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Saturday, July 11, 2020

देवदासी प्रथा: धर्म के नाम पर आंध्र प्रदेश में करीब 30 हजार देवदासियां शोषण का शिकार होती हैं

- निरवाना रॉय
अभी कुछ दिन से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लगातार शेयर की जा रही है निरवाना को.. जिसमें एक ग्यारह साल की बच्ची का देवदासी प्रथा के अनुसार एक मठ के महंत द्वारा शोषण किया गया। उस पोस्ट में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बताया गया है कि कैसे महंत ने उस बच्ची का शोषण किया। ईश्वर से मिलन करवाने के नाम पर एक बच्ची जिसका न तो शारीरिक  विकास हुआ है न मानसिक उसके माता-पिता द्वारा मठ में समर्पित कर दी जाती है, और महंत जो 120 किलो का है उस मासूम बच्ची पर चढ़कर उसका बलात्कार ईश्वर से मिलन के नाम पर करता है. कितना शर्मनाक है ! पोस्ट ये बताती है कि बच्ची के जननांगो से खून तक निकलने लगता है और इस भयावह स्थिति में वह बेहोश तक हो जाती है, पर वह जानवर उसका लगातार शोषण करता रहता है।

देवदासी प्रथा कहते ही आपके मन में आती है वो महिलाएं जो धर्म के नाम पर दान कर दी जाती है और फिर उनका जीवन धर्म और शारीरिक शोषण के बीच जूझता रहता है। आंध्र प्रदेश कि लक्षम्ममा मानती है उनका भी शारीरिक शोषण हुआ लेकिन वो अपना दर्द किसी के साथ बांटना नहीं चाहती। आंध्र प्रदेश में लगभग 30,000  देवदासी हैं जो धर्म के नाम पर शारीरिक शोषण का शिकार होती हैं। लक्षमा को मौका मिला तो न केवल वो उस व्यवस्था से निकल गई बल्कि उसके खिलाफ संघर्ष में उठ खड़ी हुई। लक्षमा "पोरोटा" संघम की अध्यक्ष हैं जो देवदासी प्रथा के खिलाफ सामाजिक जागरूकता लाने के लिए काम कर रही है

लक्षमा और 500 देवदासिया हाल ही में हैदराबाद में हुई एक सुनवाई में एकत्रित हुईं, जनसुनवाई में देवदासी महिलाओं की समस्याओं पर भी चर्चा हुई जिसमें उन बच्चों का भी जिक्र हुआ जो नाज़ायज रिश्तों की पैदाइश हैं। लक्षमा ने मांग उठाई ऐसे सारे बच्चों का D.N.A टैस्ट करवाया जाए ताकि उनके पिता का पता लगाया जा सके और उन बच्चों को सम्पत्ति में हिस्सा मिल सके ऐसा करने से किसी पुरुष की देवदासी के नाम पर इन महिलाओं का शोषण करने की हिम्मत नहीं होगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर विमला थोराट कहती हैं कि "देवदासी महिलाओं को इस बात का भी अधिकार नहीं रह जाता कि किसी की हवस का शिकार होने से इंकार कर सके" आप जरा सोचिए जब समाज में कोई लड़की माडर्न होती है या स्वयं यह पेशा अपनाती है तो उस पर असंख्य सवाल उठते हैं कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुशी से ये काम करती है।

Wednesday, July 8, 2020

कपड़ों से पहचानने वालों ने इस बार फेसबुक डीपी से पहचाना और प्रोफेसर 'ख़ान' पाकिस्तानी हो गए



-आशीष दीक्षित
विश्वविद्यालय है रुहेलखण्ड। शहर है उत्तर प्रदेश का बरेली। इसी विश्वविद्यालय में बरसों से फिजिक्स के एक प्रोफेसर हैं सलीम खान। अभी तक प्रोफेसर साहब को कम ही लोग जानते थे। आज सब जान गए। हंगामा यूं बरपा कि देखते ही देखते आई प्राउड टू बी एन इंडियन कहने वाले प्रोफेसर साहब हिंदुस्तानी से पाकिस्तानी हो गए। 

खता कुछ यूं हुई कि प्रोफेसर साहब ने कोरोना अवेयरनेस को अपनी डीपी बदली। फेसबुक डीपी बदलते समय एक फ्रेम सेलेक्ट किया। उस फ्रेम में पाकिस्तान का लोगो था। छोटे से लोगो पर नजर पड़ी नहीं। फ्रेम सेट हो गया। एक युवा देशभक्त की नजर पड़ी। प्रोफेसर का नाम सलीम खान है। फ्रेम में पाकिस्तान का लोगो है। देशद्रोही की पहचान को और क्या चाहिए। इस दौर में तो वैसे भी कपड़ों से ही दंगाइयों और देशद्रोहियों की पहचान हो जाती है।युवा देशभक्त ने अपना कर्तव्य निभाया। पुलिस में शिकायत की। मामले ने तूल पकड़ा। प्रोफेसर ने माफी मांग ली। मगर लोग इतने से संतुष्ट होने वाले कहां हैं।

अब सोशल मीडिया ट्रायल शुरू हो चुका है। उन्हें किसी ने स्वदेश के युवाओं को देशद्रोह के मार्ग पर ले जाने वाला व्यक्ति बताया तो किसी ने कहा कि यह लोग जितना पढ़ेंगे उतना ही बम बनाएंगे। अनपढ़ रहेंगे तो पत्थर मारेंगे। एक जनाब बोले कि इस पर जाकिर नाइक का असर लगता है। प्रोफेसर साहब सदमे में हैं। पुलिस अपने स्तर से जांच कर रही है। विश्वविद्यालय प्रशासन भी अपराध माफ करने के मूड में तो नजर नहीं आता है। 

लगे हाथ हमने भी उनकी फेसबुक वाल देख डाली। 1905 दोस्त हैं। तमाम पत्रकार भी। लगभग साल भर की वाल खंगालने के बाद एहसास होता है कि प्रोफेसर साहब फेसबुक पर बस इसलिए है कि दुनिया यह ना कहें कि वह फेसबुक पर नहीं हैं। तमाम लोगों ने उन्हें टैग कर रखा है। नहीं तो उन्होंने खुद ज्यादा पोस्ट नहीं की हैं। जो पोस्ट हैं उनमें पांच-छह बार उन्होंने अपना डीपी जरूर बदला है, जिनमें वह भारतीय तिरंगे के साथ नजर आ रहे हैं।

फ्रेम वाली डीपी उन्हें पसंद हैं। अक्सर वो इनका इस्तेमाल करते हैं। कभी भारतीय टीम का समर्थन बढ़ाते हुए तो कभी आई प्राउड टू बी एन इंडियन या आई स्टैंड फॉर पुलवामा मार्टियर्स कहते हुए।विश्वविद्यालय में लगे तिरंगे की तस्वीर भी उनकी फेसबुक वॉल पर नजर आती है। बीच-बीच में कुछ धार्मिक पोस्ट भी हैं। साथ में 11 अप्रैल को एक नामी समाचार पत्र में छपे उनके विचार की कटिंग भी जिसमें वो कहते  हैं कि मौलाना हो या नेता सब ने मिलकर मुसलमानों को बेवकूफ बनाया है। जो लोग मुसलमानों को डरा हुआ बताते हैं, वह बिल्कुल गलत है। मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान से अच्छा कोई देश नहीं हो सकता।

तो जनाब, आपने भले ही कहा हो कि मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान से अच्छा कोई देश नहीं हो सकता। भले ही आप ने तमाम बार तिरंगा लगाकर अपने देशभक्त होने का परिचय दिया हो। भले ही आपने पुलवामा में शहीद जवानों के लिए श्रद्धांजलि दी हो। मगर अब आप एक छोटी सी गलती कर संदेह के दायरे में खड़े हैं। आप यह कैसे भूल गए कि योर नेम इज खान एंड यू आर मोस्ट सस्पेक्टड पर्सन ऑफ इंडिया।

Monday, July 6, 2020

सात आसमान कहां हैं, उनका क्या मतलब है? सोच कर देखिए इस यूनिवर्स में हमारी क्या हैसियत है?



-अशफाक अहमद
धार्मिक नजरिये से आपने अक्सर जिक्र सुना होगा.. सात आसमानों का। अब यह हैं या नहीं, इस पर शायद ही चर्चा होती हो लेकिन सहज स्वाभाविक रूप से हम 'मान' जरूर लेते हैं सात आसमान जैसे कांसेप्ट को। क्या वाकई आसमान जैसी कोई चीज है.. तब तक है जब तक हम किसी पिंड के सर्फेस पर हैं लेकिन जैसे ही सर्फेस छोड़ कर ऊपर जाते हैं तो हमें वायुमंडल की अलग-अलग परतों का सामना करता पड़ता है, और साधारण भाषा में यही आस्मान समझा जाता है। यह वायुमण्डलीय लेयर्स अलग-अलग पिंडों पर अलग-अलग संख्या में हो सकती हैं।

लेकिन सवाल सात आसमान का है.. यह सात आसमान क्या बला हैं? अगर इसे इन्हीं वायुमंडलीय लेयर्स के रूप में समझें तो यह सात नहीं पांच हैं.. 8-14 किलोमीटर तक ट्र्पाॅस्फियर है, यह सबसे डेंस है और इसी लेयर में मौसम बनते हैं और जहाज वगैरह उड़ते हैं। 50 किलोमीटर ऊपर तक स्ट्रेटोस्फियर है और इसी लेयर में ओजोन की परत है, इससे 85 किलोमीटर ऊपर तक मेसाॅस्फियर है और यह वह लेयर है जिसमें बाहर से आने वाले उल्कापिंड वगैरह जल जाते हैं, फिर इससे लगभग 600 किलोमीटर तक थर्मोस्फियर है, इसी लेयर में सेटेलाइट स्थापित की जाती हैं और इसके ऊपर सबसे बाहरी और अंतिम परत एग्जाॅस्फियर जो दस हजार किलोमीटर तक फैली होती है।

हालांकि मुख्य लेयर इतनी ही हैं लेकिन आयोनाॅस्फियर नाम की इलेक्ट्रान्स, आयोनाइज्ड एटम्स और माॅलीक्यूल्स वाली एक मिक्स लेयर भी एग्जिस्ट करती है जो सर्फेस से 48 किमी से ले कर 935 किमी तक मौजूद है और कई लेयर्स को ओवरलैप करती है, यह सन-अर्थ इंटरेक्शन के लिहाज से एक क्रिटिकल लिंक है, इसी लेयर से रेडियो कम्यूनिकेशन संभव हो पाता है।

अब सवाल यह है कि सात आसमान का मतलब यही लेयर्स हैं या सब मिला कर एक आसमान है और बाकी छः हमें एग्जाॅस्फियर के पार जा कर स्पेस में ढूँढने पड़ेंगे.. तो फिर चलिये, आज की जानकारी के हिसाब से हम इस बड़ी सी पृथ्वी से बाहर निकल कर थोड़ी जांच पड़ताल तो कर ही सकते हैं। सबसे पहले हम पृथ्वी से बाहर निकल दूरी के हिसाब से नजदीकी पिंडों को समझते हैं और फिर इसके अंतिम छोर तक चलते हैं।

पृथ्वी के हिसाब से सबसे नजदीकी पिंड चंद्रमा है, लेकिन इसके बीच भी इतनी दूरी है कि तीस पृथ्वी आ जायेंगी और अगर हम सौ किलोमीटर की गति से चंद्रमा की तरफ चलें तो भी एक सौ साठ दिन लग जायेंगे।

इसके बाद हमारा एक नजदीकी ग्रह मंगल है जो 225 से 400 मिलियन किमी की दूरी (परिक्रमण की भिन्न स्थितियों में) पर है, जहां रोशनी को भी पंहुचने में बीस मिनट लग जाते हैं, स्पेस में रोशनी से तेज और कोई चीज नहीं चल सकती और रोशनी की गति तीन लाख किमी प्रति सेकेंड होती है। स्पेस में अब तक सबसे दूर उड़ने वाला वोयेजर प्रोब, जो 17 किमी प्रति सेकेंड की गति से चल रहा है, हमारे अपने सौर मंडल से ही बाहर निकलने में इसे सैकड़ों साल लग जायेंगे।

अब अगर हम इस सौरमंडल से बाहर निकलें तो पंहुचेंगे इंटरस्टेलर नेबरहुड में जहां दूसरे सौरमंडल हैं। अपने सोलर सिस्टम में आप दूरी को एस्ट्रोनाॅमिकल यूनिट (पृथ्वी से सूर्य की दूरी) में माप सकते हैं लेकिन बाहर निकलने पर दूरी मापने के लिये प्रकाशवर्ष (9.461 ट्रिलियन किलोमीटर) का प्रयोग करना पड़ता है, यानि उतनी दूरी जितना सफर सूर्य की रोशनी एक साल में करती है।

सूरज के बाद हमारा सबसे नजदीकी तारा प्राॅक्सिमा सेंटौरी है जो हमसे 4.24 प्रकाशवर्ष दूर है... अगर वोयेजर की गति (17KM/प्रति सेकेंड) से ही उस तक पंहुचने की कोशिश की जाये तो शायद हजारों साल लग जायेंगे। अब यह सोलर मंडल जिस गैलेक्सी का हिस्सा है, खुद उस गैलेक्सी का फैलाव एक लाख प्रकाशवर्ष का है, जिसमें बीस हजार करोड़ तारे और ग्रह हैं और मजे की बात यह है हम रात में उनका सिर्फ एक प्रतिशत देख पाते हैं।

अब इससे भी हम थोड़ा और दूर जायें तो हमें मिलेगा लोकल ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज, जिसमें 54 गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव (एक सिरे से दूसरे सिरे तक) एक करोड़ प्रकाशवर्ष है। यह हिस्सा ही अपने आप में इतना बड़ा है कि हम शायद बहुत उन्नत हो कर स्पेस ट्रैवल करना शुरू कर दें तो भी किसी तरह इस हिस्से से पार नहीं निकल पायेंगे.. लेकिन यूनिवर्स के स्केल पर यह तो बहुत छोटा है।

खैर.. जब इस सर्कल को जूमआउट करेंगे तो मिलेगा वर्गो सुपर क्लस्टर, यानि वह हिस्सा जिसमें अपने ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज की तरह और भी ग्रुप्स हैं और इस हिस्से का फैलाव ग्यारह करोड़ प्रकाशवर्ष है, तो सोचिये कि यह सर्कल कितना बड़ा होगा, लेकिन अब यह बड़ा सा सर्कल भी दरअसल कुछ नहीं है, बल्कि यह उस लैनीकिया सुपर क्लस्टर में मात्र एक राई के दाने बराबर है, जिसमें एक लाख तो गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव 52 करोड़ प्रकाशवर्ष का है।

अब यह भी सबकुछ नहीं है, बल्कि यह टाईटैनिक लैनीकिया सुपर क्लस्टर का एक छोटा सा हिस्सा भर है, और लैनीकिया सुपर क्लस्टर एक छोटा सा हिस्सा भर है उस ऑबजर्वेबल यूनिवर्स का, जिसे हम आज तक देख पाये हैं। जिसमें कुल दो लाख करोड़ गैलेक्सीज हैं, हमारी पृथ्वी से इसके एक सिरे की दूरी 4,650 करोड़ प्रकाशवर्ष है, यानि कुल फैलाव 9,300 करोड़ प्रकाशवर्ष का है। यह एकदम परफेक्ट आंकड़ा नहीं है क्योंकि लगातार एक्सपैंड होते ऑब्जेक्ट का एक टाईम में एग्जेक्ट डायमीटर तो नापा नहीं जा सकता, हकीकत यह है कि पूरा यूनिवर्स रोशनी से तेज गति से फैल रहा है।

बहरहाल, हमारे यूनिवर्स की उम्र 13.7 अरब वर्ष की मानी जाती है, क्योंकि उससे पहले की रोशनी अब तक डिटेक्ट नहीं की जा सकी... काॅस्मिक इन्फ्लेशन थ्योरी के अनुसार इसके पार भी मल्टीवर्स हो सकता है, जिसके एग्जेक्ट फैलाव का कोई सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता और संभव है कि पूरा ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स ही पृथ्वी पर फुटबाल जैसी (पूरे सुपर यूनिवर्स में तुलनात्मक रूप से) हैसियत रखता हो।

और 54 गैलेक्सीज वाला इतना बड़ा लोकल ग्रुप, अपने ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स का मात्र 0.00000000001 प्रतिशत है, और इसमें इतने तारे/ग्रह/उपग्रह हैं जितने पूरी पृथ्वी पर रेत के जर्रे भी नहीं हैं। सोचिये हम यूनिवर्स में कहां एग्जिस्ट करते हैं और हमारी हैसियत क्या है।

किसी एक रेगिस्तान के सामने खड़े हो कर सोचिये कि किसी एक जर्रे पर चिपके माइक्रो बैक्टीरिया जैसी औकात है इस यूनिवर्स में हमारी। बहरहाल, अब पूरे परिदृश्य को सामने रखिये और इत्मीनान से सोचिये कि सात आसमान कहाँ हैं, क्या मतलब है उनका और वाकई में हमारी हैसियत क्या है हमारी.. इस विशाल विकराल यूनिवर्स में हमारी।

Friday, July 3, 2020

ऑनलाइन क्लास: फ़ीस के बहाने स्कूलों की इस लूट पर ताली और थाली बजाएं या गरबा करें?


- रमेश पराशर

कोरोना की चपेट में आने के बाद के ‘लॉक डाउन’ ने लोगों को आर्थिक रूप से बेहद तोड़कर रख दिया है ! ग़रीब तो सबसे ज़्यादा मार झेले हैं मगर ‘मिडिल क्लास’ भी कम तबाह नहीं हुआ है ! वो चाहे छोटा या मझोला व्यापारी हो या नौकरीपेशा ! GST और नोटबंदी ने वैसे भी कमर तोड़ रखी थी ! 

अब “लुटेरों” ने भी लूटना शुरु कर दिया है ! यूँ तो देश में ‘शिक्षा तंत्र’ जाने कब से ICU में भर्ती करने लायक कर दिया गया है, मगर प्राइवेट सेक्टर ने इस समय भी धॉंधली की हदें पार करते डकैतों की तरह “लूट” पर उतर आई हैं ! सरकारों की अनदेखी से यही शक होता है कि परोक्ष रूप से, उनकी सहमती से तो नहीं हो रहा ? पतनशील सरकारें हमेशा जन भावनाओं का तिरस्कार करतीं हैं ? 

“सेंट ज़ोसेफ” देश का जाना माना प्राइवेट शिक्षा संस्थान है, ( इस तरह के कई और प्राइवेट संस्थाएँ भी हैं ) एक वायरल हो रहे वीडियो के अनुसार, ये शिक्षा संस्थान फ़ीस के नाम पर विशुद्ध लूट पर उतर आया है, जब कि स्कूल बंद है और बच्चे ‘ऑन लाइन’ किसी तरह ‘लस्टम पस्टम’ पढ़ाई के नाम पर खाना पूर्ति कर रहे हैं ! इनके फ़ीस के बहाने लूट की बानगी देखिये -
1 - स्कूल मेन्टनेन्स फ़ीस 
2 - लायब्रेरी फ़ीस 
3 - गेम्स एण्ड स्पोर्ट फ़ीस 
4 - इलेक्ट्रिसिटी फ़ीस 
5 - को- करिकुलर एक्टिविटी फ़ीस 
6 - रिपेयर एण्ड मेंटेनेन्स फ़ीस 
7 - एक्टिविटी फ़ीस 
8 - डेवलेपमेंट फ़ीस 
9 - ‘स्कूल-एप’ फ़ीस ( पढ़ाते ‘ज़ू मेप’ और ‘डोजो एप’ से जो पूरी दुनियाँ में फ़्री है ) 

जब बच्चे अपने घरों में रहकर ‘ऑन लाइन’ फ़्री एप से पढ़ रहे हैं, स्कूल बंद हैं, लायब्रेरी खुल नहीं रही, स्पोर्ट खेले नहीं जा रहे, स्कूल की बिल्डिंग यथावत खडी है, कोई रिपेयर नहीं, किसी तरह की कोई एक्टिविटी नहीं हो रही, बिजली केवल प्रिंसिपल के कमरे में ही जल रही होगी ? तब “इस उस” बहाने मोटी फ़ीस वसूलना शुद्ध ‘लूट’ नहीं तो और क्या है ? 


मिडिल क्लॉस के बारे में एक नेता को किसी चैनल पर कहते सुना था, एक वीडियो में - “मिडिल क्लॉस कुल 4 करोड़ हैं देश में ! ये लोअर क्लॉस की तरह सड़कों पर तो उतरते नहीं? घरों में बैठकर बकवास करते रहते हैं ! ये होते कौन हैं अपनी मॉंगे माँगने वाले ?” - ये औक़ात है मिडिल क्लास की ! वैसे भी ताली, थाली बजाकर और सड़कों पर गरबा करके कोरोना से लड़ने की मूर्खतापूर्ण बानगी देकर अपनी बौद्धिक हैसियत का प्रदर्शन तो कर ही चुके हैं ! देखना यह है कि लोग, सेंट ज़ोसेफ संस्था द्वारा लूटे जाने का विरोध कर के शासन, प्रशासन और सरकारों को उनकी कुंभकरणी नींद से जगायेंगे ? या फिर ताली, थाली बजाकर गरबा करेंगे ? 

Sunday, June 28, 2020

सीमा की सुरक्षा के लिए जा रहे फौजी के साथ एयरपोर्ट पर ऐसा बर्ताव, क्या यही देशभक्ति है?



वाक्या परसो का ही था । देश की राजधानी दिल्ली में एक सामान्य सा दिन परंतु देश की सीमाओं पर काफी हलचल थी । जवानों की छुट्टियां रद्द कर उन्हें तत्काल सीमाओं की सुरक्षा हेतु बुलाया जा रहा था । कुछ ऐसे भी थे जिनको उनकी वाहनी से स्थानांतरण पर कार्यमुक्त कर दिया गया था । जवान स्वयं के व्यय पर इस परिस्थिति का सामना करने के लिए हर्ष से चल पड़े । देश मे व्याप्त कोरोना महामारी के कारण रेलवे स्टेशन तथा एयरपोर्ट पर सामान्य से कम ही भीड़ थी। 

वर्तमान परिस्थितियों के कारण आम जनता जो सैर सपाटे के लिए अक्सर लद्दाख घूमने जाती थी अब घरों में आराम फरमा रही थी । और लद्दाख अब कोई जाए भी क्यों? अगर कोई जाएगा तो वो है एक सैनिक ।

वो भी ऐसे ही चल पड़ा...आनन-फानन में जो साथ रख सकता था रखा...इस जल्दबाजी में वो भूल गया कि कितना सामान वो रख सकता है और कितना नही...। साथ मे दो बड़े बैग जिसमे से एक का वजन 18 किलो दुसरे का 7 किलो ...एक छोटा बैग जोकि पहले से पूर्ण रूप से भरा था जिसका वजन करीब 5 किलो पर ज्यादा...कुल 3 बैग जिनका वजन 18+7+5= 30 किलो ।

बैग में उपलब्ध सामान में से 85% वो सामान था जो उसकी ड्यूटी के लिए जरूरी था । विभिन्न प्रकार के जूते और कई प्रकार की वर्दियां उसके सामान को भारी बना रही थीं । यदि वो आम नागरिक होता तो उसका बैग 85% तक हल्का हो सकता था ।

बोर्डिंग पास की लाइन में इंतजार करते हुए अंततः उसका नम्बर आ ही गया...मन मे शंका लिए वो आगे बढ़ा और टिकट की कॉपी दिखाते हुए बोर्डिंग पास जारी किए जाने का इंतजार...उसका पहला बैग सफलतापूर्वक बैल्ट पर आगे बढ़ गया...जैसे ही उसने दूसरा बैग वजन के लिए रखा उसे तुरंत रोक दिया गया.....

"सर ये नही जा सकता...आप एक ही बैग ले जा सकते हैं....इसके लिए एक्स्ट्रा चार्ज लगेगा??? 400 रुपये किलो " काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने कहा।

"सर प्लीज...जाने दीजिए....जरूरी सामान है ..जरूरत पड़ेगी " । जवान ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया ।

" नही..ये हमारी कम्पनी की पालिसी के खिलाफ है । आप अपना बोर्डिंग पास लीजिए और साइड हो जाइए...और भी यात्री लाइन में हैं ।" काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने कहा ।

" सर, प्लीज देख लीजिए...ज्यादा नही है 7 किलो ही तो है ।...अगली बार ध्यान रखूँगा ।" जवान ने फिर निवेदन किया ।

" नहीं... सर आप समझते क्यों नही हैं...फर्स्ट काउंटर पर जाकर हमारे मैनेजर से बात कर लीजिए । हम कुछ नही कर सकते " spicejet कर्मचारी। 

निराश जवान काउंटर से हटते हुए काउंटर नम्बर 1 पर गया वहाँ भी यही जवाब मिला...हताश होकर पंक्ति में लगे अन्य लोगों से पूछने लगा कि क्या आपमे से कोई लदाख जा रहा है?? पर सबने मना कर दिया...

कोई जा भी रहा होता तो तब भी बात नही बनती क्योंकि फ्लाइट के नए नियम के अनुसार एक यात्री सिर्फ एक ही बड़ा बैग ले जा सकता है जिसका वजन 20 kg से कम हो...फिर भी चाहता था कि अपने दूसरे बैग का कुछ सामान वो किसी अन्य यात्री के बैग में रख दे जिससे उसे कम भुगतान करना पड़े ।

कोई मदद ना मिल पाने की स्थिति में वो पुनः काउंटर पर गया और निवेदन करने लगा...। उसने बताया कि वह सरकारी आदेश के तहत अपनी ड्यूटी का निर्वहन करने जा रहा है...उसका वहाँ पहुंचना जरूरी है । सीमाओं पर हालात सामान्य नही है...कृपया इतनी मदद तो आप कर ही सकते हैं। "

" आप पहले पंक्ति में लगें और अपनी बारी का इंतजार करें... आप अपनी ड्यूटी कर रहे हैं तो आपको दिखाई नही देता हम कोरोना में भी काम कर रहे हैं...spicejet कर कर्मचारी ने आंखे  दिखाते हुए कहा ।"

पंक्ति में दोबारा लगना मतलब 45 मिनट फिर से खड़ा रहना...खैर वो सैनिक था....बर्फीली रातों में वो घण्टो सीमाओं पर खड़ा रह सकता है ये 45 मिनट उसके लिए कुछ नही थे...पंक्ति में अपनी बारी का दोबारा इंतजार करते हुए वो सोचने लगा..."ये है देश के नागरिकों की सोच...सोशल मीडिया पर सैनिको की शहादत पर आंसू बहाने वाले ये लोग कितने घटिया हैं...क्या इनके लिए जान देते हैं हम" .....

कोरोना में काम करना क्या होता है कोई उससे पूछे...उसका बल भारत का एक मात्र बल था जिसने सबसे पहले विदेशों से आये कोरोना के मरीजों को अपने कैम्प में आइसोलेट किया था....उनकी सेवा की । आज भी उसका बल दिल्ली में 10000 बिस्तर वाले देश के सबसे बड़े कोरोना अस्पताल की कमान अपने हाथ मे ले रहा है ।...खैर इन बातों का कोई मतलब नही था ।

फिर वो सोचने लगा कि 7 किलो में से कुछ वजन वो कम कर सके....पर क्या कम करे? वो कम्बल जो उसकी माँ ने जाते वक्त यह कहते दिया था "बेटा वहाँ ठंड होगी...जरूरत पड़ेगी ।"....जिसकी कीमत 1000 रुपये से ज्यादा नही होगी...पर उसकी कीमत से ज्यादा उसे उसके किराये पर खर्च करना पड़ेगा... ताकि उस कम्बल में उसे उसकी माँ की गोद का एहसास होता रहे । या फिर वो टिफिन जिसमे उसकी पत्नी ने सफर के लिए कुछ रोटियाँ और घर की बनी मिठाईयां रखी थी ताकि रात भर के ट्रैन से एयरपोर्ट तक के सफर में वो खा सके ।

क्या चुनना था क्या नही...यही असमंजश में वो आगे बढ़ा...बिना ज्यादा कुछ निवेदन किये अपना डेबिट कार्ड काउंटर पर बैठे spicejet के कर्मचारी को थमा दिया...अपनी जीत पर मुस्कुराते हुए spicejet के कर्मचारी ने एक पर्ची बनाकर उस सैनिक के हाथ मे थमा दी....तभी एक मैसेज उस सैनिक के मोबाइल पर आया "

"Rs.2,800.00 spent on your SBI Card ending with 5437 at SPICEJET LIMITED on 24/06/20. If this trxn. wasn't done by you, click https://sbicard.com/DisputeRaise"

पर्ची को और कार्ड को जेब मे डालते हुए वो अगली प्रक्रिया के लिये आगे बढ़ गया ।

यहाँ तक आप सोच रहे होंगे कि पेमेंट में दिक्कत क्या थी...पहले कर देता तो ये सब देखना ना पड़ता...तो वो महानुभाव बताएं...7 किलो अतिरिक्त वजन को साथ मे ले जाने में क्या दिक्कत थी...जबकि 85% सामान सरकारी सेवा के लिए था...क्या 7 किलो अतरिक्त वजन से हवाई जहाज नही उड़ सकता था? यदि नही उड़ सकता था तो 400 रुपये प्रति किलो के भुगतान के बाद कैसे?

ये वो फ्लाइट कम्पनियां हैं जो शहादत के बाद लौट रहे किसी सैनिक के शव से भी अतिरिक्त भार व्यय के नाम पर 400 रुपये प्रति किलो वसूलने में गर्व महसूस करेंगी । आप इस सच्चे वाकये पर क्या सोच रखते हैं...इस परिस्थिति में आप क्या करेंगे?

Sunday, June 21, 2020

हे भगवान ! ऐसा अजब मरीज किसी डॉक्टर को ना ही मिले तो अच्छा !



-असीम तिवारी

डॉक्टर साब नाम अस्ते
नाम अस्ते नही नमस्ते होता है
होता होगा हमने तो नाम बताया अपना
अस्ते नाम है तुम्हारा?
हओ
जे कैसा नाम है बे
कहानी लंबी है
रहने दो फिर

नही सुन लो, इंटरेस्टिंग है मूड बन जाएगा फिर दवा दारू का ठीक से, हुआ यूं कि हमाए बाप के लौंडा जन्मा यानी कि हम तो कुंडली में अक्षर निकला 'अ'.. बाप के वालिद यानी कि दादा ने कही कि इसका नाम रख दो अंगूरी लाल, माँ का नाम था जामुनी देवी, बाप हमाए थे सेब सिंह तो दादा ने कहा इसको अंगूरी बना दो, लेकिन डैडी को नाम समझ नी आया, बिनने साफ कह दी  अपने बाप से कि केला लाल जी मुआफ़ी चाहता हूँ फ्रूट सलाद भोत बन गई घर में अब लौंडे लपाड़ो का नाम अलग रखेंगे, तो बस फिर हुआ यूं कि दद्दा को हमाए आया गुस्सा और बिनने बाप के मुँह पर छाप छोड़ दी कस के एक..डैडी हिल गए अंदर तक और उनके मुँह से निकला अरे बुढऊ आहिस्ते !!!! तो ऐसे आहिस्ते से हमाओ नामकरण हो गओ अस्ते

उफ़्फ़ तौबा!! बकवास खत्म हो गई हो तो आने का कारण भी बता दो भैया अस्ते

डॉक्टर साब आई हैड ए फादर ही हैड ए डाइबिटवॉज़ 

क्या????!!!!!! अबे क्या ज़हर अंग्रेजी छोड़ रहा है, डाइबिटवॉज़ क्या होता है??

मधुमेह अंकिल मधुमेह 

वो डाइबिटीज होता है उल्लू के चरखे

होता होगा, लेकिन डैड तो निपट गए ना हमाओ तो अब तो डाइबिट वॉज़ ही कहेंगे ना, अंग्रेजी कच्ची मालूम हो री डॉक्टर तुमाइ बुरा नी मानना, डाइबिटीज तो इसको है हमाए जिंदा लौंडे को 

एक तो साला मर मर के एमबीबीएस निकालो जैसे तैसे और फिर इन बेकूफ़ पेशेंट्स को झेलो हाँ नही तो..अबे तो सीधा सीधा नही बता सकता कि लड़के को डायबिटीज है

लो बोलो कर लो बात,एकदम नाक की सीध में स्ट्रेट तो चला आया मैं कि डाइबिटीज है, बाप का तो इसलिये बताना पड़ा कि अभी फट से पूछ लेते फैमिली में किसी को है कि नही इसलिये पेले ही साफ कर दिया कि डैडी को थी और वो निकल लिए सेकंड वर्ल्ड की यात्रा पर हालांकि उनके कर्म के मुताबिक तो मेरे को लग रिया थर्ड वर्ल्ड की सैर कर  रहे होंगे 

चुप हो जा बे.. अच्छा कुछ टेस्ट करने होंगे

ट्वेंटी ट्वेंटी कर लो डॉक्टर साब, टेस्ट तो आजकल देखता भी नही कोई 

खून की जांच कही है बे

खून तो सही हैगा इसका उसको क्यों जांचना है

चाह क्या रहा फिर जे बता दे

चाह तो लौंडे का इलाज ही रहा था

तो करने तो दे नही रहा तू

अरे, कैसी बात कर रए, डॉक्टर बाबू करो ना इलाज,मैं ये चाह रहा था कि सीधा ऑपरेशन करके मधुमेह निकाल दो ससु

ऐसा नही होता जाहिल, मधुमेह कोई अंग नही है जो निकाल देवें

अरे कोशिश करने वालों की हार नी होती और लहरों से डर कर नौका पार नी होती

अबे ओ साहित्यकार कतई, हर जगह नही फिट होता ये .. डायबटीज़ ऑपरेशन से ना निकलती

अच्छा? तो गोली दोगे

हाँ, लिख रहे हैं गोली खिलाते रहना टाइम से, और 15 दिन बाद शुगर चेक करके बताना

हमाओ घर के राशन से लौंडन की बीमारी का क्या लेना देना डॉक्टर साब?

अबे घर में चीनी चेक करनी नही कही, ये तेरे लौंडे के अंदर की चीनी चेक कर के बताना, क्या साले सुबह से सर खाने आ जाते हैं

ओह!! अच्छा इसकी बात कर रहे थे, तो मेरा मल्लब मैं ये जानना चाह रहा था कि लौंडे की शुगर ज़्यादा निकले तो इसको दूध और गरम पानी के साथ चायपत्ती खिला दूँ? नही मल्लब ये चाय का शौकीन है तो चीनी वेस्ट नी हो जाए इसके अंदर की इसलिए कह रहा था मैं

अबे तू क्या चीज है? दवाइयां खिला नही तो इन्सुलिन के इंजेक्शन लगेंगे ,शुगर बढ़ी अगर इसकी

फिर छोड़ो,पंडी जी का इलाज ही ठीक है वही करा लेंगे

क्या इलाज बता दिया  तेरे पंडी जी ने?

दरअसल लौंडे का नाम हमने दादाजी की प्रथा आगे बढ़ाने चीकू रख दिया था,पंडी जी केन लगे चीकू मीठा भोत होता है इसीलिये हो गई इसे मधुमेह तुम तो नाम बदली कर के नमकीन मिक्चर ऐसा कुछ कर दो तो आराम मिलेगा

भाग यहाँ से ^#^@^@%@/#^@&^@%@&@^@