर 1965 को पाकिस्तान के टैंक्स बेख़ौफ़ हिंदुस्तान में घुसने लग रहे थे, क्यूंकि इंटेलिजेंस यही थी की भारत के पास पाकिस्तानी टैंक्स का कोई इलाज नहीं है। लेकिन अब्दुल हमीद और उनकी ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट के पास जुगाड़ वाला इलाज था। 
उनके पास recoilless rifle यानी RCLR थी, और उस से वो टैंक्स को डिस्ट्रॉय कर सकते थे ! लेकिन इसके लिए बहादुरी की जरूरत थी क्यूंकि आप टैंक के सामने एक्सपोज्ड खड़े हो जबकि टैंक वाला सेफ्टी में है। मगर देश तो देश !  और अब्दुल हमीद जैसों के लिए जिंदगी की क्या ही कीमत है देश के आगे। 

8 सितम्बर को शाम को पाकिस्तान के पहले टैंक्स जब आये तो अब्दुल हमीद ने खुद ओपन गाडी से जाके RCLR से पहला टैंक डिस्ट्रॉय कर दिया। पीछे के दो टैंक वाले टैंक छोड़ के भाग गए ! पाकिस्तानियों ने एक्सपेक्ट ही नहीं किया था की भारत वाले ऐसा जवाब देंगे। 

पाकिस्तान ने अर्टिलरी अटैक के बाद दूसरा टैंक हमला किया और अब्दुल हमीद ने फिर आगे वाला टैंक डिस्ट्रॉय कर दिया। पीछे के टैंक वाले पाकिस्तानी फिर भाग गए ! दिन ख़त्म होने तक हमारी इंजीनियरिंग टीम पहुँच चुकी थी और उसने कई जगह पर माइंस बिछाने का काम कर लिया था ग्रेनेडियर्स ने जहां ट्रेंचेस खोद रखे थे वहाँ। 9 तारीख को सुबह 9 बजे जेट्स से पाकिस्तान ने बटालियन पर हमला किया। किस्मत से कोई नहीं मरा। फिर पाकिस्तान पूरा दिन हमला करता रहा और ग्रेनेडियर्स हमले को रोकते रहे। इसे रोकने में भारत ने पाकिस्तान के 13 undefeatable टैंक defeat कर दिए थे। जिनमे से दो 8 तारीख को और चार 9 तारीख को अकेले अब्दुल हमीद ने ख़त्म किये थे ! इन 13 के अलावा भी पाकिस्तानी कई टैंक्स खाली करके भाग गए थे हमला होने पर, जो भारत ने गिफ्ट के तौर पर रख लिए थे। 

10 तारीख को पाकिस्तान ने फिर टैंक्स से हमला किया और अब्दुल हमीद ने 2 और टैंक्स डिस्ट्रॉय कर दिए। लेकिन फिर पाकिस्तान ने हैवी आर्टिलरी के साथ बढ़ना शुरू कर दिया। 3 और टैंक्स आये हमला करने जिनमे से 1 को फिर अब्दुल हमीद ने डिस्ट्रॉय कर दिया। लेकिन इस समय अब्दुल हमीद की पोजीशन ऐसी बन गयी की वो अपनी ओपन जीप में एक टैंक के बिलकुल सामने आ गए थे। बिलकुल फिल्मी स्टाइल में मेक्सिकन standoff बन गया था, टैंक का मुंह अब्दुल हमीद की ओपन जीप की तरफ, और अब्दुल हमीद की गाडी और RCLR का मुंह पाकिस्तानी टैंक की तरफ। दोनों ने हमला किया और अब्दुल हमीद ने छाती पे वार झेल के ऐसी शहादत दी थी की फिर पाकिस्तानी आगे नहीं बढ़ पाए उस पोजीशन से। ये पाकिस्तान की इस युद्ध में सबसे बड़ी हार थी। 
अब अब्दुल हमीद ने कुल कितने टैंक उड़ाए थे इसपर कोई एकमतता नहीं है, कुछ लोग 6 बताते हैं, कुछ 7, कुछ 10, और कुछ 11, दरअसल ये सब इसलिए है क्यूंकि वहाँ उस समय कम ही लोग मौजूद थे तो जो बयानों के हिसाब से रिकॉर्ड किया वही जगह जगह मौजूद है। लेकिन अगर सभी versions की बताई बातों को जोड़ लें तो कुल 11 टैंक्स के उड़ाए जाने की टेस्टीमोनीज़ है। 

वैसे ये जितनी भी संख्या है वो सब बहुत ज्यादा है क्यूंकि इस तादाद में दुनिया के किसी इन्फेंट्री वाले ने कभी ना पहले टैंक उड़ाए थे ना बाद में उड़ा पाया था। इसलिए अब्दुल हमीद इतिहास में एक विरला ही अचीवमेंट लिए बैठे हैं। अब्दुल हमीद को भारत का सबसे बड़ा वीरता पुरूस्कार मिला, परम वीर चक्र, जो उनकी रेजिमेंट का भी पहला परम वीर चक्र था !

Saturday, June 13, 2020

फरिश्ता : 80 साल के जगदीश लाल आहूजा 17 सालों से गरीबों को मुफ्त में खाना खिला रहे हैं

- शशांक गुप्ता

आज जब लोग धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने में तुले हैं उस माहौल में एक इंसान एक के बाद एक अपनी करोड़ों की सात प्रापर्टी  सिर्फ इसलिए बेच दिया क्योंकि कोई भी गरीब भूखे पेट न सोए। उनका मकसद सिर्फ है भूखे को खाना खिलाना।  हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ के लंगर बाबा के नाम से मशहूर 80 साल के जगदीश लाल आहूजा की।  यह फरिश्ता चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल के बाहर मरीजों ,उनके तीमारदारों और गरीबों को पिछले 17 सालों से मुफ्त में खाना खिला रहे हैं।

जगदीश लाल आहूजा का जन्म आज से 80 साल पहले पेशावर में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में है। 1947 में देश के बंटवारे के चलते जब वह पटियाला आए उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 12 साल थी। जिंदा रहने के लिए कुछ करना जरूरी था, तो उन्होंने उस छोटी सी उम्र में टॉफियां बेचकर अपना गुजर-बशर किया। 1956 में जब वह चंडीगढ़ आए, तो उनके जेब में सिर्फ कुछ ही रुपये थे। यहां उनका केले का कारोबार खूब फला-फूला और पैसे की कोई कमी न रही। 

जगदीश आहूजा ने जबसे लंगर शुरू किया तबसे उनके सामने कई बार आर्थिक परेशानियां आईं, लेकिन वे कभी पीछे नहीं हटे और अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया , लंगर नहीं रूका। लंगर चलता रहे, इसके लिए उन्होंने मेहनत से जुटाई अपनी संपत्तियों को एक-एक कर बेच दिया।आज इस 'लंगर बाबा' की वजह से रोजाना लगभग 2 हजार लोग अपना पेट भरते हैं। जगदीश ने कसम खाई है कि जबतक वह जिंदा रहेंगे, तबतक उनका लंगर चलता रहेगा और भूखों का पेट भरता रहेगा। वह सिर्फ लंगर ही नहीं चलाते, बल्कि समय-समय पर गरीबों में कंबल, स्वेटर, जूते और मोजे भी बांटते रहते हैं। 

आपकी जिंदगी कड़वाहट से भर गई है ,आप धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने लगे हैं लेकिन इसी दुनिया में कहीं जगदीश लाल आहूजा जैसा इंसान भी  हैं जो बिना किसी का धर्म और जाति पूछे उनका पेट भर रहा है। मानवता के इस नेक बन्दे को मेरा प्रणाम।