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Saturday, July 18, 2020

Rajasthan crisis: SOG arrests Sanjay Jain, BJP Demands CBI Inquiry Into Phone Tapping Allegations



New Delhi, IndiaSambit Patra, speaking today on the allegations of horse trading made by Congress, asked if the phone conversation thus recorded was done through phone-tapping.

Congress had shared three audio clips as proof of horse-trading of MLAs, implicating a Union Minister Gajendra Singh Shekhawat, as well. Patra asked whether all political groups were being phone-tapped in Rajasthan, and demanded a CBI inquiry into the matter, while rubbishing claims that BJP was in any way involved in the political tussle

Our morality is crystal clear," he said, while demanding to know whether the Standard Procedure of Operations (SoP) regarding phone tapping was followed by Congress. BJP's Laxmikant Bhardwaj has filed a complaint against Congress leaders Mahesh Joshi, Randeep Surjewala, and others, at Ashok Nagar Police Station, over a "manufactured" audio clip and false statements by Congress.

Meanwhile, Special Operations Group (SOG) of state police on Friday arrested Sanjay Jain, whose name surfaced in one of the audio recordings pertaining to the alleged conspiracy to topple the Ashok Gehlot government.

Sanjay Jain has been arrested by the Special Operations Group (SOG) team of Rajasthan Police, under sections 124A and 120B of Indian Penal Code On Friday, two first information reports were registered by the SOG based on the complaint filed by Congress chief whip Mahesh Joshi about audiotapes, which Congress said, had conversations about an alleged conspiracy to topple the Ashok Gehlot-led government.


Gajendra Singh, Bhanwarlal Sharma, and Sanjay Jain were named in the FIR. There were two complaints from Mahesh Joshi (Congress leader), it is with respect to the audio that went viral yesterday. We registered 2 FIRs under section 124A and 120B.


The veracity of clip to be investigated, Ashoke Rathore, ADG SOG
On Friday morning, Congress spokesperson Randeep Singh Surjewala, citing a leaked audio clip, demanded an investigation into the alleged horse-trading and an FIR against Union minister and Jodhpur MP Gajendra Shekhawat for attempts to topple Ashok Gehlot government's in Rajasthan. Based on the transcript of the purported conversations read by Surjewala at a Press Conference in Jaipur, the Congress suspended two party MLAs Bhanwar Lal Sharma and Vishvendra Singh.

Tuesday, July 14, 2020

ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट की बगावत को सही मानने की कई वजहें हैं !



- संजीव आचार्य
ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या सचिन पायलट, मैं इनकी बगावत को एक राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर गलत नहीं मानता। कारण एकदम स्पष्ट है। दोनों युवा पीढ़ी के नेताओं को राहुल गांधी ने आश्वासन दिया था कि विधानसभा चुनाव जीतकर काँग्रेस सत्ता में आयी तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इस वादे के दम पर दोनों ने क्रमशः मध्यप्रदेश और राजस्थान में जमकर मेहनत की। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के निर्विवाद और करिश्माई, ऊर्जा से भरे युवा चेहरे के कारण ही मध्यप्रदेश में काँग्रेस सत्ता की दहलीज पर पहुंच पाई थी। यह खुद कांग्रेसी भी जानते हैं कि जनता ने कमलनाथ के नाम पर वोट नहीं डाले थे। किसानों के दो लाख तक के कर्ज माफ करने का चुनावी वादा निर्णायक साबित हुआ। सोनिया गांधी ने कोटरी के दबाव में कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। दिग्विजयसिंह ने सत्ता की डोरियां नेपथ्य से ऐसे नचाई जैसे कठपुतली वाला नचाता है। मुख्य सचिव और पुलिस का मुखिया दोनों दिग्गी राजा के प्यादे नियुक्त हुए। 

जाहिर है, सरकार के पहले छह-आठ महीने सरकार या तो कमलनाथ के दो ओएसडी चला रहे थे या राजा राधौगढ़। न किसी मंत्री की कोई हैसियत थी न विधायक की। इस दौरान सिंधिया तमाशबीन बने लाचार देखते रहे, इस उम्मीद में की राहुल गांधी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके संतुलन बनाएंगे। लेकिन उनका दुर्भाग्य या खिलाड़ियों का खेल, राहुल खुद ही लोकसभा चुनाव में हार की निराशा में ऐसे डूबे कि अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर किनारे हो गए। और मंझधार में छोड़ गये अपनी टीम के युवा नेताओं को। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों के विभागों में ट्रांसफर पोस्टिंग हो या ठेके, फैसले कमलनाथ-दिग्गी राजा के अन्तःपुर से ही होते रहे। हद तो तब हो गई जब सिंधिया ने भोपाल में एक अदद बंगला मांगा, कमलनाथ ने वो बंगला उन्हें देने के बजाय अपने पुत्र नकुल नाथ को आवंटित कर दिया!! यह सिंधिया के लिए आईना दिखाने की घटना थी कि कमलनाथ उन्हें हैसियत दिखा रहे हैं। दिल्ली हाईकमान ने भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया। मजबूरन सिंधिया को अपने आत्मसम्मान के बचाव के लिए काँग्रेस सरकार को गिराने का निर्णय लेना पड़ा। पन्द्रह महीने के इस "दिग्गजों"के झगड़े से पार्टी के कार्यकर्ताओं में रोष व्याप्त है। भाजपा सत्ता में आ गई। 

अब राजस्थान की बात करें। सचिन पायलट ने पूरे पांच साल प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष किया। जब पार्टी सत्ता में आई तो सोनिया की कोटरी ने अशोक गहलोत की ताजपोशी करवा दी। राहुल गांधी फिर एक असहाय नेता के रूप में दिखाई दिए। वही अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, चिदम्बरम ,एंटोनी वगैरह ने यह प्रमाणित कर दिया कि पार्टी उनकी जकड़ से मुक्त हो नहीं सकती। पायलट एक सम्भावना से भरपूर युवा ऊर्जावान राजनीतिज्ञ हैं। सिंधिया की तरह यह समझ चुके हैं कि हाईकमान को हाईजैक कर लिया गया है। पार्टी का भविष्य अंधकारमय है। 

भाजपा या उसके मुख्य रणनीतिकार अमित शाह को दोष क्यों दिया जाए? असंतुष्ट खुद उनसे संपर्क कर रहे हैं ये सच है। सिंधिया, पायलट को छोड़ो, उत्तरप्रदेश में जिस तरह से प्रियंका गांधी अपनी निजी शक्ति से अलग ही काँग्रेस चला रही है, वहां के नेताओं में भी जबरदस्त असंतोष है। उनके सचिवालय पर वामपंथी छात्र नेता का कब्जा है। योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व एजेंडा की प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश में लेफ्टिस्ट क्या खाक माहौल पलटेंगे? लिहाजा आधा दर्जन नेता भाजपा के दरवाजे के बाहर कटोरे लिये बैठे हैं। क्योंकि राज्य में दस राज्यसभा सीटें खाली होनी है। जिसमे से एक समाजवादी पार्टी को मिलेगी, शेष 9 सीटें भाजपा के खाते में जाएगी। इन सीटों के जरिए सांसद बनने के लिए कभी राहुल के खास समझे जाने वाले सभी नेता आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, कमलापति त्रिपाठी के पोते,मोदी-शाह जिंदाबाद लगाने को आतुर हैं। मुंबई के मिलिंद देवड़ा भी इसी कतार में हैं। 

ऐसा लगता है, शरीर भाजपा का रहेगा इसमें धीरे धीरे आत्मा काँग्रेस की प्रविष्ट हो जाएगी। संसद और विधानसभाओं में सर्वे किया जाए तो तम्माम पूर्व काँग्रेसी भाजपा की ड्रेस में मिलेंगे। इससे आज की राजनीति का सत्ता केंद्रित चरित्र उजागर हो गया है। विचारधारा या दलगत निष्ठा 21वीं सदी का सबसे बड़ा चुटकुला है।

Monday, July 13, 2020

सचिन पायलट तो तभी से असंतुष्ट थे, जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनी थी !



- अमिता नीरव
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद से ही सबकी नजरें राजस्थान पर टिकी हुई थी। यूँ तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जिस दिन बनी थी, उसी दिन से उसके कभी भी गिर जाने के कयास लगाए जा रहे थे। राजस्थान में हालाँकि मध्यप्रदेश जैसे हालात नहीं थे, फिर भी बीजेपी ने जिस तरह से सारे एथिक्स को ताक पर रखकर राजनीति में आक्रामकता को मूल्य बना दिया है, उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सारे ही कांग्रेस शासित राज्य बीजेपी के निशाने पर होंगे।


कांग्रेस ने भी इतिहास में राज्य सरकारें गिराई हैं, लेकिन इतनी निर्लज्जता औऱ इतने खुलेआम विधायकों की खऱीद-फरोख्त का साहस नहीं कर पाई है। बीजेपी ने सारी नैतिकता और सारे मूल्यों पर ताक पर रखकर राजनीति की एक नई परिभाषा, मुहावरे, चाल-चलन औऱ चरित्र को घड़ा है। इसी के चलते अब सारे ही कांग्रेस शासित राज्य खतरे में नजर आते हैं। चाहे विधानसभा के नंबर कुछ भी कह रहे हों। 
जब राजस्थान सरकार बनी थी, सचिन तब से ही असंतुष्ट थे। वहाँ मुख्यमंत्री का नाम तय करने में कांग्रेस को पसीना आ गया था। इससे भी यह आशंका बनी ही हुई है कि वहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है। खासतौर पर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के तगड़े झटके के बाद...। बीजेपी के पास सबकुछ है, पैसा है, ताकत, शातिर दिमाग और सबसे ऊपर सत्ता, जिसके दम पर वह पिछले कुछ सालों में घटियापन की सारी हदें पार करती रही है। 
इन कुछ सालों में देश के एलीट, संभ्रांत औऱ ट्रेंड सेटर तबके ने खासा निराश किया है। बात चाहे किसी भी क्षेत्र की हो, राजनीति, फिल्म, साहित्य या फिर कला की कोई भी विधा। यकीन नहीं आता कि समाज में जो लोग प्रभावशाली जगहों पर काबिज है, वे इस कदर स्वार्थी, डरपोक और गैर-जिम्मेदार होंगे। देश में प्रतिरोध करने वालों को लगातार दबाया जा रहा है, इससे वो आम लोग जो सरकार से सहमत नहीं हैं, वे भी अपनी बात कहने का हौसला खोने लगे हैं। 1947 से बाद से इमरजेंसी को छोड़ दिया जाए तो देश में इतने बुरे हालात शायद ही कभी हुए होंगे।

हमें यह मानना ही होगा कि देश नायक विहीन हैं। जिस किसी की तरफ हमने नेतृत्व के लिए देखा, उस-उसने हमें निराश किया है। राजनीतिक विचारधारा सिर्फ अनुयायियों के हिस्से में ही है, जो लोग सक्रिय राजनीति में हैं उनकी नजर अब सिर्फ औऱ सिर्फ सत्ता पर है। इस वक्त में जबकि हम नेता विहीन हैं, हमारी जिम्मेदारी बहुत-बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। कॉलेज में पढ़ा था कि राजनीति सत्ता के लिए संघर्ष है और ‘साम-दाम-दंड-भेद’ या फिर ‘बाय हुक ऑर बाय क्रुक’ जैसे मुहावरे जीवन के हर क्षेत्र की तरह राजनीति में भी कुछ भी करके सत्ता में आने को प्रोत्साहित करते हैं।

तब हमारे लिए क्या बचता है? क्या हम सिर्फ ऐसे वोटर ही बने रहेंगे जिसे सत्ता में बैठे लोग जैसे चाहे, वैसे प्रभावित कर सकते हैं या फिर हम अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करेंगे? मध्यप्रदेश में सरकार बदलने के बाद विधानसभा में उपचुनाव होने हैं, ऐसे में हमें अपनी भूमिका पर फिर से विचार करना चाहिए। हमें हर हाल में सत्ता की चाहत रखने वालों को आईना दिखाना ही होगा। अब राजनीति में नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों की स्थापना के लिए हमें ही आगे आना होगा। वोटर्स को ही यह बताना होगा कि अब अनैतिक तरीके से बनाई गईं सरकारों को हम स्वीकार नहीं करेंगे। यदि सत्ता चाहिए तो अपने चरित्र को बदलना होगा। हमें भी यदि बेहतर समाज चाहिए तो अपना राजनीतिक व्यवहार बदलना होगा।

हर संकट में कुछ बेहतर होने का बीज छुपा होता है, इस दौर में लगातार गिरते राजनीतिक और सामाजिक मूल्यों को बचाने के लिए हमें किसी नायक का इंतजार करने की बजाए, खुद ही अपनी और अपने समाज की जिम्मेदारी लेनी होगी। उन सारे राजनेताओं को नकारिए जो सिर्फ सत्ता की चाह औऱ महत्वाकांक्षा में जनादेश का अपमान कर रहे हैं। यदि सत्ता मूल्यों के साथ खिलवाड़ करती है तो उसे भी सबक सिखाना होगा।

Centre Asks PTI to Pay Over Rs 84 Crores Within a Month for ‘breaches’ in its Delhi office



New Delhi: The Land & Development Office, which comes under the Union Ministry of Housing and Urban Affairs, has sent a notice to news agency PTI, demanding it to cough up more than Rs 84 crore as penalty. The notice dated July 7 says that the penalty has been imposed due to "breaches" at its office in Delhi.

The notice that sought Rs 84,48,23,281 argues that "the less will be pleased to regularise the breaches in the premises temporarily up to 14.07.2020 and withdraw the right of re-entry of the premises subject to the following conditions being fulfilled by you within 30 days from the date of issue of this letter."

The notice also stipulates that the news agency needs to give an undertaking on non-judicial stamp paper stating that it will pay the difference of "misuse/damage charges" if the land rates are revised with effect from 01.04.2016 by the government and will also remove the "breaches" by 14.07.2020 or get them regularised by paying charges.

The notice also warns that further action to execute the deed has to be subject to complete payment and putting the premise to use according to the masterplan.

The Land & Development Office so warned that an additional 10 per cent interest may need to be coughed out by PTI if it fails to furnish the concerned amount within the stipulated time period.

Additionally, if the news agency fails to comply with the terms within the said period, the concession will be withdrawn. In other words, they will have to pay the penalty up to the actual date of payment then and will also be subject to actions.

This stern notice for alleged violations by PTI comes closely on the heels of national broadcaster Prasar Bharati locking horns with PTI over its reportage that it called "anti national".

Prasar Bharti had recently sent a letter threatening to end its "relationship" with PTI after it carried an interview of Chinese Ambassador Sun Weidong, where he blamed India for the India-China violent standoff that saw 20 Indian bravehearts getting martyred.

ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहीं नहीं होती जहां राज्य और धर्म में ज़रा भी घालमेल न हो, यह कपोल कल्पना है!



-शादाब सलीम
हमने अपने जीवन में वंदे मातरम नारे पर विवाद देखें है। एक पक्ष कहता था- नारा लगाओ और दूसरा पक्ष कहता था- मैं नहीं लगाता। विभाजन, मस्ज़िद के शहीद हो जाने, बम्बई के दंगे और फिर बम्बई के बम कांड ने इतना धार्मिक वैमनस्य नहीं बोया था, जितना इस नारे की बहस ने बोया है। मूर्खता की इंतहा तो यह थी कि करने वालो ने इस नारे पर भारत की संसद तक में बहस कर डाली। इस बहस को प्रायोजित किसने किया! ऐसे ही मैंने योगा और सूर्य नमस्कार पर उठा पटक देखी है। 

वंदेमातरम नारा भारत के बहुसंख्यक आबादी के धर्म से आया है। उन्होंने भारत के नक्शे पर एक देवी की तस्वीर बनायी उसे माँ कहा क्योंकि बहुसंख्यक आबादी के धर्म में देश माँ है जबकि आयरलैंड के आदमी से आप देश को माँ कहेंगे तो वह इस पर हंसेगा और कहेगा- देश तो देश है देश क्या माँ बहन। 

भारत के मुसलमानों को कार्ल मार्क्स वाली अजीब नास्तिकता वाली धर्मनिरपेक्षता की कल्पना दिखायी गयी है जो बहुत बड़ी बेमानी है। भारत के मुसलमानों ने जिस धर्मनिरपेक्षता की कल्पना की है असल में वह तो सारी धरती पर नहीं मिलेगी। ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहीं नहीं होती जहां राज्य और धर्म में ज़रा भी घालमेल नहीं हो, यह एक कपोल कल्पना है।

किसी भी देश में वहां की बहुसंख्यक आबादी का धर्म रच बस जाता है। आप स्टेट में बहुसंख्यक आबादी के धर्म की सेंध को रोक ही नहीं सकते और रोकना भी बेमानी है। भारत के न्यायालय तक में मंदिर बन गए है। कहीं इधर उधर ही छोटे मोटे पत्थर रखे हुए है। पुलिस थानों के बाहर मंदिर बने हुए है। सरकारी अस्पताल और दफ्तरों में मंदिर है, भले स्टेट ने नहीं बनाए पर प्रायवेट लोगों ने बना लिए।

भारत के अल्पसंख्यक मुसलमान इस खेल को नहीं समझ पाए जो उनके साथ खेला गया। वह मूर्ख बनकर वंदे मातरम नारे तक का विरोध करने लगे और यदि खामोश रहे तो विरोध करने वालो को जूता भी नहीं मारा।इसका प्रमुख कारण भारत के मुस्लिम कपोर कल्पित अजीब धर्मनिरपेक्षता से बाहर नहीं आ पाए।

धर्म सारी दुनिया में जीवन में बहुत अहम भूमिका रखने वाला रहा है। आप खगोल विज्ञान में खोज देखें। जैसे एक गैलेक्सी है जिसका नाम एंड्रोमेडा है। यह एंड्रोमेडा एक रोमन समुदाय के देवता का नाम है। नासा के चंद्रमा पर मनुष्य को भेजने वाले जितने भी मिशन भेजे गए है उन सब का नाम अपोलो है। अपोलो एक ग्रीक देवता है। स्टीफन हॉकिंग भले ईश्वर के अस्तित्व को नकार को गए हो पर खगोल की सारी बुनियाद ग्रीक और क्रिश्चियन धर्म पर रखी हुई है। नेप्च्यून नाम का ग्रह नेप्टोइन देवता के नाम पर है।

एंड्रोमेडा गैलेक्सी को यदि भारत खोजता तो उसका नाम रिद्धि रख देता और ईरान की अंतरिक्ष एजेंसी खोजती तो उसे नूह या जुलकरनैन का नाम देती। भारत यदि चंद्रमा पर ऐसे मिशन भेजता तो उसे शिव या गणेश के नाम देता और अगर तुर्की भेजता तो मुमकिन है मूसा, ईसा और हुसैन नाम देता।

इसमें दिक्कत क्या है? किसी भी देश के रंग ढंग में बहुसंख्यक आबादी का धर्म आ ही जाता है और इसे स्वीकार करना चाहिए। यूनाइटेड स्टेट में क्या क्रिश्चिनिटी का रंग ढंग नहीं है या फिर धर्मनिरपेक्ष तुर्की की स्टेट में इस्लाम नहीं है? या घनघोर उदार और धर्मनिरपेक्षता से भरे देश इंग्लैंड की स्टेट में क्रिश्चिनिटी नज़र नहीं आती?

भारत के मुसलमानों को बहुत अलग ही तरह की अजीब धर्मनिरपेक्षता वाली किताबी थ्योरी पढ़ायी गयी जो उन्हें ढूंढने पर भी सारे विश्व में कहीं नजर नहीं आएगी। उन्होंने बहुसंख्यक आबादी के इवेंट और तरीको में आनंद, उत्साह और उल्लास लेने के बजाए बहुसंख्यक आबादी से बैर पाल लिया। 

असल में धर्मनिरपेक्ष स्टेट वाली कोई भी बहुसंख्यक आबादी अपनी स्टेट को धर्म विशेष के लिए नहीं बनाना चाहती यह भारत में भी नहीं होगा पर बहुसंख्यक आबादी का रंग ज़रूर स्टेट में घुल जाता है। अगर ईरान को धर्मनिरपेक्ष कर दिया जाए तो दोबारा उसकी बहुसंख्यक आबादी कभी धर्म आधारित स्टेट नहीं चाहेगी। अल्पसंख्यक आबादी इसके साथ आनंद से रहने के उपाय ढूंढ लेती है।

'बेटी बचाओ' का शोर मचाने वाले तुम्हारे लिए आगे नहीं आएंगे, तुमने इस्तीफा देकर ठीक ही किया !



-श्याम मीरा सिंह
उम्मीद थी राज्य के अधिकारी, मंत्री, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, कोई तो इस लड़की को शब्बाशी देंगे, कोई तो कहेगा "तुम्हें रात के अंधेरे में डर नहीं लगता बेटी?", कोई तो कहेगा "Proud of you बेटी तुम पर पूरे देश को गर्व है"। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसा इस देश में हो भी नहीं सकता। इतनी रात, मंत्री जी के बेटे से भिड़ जाने में कितनी बार डर लगा होगा, कितनी बार हांथ कांपे होंगे ये तो इस बच्ची को ही पता होगा। 

फिलहाल सभी देशवासियों को बधाई, आखिर इस लड़की ने इस्तीफा दे ही दिया है। जिसका नाम है सुनीता यादव। गुजरात पुलिस में कांस्टेबल हैं। सूरत शहर में तैनात हैं। बीते दिन मंत्री जी के बेटे रात में घूमने निकले, मास्क नहीं था, नाइट कर्फ्यू नियमों के तहत इस लड़की ने मंत्री जी के बेटे को रोक लिया, मंत्री जी के बेटे में रौब इतना था कि मामूली चेकिंग भी "दुस्साहस" लगी। मंत्री जी के बेटे देख लेने की धमकी पर उतर आए, ये भी कहा कि तुमको यहीं 365 दिन तक खड़े करके रखेंगे। 

इसी बीच मंत्री जी के बेटे का दोस्त मिडिल फिंगर भी दिखाता है। ये मिडिल फिंगर ही शानदार भारतीय कानून व्यवस्था की उच्चतम होती रैंक की तरफ इशारा था, जो मिडिल फिंगर द्वारा रिप्रजेंट किया जा रहा था। मिडिल फिंगर बता रही थी कानून संविधान मंत्री जी की मिडिल वाली उंगली में लटका हुआ है। 

लड़की ने मंत्री जी को फोन लगाया। मंत्री जी अपने बेटे पर ही गए थे, हारकर इस लड़की ने अपने अधिकारियों से बात की, लेकिन इस बच्ची का साथ देने के बजाय, मामला रफा दफा करने के लिए दबाव बनाया। गलती अधिकारियों की भी नहीं है। सिस्टम ऐसे ही काम करता है। जो मिडिल फिंगर लड़के ने दिखाई थी, वही हमारी नियति है नेताओं के आगे। प्रधानमंत्री ने तो शायद पहले ही आगाह कर दिया था कि "बेटी बचाओ"..अगर बचा सको तो...